आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस: टूथब्रश गंध सूंघकर कैसे बता देगा कि आपको कैंसर है?
एआई के इस्तेमाल से अब ऐसी तकनीक का विकास हो रहा है कि एक दिन बीमारियों को उनके शुरुआती दिनों में ही सूंघा जा सके, ताकि हमें स्वस्थ रहने और लंबे समय तक जीने में मदद मिले.
सार्वजनिक स्थानों को खुशबूदार रखने के लिए हम इत्र और डियोडरेंट लगाते हैं. और हो सकता कि ये सुगंध आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के इस्तेमाल से क्रांतिकारी रूप से बदलने वाले सबसे नए तत्व हों
सुगंध के नए रुझानों की पहचान करने और उत्पादों को पहले से अधिक तेज़ी से तैयार करने के लिए इन दिनों बिग डेटा और सुपर-फास्ट कंप्यूटर का उपयोग हो रहा है.
एआई के इस्तेमाल से अब ऐसी तकनीक का विकास हो रहा है कि एक दिन बीमारियों को उनके शुरुआती दिनों में ही सूंघा जा सके, ताकि हमें स्वस्थ रहने और लंबे समय तक जीने में मदद मिले.
इस आलेख में ये बताया गया है कि कैसे एआई आज हमारी दुनिया को प्रभावित कर रही है. बात चाहे हमारे इस्तेमाल के इत्र की हो या बीमारियों के इलाज के तरीकों की.
समस्याओं को सूंघना
फ्रांस का टेक्नोलॉजी स्टार्ट-अप 'अरिबाल' गंधों का विश्लेषण करता है. ऐसा करके वो ये पता करता है कि कोई गंध कैसे हमारी ज़िंदगी पर असर डालती है और वे हमारे स्वास्थ्य के बारे में हमें क्या जानकारी दे सकती है.
हालांकि गंधों को महसूस करना काफी कठिन है. प्रकाश या ध्वनि की ख़ास प्रकार की तरंग की लंबाई होती है, लेकिन गंध को मापने और आंकने का कोई आसान तरीका नहीं होता.
इसके लिए अरिबाल सिलिकॉन चिप्स पर लगे प्रोटीन के टुकड़ों का उपयोग अणुओं को सूंघने के लिए करती है. इसके तहत ऑक्सीजन, नाइट्रोजन और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी कई गैसों के गंध की उपेक्षा की जाती है, क्योंकि हमारी नाक इन्हें सूंघ नहीं पाती.
कंपनी के सीईओ सैम गिलौम कहते हैं, "क्योंकि हम गंधों को वैज्ञानिक तरीके से नहीं बता सकते, इसलिए हमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की ज़रूरत है. इसके लिए केवल एक चीज़ करनी है कि हमें मशीन को सिखाना है कि ये पनीर है, ये स्ट्रॉबेरी है, ये रास्पबेरी है."
इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल जिन जगहों पर हम रहते हैं, उसकी निगरानी के लिए हो सकती है. इससे हमें व्यस्त जगहों को बेहतर बनाए रखने में मदद मिलेगी. अब लोग महामारी से बचने के लिए भी जागरूक हो रहे हैं.
गंधों का पता लगने से हमारा जीवन प्रभावित हो सकता है. हमें पिछले कई सालों से मालूम है कि गंधों के जरिए कई बीमारियों का पता लगाया जा सकता है. पिछले साल फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी के एयरपोर्ट पर कोरोना संक्रमितों की पहचान के लिए कुत्तों को लगाया गया. कुत्ते सूंघकर ये बताते थे कि भीड़ में कौन कोरोना से संक्रमित हैं और कौन नहीं.
इस अवधारणा से ऐसे उत्पादों का विकास हो सकता है, जो किसी रोग के शुरुआती लक्षणों की जांच करके हमारे स्वास्थ्य की निगरानी कर सकते हैं.
गिलौम कहते हैं, "एक दिन ऐसा होगा कि मेरे ब्रश में लगा सूंघने वाला सेंसर मेरे स्वास्थ्य का आकलन कर सके. सेंसर कह सकता है कि मुझमें मधुमेह या कैंसर के लक्षण दिख रहे हैं."
ऐसा होने पर किसी गंभीर लक्षण के ज़ाहिर होने से बहुत पहले ही बीमारी का पता लगाकर उसके उपचार की संभावनाओं में व्यापक सुधार करेगा.
गिलौम का कहना है, ''एआई संचालित स्मार्ट उपकरण जैसे 'डायग्नोस्टिक टूथब्रश' बस आने ही वाले हैं. अब सवाल 'यदि' का नहीं, 'कब आएगा' का है.''
सुगंधों का विज्ञान
नए सुगंधों के विकास के लिए भी एआई का उपयोग किया जा रहा है.
मारिया नुरिस्लामोवा कहती हैं, "मैं चार साल की उम्र से ही परफ्यूम की दीवानी हूं. मैं अपनी मां का परफ्यूम चुराती थी और उसे मालूम हो जाता था."
