ब्रह्मांड में हर जगह हो सकती है 'हीरे की बारिश', अरुण और वरुण ग्रह का कार्बन बदल देगा सब कुछ
नई दिल्ली: पृथ्वी पर हीरा सबसे अनमोल चीजों में से एक है, जिसको बनने में ही करोड़ों साल का वक्त लग जाता है, लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि ब्रह्मांड में कई ग्रह ऐसे भी हैं, जहां पर हीरों का बड़ा भंडार है। अब इसको लेकर एक दिलचस्प रिपोर्ट सामने आई है।
सीन को किया रिक्रिएट
साइंस एडवांस में पब्लिश नई स्टडी के मुताबिक पूरे ब्रह्मांड में हीरों की बारिश हो सकती है। ये हमारे सौरमंडल के दो ग्रहों यूरेनस (अरुण) और नेपच्यून (वरुण) की वजह से होगी। हाल ही में वैज्ञानिकों की एक टीम ने दोनों ग्रहों पर होने वाली बारिश के सीन को रिक्रिएट किया। जिसके बाद उन्होंने ये बात कही है। ये रिक्रिएशन आम प्लास्टिक के इस्तेमाल से हुआ।
तापमान बहुत ज्यादा कम
वैज्ञानिकों ने कहा कि नेपच्यून और यूरेनस सूरज से सबसे ज्यादा दूर स्थित ग्रह हैं, जिससे वहां पर तापमान काफी ज्यादा कम रहता है। ऐसे में वहां पर भयानक ठंड की वजह से विलक्षण कैमिस्ट्री और स्ट्रक्चरल ट्रांजिशन हो सकते हैं। इसे आम भाषा में कहें तो वहां पर सुपरआयोनिक पानी की बारिश (हीरों की बारिश) हो सकती है।
कितने प्रेशर पर बनते हैं हीरे
जब वैज्ञानिकों ने पृथ्वी पर उस बारिश के सीन को रिक्रिएट किया तो उन्होंने शॉक-कंप्रेसिंग पॉलीइथाइलीन टेरेफ्थेलेट (पीईटी) प्लास्टिक द्वारा C और H2O के एक स्टोइकोमेट्रिक मिश्रण की एक्स-रे जांच की। इस दौरान पता चला कि -3500 से -6000 Kelvin तापमान पर प्रेशर के बीच हीरे बनने लगते हैं। C और H2O में देखी गई डिमिक्सिंग से पता चलता है कि बर्फ के विशाल भंडार के अंदर हीरे की बारिश ऑक्सीजन द्वारा बढ़ाई जाती है।
2017 में पहली घटना
इस रिसर्च के बाद ये निष्कर्ष निकला कि अगर वहां पर ठंड बढ़ती गई तो रासयनिक क्रियाओं की वजह से पूरे ब्रह्मांड में हीरों की बारिश होगी। हालांकि ये सब कब होगा इसको लेकर कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। 2017 में शोधकर्ताओं ने पहली बार 'हीरे की बारिश' देखी, क्योंकि उस वक्त उच्च दबाव की स्थिति बनी थी।
मीथेन गैस है वजह
वैज्ञानिकों के मुताबिक यूरेनस और नेपच्यून पर मीथेन गैस है। इन गैसों में हाइड्रोजन और कार्बन होते हैं, जिनका रासायनिक नाम CH₄ है। पृथ्वी पर जैसे वायुमंडलीय दबाव की वजह से बारिश होती है, वैसे ही नेपच्यून और यूरेनस पर मीथेन का दबाव बनता है। ऐसे में वहां के हाइड्रोजन और कार्बन के बॉन्ड टूट जाते हैं। इसके बाद कार्बन हीरे में बदल जाता है और वहां हीरों की बारिश होती है। वैसे दोनों ग्रह सौरमंडल के अंतिम छोर में स्थित हैं, ऐसे में उनका तक अभी पहुंचना संभव नहीं हैं।