सुप्रीम कोर्ट ने शराबबंदी कानून पर बिहार सरकार को दी राहत
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज नीतीश सरकार को बड़ी राहत देते हुए सरकार के शराबबंदी कानून पर हाइकोर्ट के गैरकानूनी बताने वाले आदेश पर रोक लगा दी है।
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बिहार में शराबबंदी कानून लागू करने के बिहार सरकार के फैसले को एक हफ्ते पहले पटना हाइकोर्ट ने गैर-कानूनी मानते हुए इस पर रोक लगा दी थी। इस आदेश के खिलाफ बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उच्च न्यायालय ने इस पर सुनवाई करते हुए आज पटना हाइकोर्ट के शराबबंदी कानून को गैरकानूनी बताने वाले आदेश को सही ना मानते हुए इस पर रोक लगा दी है।
शराब बंदी कानून को रद्द किए जाने के हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ बिहार सरकार ने 30 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। बिहार सरकार की याचिका में कहा गया कि हाईकोर्ट के शराबबंदी कानून को रद्द करने से बिहार सरकार की शराबबंदी की मुहिम को झटका लगेगा।
मामले की सुनवाई कर रही पीठ ने कहा कि मूल अधिकार और शराब पर पाबंदी दो अलग चीजे हैं। पीठ ने कहा कि शराब पीने को मूल अधिकार से जोड़ना सही नहीं है। पीठ ने कहा कि इस कानून को काफी समर्थन मिला है खासतौर से महिलाएं इससे खुश हैं।
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क्या है बिहार सरकार का शराबबंदी कानून?
नीतीश
कुमार
ने
विधानसभा
चुनावों
में
बिहार
में
शराबबंदी
का
वादा
किया
था,
जिसको
पूरा
करते
हुए
बिहार
में
शराबबंदी
को
लेकर
कानून
बनाया
गया।
इस
कानून
को
1
अप्रैल,
2016
से
पूरे
बिहार
में
लागू
कर
दिया
गया
था।
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इस कानून के मुताबिक शराब पीकर या नशे में पाए गए तो सात साल तक की सजा और एक से 10 लाख तक का जुर्माना होगा। शराब के नशे में अपराध, उपद्रव या हिंसा की तो कम से कम 10 वर्ष की सजा, आजीवन कारावास और एक लाख से दस लाख तक का जुर्माना हो सकता है।
किसी परिसर या मकान में मादक द्रव्य या शराब बरामद हुई, शराब पीते हुए या शराब बनाते पाए गए, बिक्री या बांटने हुए पाया गया तो 18 वर्ष से अधिक उम्र वाले परिवार के सभी सदस्यों को तब तक को दोषी ठहराया जाएगा। जब तक वे अपने आप को निर्दोष साबित न कर दें।
अवैध तरीके से शराब का भंडारण करने पर आठ से दस वर्ष तक की सजा और दस लाख तक का जुर्माना है। अवैध शराब व्यापार में महिला या नाबालिग को लगाया तो दस वर्ष से आजीवन कारावास और एक लाख से दस लाख तक का जुर्माना होगा।