परफ्यूम के उस शुरुआती प्यार ने नुरिस्लामोवा को अमेरिका में 'सेंटबर्ड' नाम के स्टार्टअप की सह-स्थापना करने को प्रेरित किया. यह स्टार्टअप अपने ग्राहकों को हर महीने बेहतर गुणवत्ता के परफ्यूम भेजता है.
वो आगे कहती हैं, ''लेकिन टेक्नोलॉजी मेरा दूसरा जुनून है."
कंपनी ने जब औरतों और मर्दों दोनों के लिए एक ही इत्र को लॉन्च करने का फ़ैसला लिया, तो उन्होंने अपने 3 लाख ग्राहकों के रिव्यूज़ का विश्लेषण करने के लिए एआई का उपयोग किया.
उन्होंने बताया, ''हमें एक समस्या हल करने की बहुत ज़रूरत थी. वो ये कि अधिकांश इत्र ऐसे हैं, जो एक जेंडर को पसंद होते हैं, लेकिन दूसरे जेंडर के लोग उसे झेलते हैं.''
वो कहती हैं, ''जेंडर निरपेक्ष सुगंधों को खोजना कठिन है.''
हालांकि उनकी रिसर्च ने ऐसी 12 सुगंधों की पहचान की, जो हर जेंडर को समान रूप से पसंद आए. और इसके बाद उनकी कंपनी ने 'कन्फेशंस आफ ए रिबेल' ब्रांड को लॉन्च किया. यह उनके सबसे अधिक बिकने वाले इत्र के शीर्ष 3 फ़ीसदी में शामिल है.
वो कहती हैं, "मैं इसे अपनी जीत कहती हूं. वो इसलिए कि कन्फेशंस आफ ए रिबेल, गुच्ची या वर्साचे की तरह मान्यता प्राप्त ब्रैंड नहीं है. फिर भी इसे बहुत अच्छी सफलता मिली. मैं इसका श्रेय इसे तैयार करने में काम आने वाले डेटा को देती हूं."
सेंटबर्ड और अधिक सुगंधों के विकास के लिए भी रिसर्च कर रही हैं. इस साल दो नए उत्पाद जोड़े गए हैं.
लेकिन हमारे सूंघने के तरीके को बदलने के लिए एआई का उपयोग करने वाला यह अकेला व्यवसाय नहीं है.
भावनात्मक प्रभाव
इंटरनेशनल फ्लेवर एंड फ्रैग्रेंस (आईएफएफ) भी परफ्यूम के विकास के लिए एआई का उपयोग करता है.
हालांकि आप दुकानों में मल्टीनेशनल कंपनियों का नाम नहीं देखेंगे. ये कंपनियां अरमानी, केल्विन क्लेन और गिवेंची जैसे प्रमुख नामों के पीछे छुपकर परफ्यूम का विकास करती हैं.
आईएफएफ के पास परफ्यूम बनाने का एक सदी से लंबा अनुभव है. फिर भी केवल 60 से 80 चीज़ों का उपयोग करके लगभग 2,000 के आसपास परफ्यूम बनाए जाते हैं. वास्तव में एआई रचनात्मक प्रक्रिया को आसान बनाने में मदद करता है.
आईएफएफ के सेंट डिवीजन में इनोवेशन मामलों के वैश्विक प्रमुख वालेरी क्लाउड कहते हैं, "एआई एक उपकरण है. यह गूगल मैप्स की तरह परफ्यूम बनाने वाले को जटिलता से बचाता है. इसलिए वो अपने कौशल पर ध्यान केंद्रित कर सकता है."
आईएफएफ का काम परफ्यूम बनाने से रोजमर्रा के सामान बनाने तक फैला है. ये कंपनी वाशिंग पाउडर, फैब्रिक सॉफ्टनर, शैंपू आदि भी बनाती है. इसने कोरोना के समय की जरूरत वाले उत्पाद भी बनाए हैं.
क्लाउड कहते हैं, "मामला 'क्लीन एंड फ्रेश' से आगे बढ़ गया है. अब लोग अधिक देखभाल, और सुरक्षा चाहते हैं. वे देखभाल के मामले में सहज महसूस करना चाहते हैं.''
कंपनी लोगों के मूड और धारणाओं को ध्यान में रखते हुए फरफ्यूम का विकास कर रही है. इसके एक कार्यक्रम का उद्देश्य एआई तकनीक का उपयोग करके ऐसी सुगंधों का विकास करना है, जो लोगों को खुशी, आराम, और आत्मसम्मान दे सके.
उनकी एक रिसर्च न्यूरोलॉजिकल समस्याओं वाले लोगों की मदद करने के लिए भी काम कर रही है.
वालेरी कहते हैं, ''यदि आप अल्ज़ाइमर के बारे में सोचें तो हम जानते हैं कि उत्तेजना और सुगंध की इसमें सकारात्मक भूमिका हो सकती है. इससे इलाज नहीं हो, लेकिन मस्तिष्क को उत्तेजित करके इसका प्रभाव ज़रूर कम हो सकता है."
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