आखिर क्यों लगी होती है जींस पर बनी छोटी सी पॉकेट? दिलचस्प है इसके पीछे का इतिहास
Jeans tiny pocket: मार्केट में तरह-तरह की जींस पाई जाती है लेकिन हर जींस में एक बात बड़ी ही कॉमन होती है और वो है इसकी पॉकेट। जींस की मेन पॉकेट के ऊपर एक छोटी सी पॉकेट होती है, जिसके पीछे का इतिहास बेहद ही दिलचस्प है।
Jeans tiny pocket: आदमी हो या औरत, बच्चे हो या फिर बूढ़े...हर किसी को जींस पहनना पसंद होता है। बाजार में भी जींस की काफी वैरायटी उपलब्ध होती है। रिप्ड से लेकर बैल बॉटम तक... लो वेस्ट से लेकर स्किन टाइट तक... कई तरह की जींस मार्केट में उपलब्ध होती है। हर ब्रैड की जींस एक दूसरे से अलग होती हैं। लेकिन सब जींस में एक बात बेहद कॉमन होती है और वो है जींस के मेन पॉकेट के ऊपर छोटा सा पॉकेट। ये पॉकेट बेहद छोटा होता है और शायद ही इसमें कुछ रखा जा सकता हो। ऐसे में क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर इस पॉकेट का क्या यूज होता है? चलिये आपको बताते हैं।
ऐसे
बनी
थी
जींस
की
टिनी
पॉकेट
बात
साल
1853
की
है,
जब
लेवी
स्ट्रॉस
नाम
के
एक
बिजनेसमैन
ने
लेविस
स्ट्रॉस
एंड
कंपनी
नाम
से
एक
जींस
कंपनी
की
शुरुआत
की।
ये
ब्लू
जींस
बनाने
वाली
पहली
कंपनी
थी।
साल
1873
में
जब
कंपनी
ने
जींस
पेटेंट
के
लिए
रजिस्ट्रेशन
कराया,
तो
आगे
की
जेब
के
ऊपर
एक
छोटी
सी
पॉकेट
बना
दी।
इसके
बाद
बाजार
में
आने
वाली
हर
कंपनी
ने
देखादेखी
कर
ऐसा
ही
डिजाइन
बनाया।
साल
1890
में
कंपनी
ने
लॉट
501
जींस
के
साथ
इस
डिजाइन
की
शुरुआत
की।
टिनी
पॉकेट
में
कुछ
रखना
मुमकिन
नहीं
इसका
परपस
बेहद
सिंपल
था।
जींस
पहनने
वाले
लोग
इसमें
पॉकेट
वॉच
रखते
थे।
सूट
के
साथ
पहनी
जाने
वाली
पैंट
में
ये
जेब
नहीं
होती
थी
क्योंकि
सूट
के
कोट
में
पहले
ही
पॉकेट
होती
थी।
वैसे
आज
इतनी
छोटी
सी
जेब
में
कुछ
भी
रखना
मुमकिन
नहीं
है।
कुछ
लोग
इसमें
सिक्के
भी
रखते
हैं
लेकिन
उंगलियां
इतनी
छोटी
नहीं
है
कि
आसानी
से
जेब
के
अंदर
जा
सके।
दूसरे
वर्ल्ड
वॉर
में
हटाई
गई
थी
पॉकेट
लिवाइस
के
हिस्टोरियन
ट्रैकी
पेनेक
ने
इनसाइडर
को
बताया
कि
जेब
को
कभी
किसी
ने
हटाया
नहीं,
ताकि
लोगों
को
एक
अच्छी
फीलिंग
दिलाई
जा
सके।
उन्होंने
ये
भी
कहा
कि
दूसरे
विश्व
युद्ध
के
दौरान
छोटी
जेबों
को
हटा
दिया
गया
था।
हालांकि,
बाद
में
इस
पॉकेट
को
हटा
दिया
गया।
मजदूरों
के
लिए
लगाए
गए
थे
बटन
एक
ब्लॉग
के
अनुसार
जींस
की
खदान
में
काम
करने
वाले
मजदूरों
की
जरूरत
और
हिसाब
से
ही
जींस
की
जेब
पर
छोटे
बटन
लगाए
जाते
थे।
चूंकि
मजदूरों
का
काम
काफी
भारी-भरकम
हुआ
करता
था
ऐसे
में
काम
करते
वक्त
जींस
की
सिलाई
फट
ना
जाए,
इसलिए
सपोर्ट
के
लिए
छोटे
बटन
भी
लगाए
जाते
थे।
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