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16 ऑपरेशनों के बाद ठीक होकर अपने घर लौट सकेगा बंग्लादेशी 'ट्री-मैन'

बंग्लादेश के ट्री-मैन अबुल बजंदर जल्द ठीक होकर अपने घर लौट सकेगा। 16 ऑपरेशन के बाद उसे उम्मीद है कि वो अपनी बेटी को गोद में उठा सकेगा।

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नई दिल्ली। बंग्लादेश का अबुल बजंदर को उम्मीद है कि वो जल्द ही अपने तीन साल की बेटी को पहली बार गोद में उठा सकेगा। ट्री-मैन के नाम से मशहूर अबुल दुर्लभ बीमारी से पीड़ित है। उसके हाथ-पैर में पेड़ की छाल जैसे बड़े-बड़े मस्से निकले हुए हैं। अबुल को देखने पर ऐसा लगता है जैसे पेड़ के छाल हो। धीरे-धीरे ये छाल बड़े होते जाते है, जिसकी वजह से वो ना तो कुछ उठा पाता है और ना ही खुद से कुछ खा-पी सकता है। इस दुर्लभ बीमारी को मेडिकल साइंस में एपिडर्मोडिसप्लासिया वेरुसीफॉरमिस के नाम से जाना जाता है।

Bangladesh 'Tree Man' Sees Hope After 16 Surgeries

पूरी दुनिया में केवल 4 लोग ही इस खतरनाक बीमारी से प्रेरित हैं, जिनमें से एक अबुल भी है। लकिन अब उसे उम्मीद है कि वो जल्द ही ठीक होकर अपने घर लौट सकेगा। जल्द ही वो अपने 3 साल की बेटी को पहली बार गोद में उठा सकेगा। दरअसल बंग्लादेश मेडिकल कॉलेज में उसका मुफ्त इलाज किया जा रहा है।

अब तक 16 बार उसका ऑपरेशन किया जा चुका है और करीब 5 किलो मस्से निकाले जा चुके हैं। डॉक्टरों के साथ-साथ अबुल को उम्मीद है कि वो जल्द ही ठीक हो सकेगा। अबुल का कहना है कि मैं अपनी बेटी के पालन-पोषण को लेकर बहुत चिंतित रहता था, और उम्मीद करता हूं, यह बीमारी लौटकर न आए। वहीं अबुल का इलाज कर रहे डॉक्टर और प्लास्टिक सर्जरी को-ऑर्डिनेटर सामंता लाल सेन ने कहा कि अबुल बजंदर का इलाज मेडिकल साइंस के इतिहास में शानदार मील के पत्थर साबित होगा।

उन्होंने कहा है कि अब उसके हाथों के आकार को ठीक करने के लिए दो बार छोटे-छोटे ऑपरेशन किए जाएंगे। अगर सब ठीक रहा तो अगले 30 दिनों में अबुल बिल्कुल ठीक होकर अपने घर लौट सकेंगे। अबुल दुनिया का पहला शख्स होगा, जो इस खतरनाक जैनेटिक बीमारी के बाद ठीक हो जाएगा। आपको बता दें कि अबुल को दो साल पहले इस भयंकर बीमारी से पीड़ित हो गया था। वो रिक्शा चलाने का काम करता था, लेकिन इस बीमारी की वजह उसका कामकाज सब छूट गया अब उसे उम्मीद है कि सब ठीक हो जाएगा।

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English summary
A Bangladeshi father dubbed the "tree man" because of the bark-like warts that once covered his body will soon be able to leave hospital after ground breaking treatment for one of the world's rarest diseases.
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