बिहार: ‘समलैंगिक विवाह’ दो युवकों ने आपस में रचाई शादी, कहा- चाहकर भी हमें कोई नहीं कर सकता अलग
मोकामा, 12 जुलाई 2022। समलैंगिक विवाह का चलन बड़े शहरों से लेकर गांव तक पहुंच गया है। आपने समलैंगिक विवाह की खबरें सुनीं और देखी होंगी लेकिन अब बिहार में भी इसका चलन बढ़ने लगा है। ताज़ा मामला मोकामा का जहां मंदिर में भगवान को साक्षी मानते हुए दो युवकों ने शादी रचा ली है। एक तरफ़ दोनों युवकों ने सात जीने मरने की क़सम खाई तो वहीं ग्रामीणों ने हैरानी जताते हुए शादी का विरोध किया। उनका कहना है कि इस तरह की शादी समाज के माहौल को बिगाड़ेगी।

युवकों की हरकत से हुआ शादी का खुलासा
ग्रामीणों ने बताया कि मोकामा नगर परिषद क्षेत्र के मैनक टोला के रहने राजा कुमार ने चोरी-छिपे चार दिन पहले अपने दोस्त से शादी कर ली। गांव वालों को शादी की भनक तक नहीं लगी, अब पूरे मामले का खुलासा हुआ है। उन्होंने बताया कि 22 वर्षीय राजा कुमार ने अपने 18 वर्षीय दोस्त सुमित कुमार से छुप कर शादी रचा ली। शादी की भनक गांव के लोगों को नहीं लगी लेकिन उन दोनों युवकों की हरकत से ग्रामीणों को शक हुआ। जिसके बाद उन दोनों के समलैंगिक विवाह की ख़बर आग की तरह फ़ैल गई।

शादी के बाद लहेरिया टोला में लिया किराये का मकान
राजा कुमार और उसके दोस्त सुमित कुमार दोनों ही मोकामा के ही गुरुदेव टोला के रहने वाले हैं। विवाह रचाने के बाद दोनों युवकों ने लहेरिया टोला में किराये पर एक मकान लिया है और साथ रह रहे हैं। ग़ौरतलब है कि दोनों में से किसी ने इस बात की जानकारी अपने घर वालों को नहीं दी है। युवकों का कहना है कि घर वालों को इस बात की जानकारी होगी तो वह शादी का विरोध करेंगे इसलिए हम लोगों ने घर वालों से विवाह रचाने की बात छुपा कर रखी है।

'एक दूसरे का किसी भी हालत में नहीं छोड़ेंगे साथ'
दोनों युवकों का कहना है कि वक़्त आने पर हम दोनों शादी की बात को सार्वजनिक कर देंगे। विवाह की बात सार्वजनिक होने के बाद अगर परिवार वाले शादी के खिलाफ हुए तो भी हम लोग एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ेंगे। हम लोगों को चाह कर भी कोई अलग नहीं कर सकता, कोई कितनी भी कोशिश कर ले लेकिन हम लोग एक-दूसरे के साथ ही रहेंगे, एक दूसरे से अलग नहीं होंगे। वहीं मोकामा के स्थानीय लोग शादी के खिलाफ़ नाराज़गी ज़ाहिर कर रहें हैं। उनका कहना है कि इस प्रकार की शादी समाज पर गलत प्रभाव डाल रही है। समलैंगिक विवाह को मान्यता मिलने के बावजूद हमारे समाज में यह स्वीकार नहीं है।
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