बिहार: चारा घोटाले से भी बड़ा घोटाला आया सामने, एक महिला ने दिया अंजाम
पटना। बिहार में सामने आया सृजन घोटाला धीरे धीरे एक बड़ा घोटाला होते जा रहा है जिसमें अब तक 700 करोड़ के अवैध निकासी की बात सामने आ रही है। कहा जा रहा है कि यह आंकड़ा एक हजार करोड़ के पार जाएगा। इस तरह यह घोटाला बिहार में चर्चित चारा घोटाले से बड़ा घोटाला बताया जा रहा है। पिछले 3 दिनों से आर्थिक अनुसंधान इकाई के 30 अधिकारी मामले की जांच पड़ताल कर रहे हैं और इस मामले में अब तक लगभग 7 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।जिसमें सेवानिवृत्त अनुमंडल अंकेक्षक सतीश चंद्र झा, सृजन महिला विकास सहयोग समिति की प्रबंधक सरिता झा, भागलपुर समाहरणालय का लिपिक प्रेम कुमार जो डीएम का स्टेनोग्राफर है, डीआरडीए का नाजिर राकेश यादव, जिला भू-अर्जन कार्यालय का नाजिर राकेश झा, इंडियन बैंक का क्लर्क अजय पांडेय और प्रिंटिंग प्रेस का मालिक वंशीधर झा शामिल हैं।
क्या
है
ये
घोटाला
बिहार
के
भागलपुर
जिले
में
एक
एनजीओ
सृजन
जिला
अधिकारी
के
फर्जी
हस्ताक्षर
के
जरिये
सरकारी
खजाने
से
करोड़ों
रुपए
की
फर्जी
निकासी
की
गई
थी।
मामला
प्रकाश
में
आते
ही
अधिकारियों
ने
जांच
पड़ताल
करना
शुरु
कर
दिया
तो
मुख्यमंत्री
नीतीश
कुमार
ने
एक
टीम
तैयार
करते
हुए
जल्द
इस
मामले
का
पर्दाफाश
करने
तथा
आरोपियों
पर
कार्रवाई
करने
की
बात
की।
जब
मामले
की
जांच
शुरू
हुई
तो
अधिकारियों
को
पता
चला
कि
यह
2
से
4
करोड़
का
नहीं
बल्कि
सैकड़ों
करोड़ों
का
मामला
है।
जिले
के
तीन
सरकारी
बैंक
खातों
में
सरकार
फंड
देखती
थी
जिसे
कुछ
प्रशासनिक
अधिकारी
बैंक
कर्मचारी
की
मिलीभगत
से
महिला
सहयोग
समिति
लिमिटेड
के
खातों
में
ट्रांसफर
कर
दिया
जाता
था।
किसका
है
यह
सृजन
संस्था
आपको
बताते
चलें
की
स्वयंसेवी
संस्था
की
संचालिका
मनोरमा
देवी
एक
विधवा
महिला
थी।
जिसके
पति
अवधेश
कुमार
रांची
में
साइंटिस्ट
थे
और
उनकी
मौत
1991
मे
हो
गई
थी
जो
रांची
में
लाह
अनुसंधान
संस्थान
में
वरीय
वैज्ञानिक
के
रूप
में
नौकरी
करते
थे।
जिसके
बाद
मनोरमा
देवी
अपने
बच्चे
को
लेकर
भागलपुर
चली
आई
और
वही
एक
किराए
के
मकान
में
रह
कर
अपना
और
अपने
परिवार
का
पालन
पोषण
करती
थी।
गरीबी
से
मजबूर
विधवा
पहले
ठेले
पर
कपड़ा
बेचने
का
काम
शुरू
किया
फिर
सिलाई
का
और
धीरे-धीरे
यह
काम
इतना
बढ़ने
लगा
कि
उसमे
और
भी
कई
महिलाएं
शामिल
हो
गई।
जिसके
बाद
1993-94
मे
मनोरमा
देवी
ने
सृजन
नाम
की
स्वयंसेवी
संस्था
की
स्थापना
की।
मनोरमा
देवी
की
पहचान
इतना
मजबूत
हो
गया
था
कि
तमाम
बड़े
अधिकारी
से
लेकर
राजनेता
तक
उनके
बुलावे
पर
पहुंच
जाते
थे।
मनोरमा
देवी
अपने
समूह
में
लगभग
600
महिलाओं
का
स्वयं
सहायता
समूह
बनाकर
उन्हें
रोजगार
से
जोड़ा
था।
ऐसे
शुरू
हुआ
हेराफेरी
का
खेल
मनोरमा
देवी
ने
सहयोग
समिति
चलाने
के
लिए
सरकार
के
सहयोह
से
भागलपुर
में
एक
मकान
35
साल
तक
के
लिए
लीज
पर
लिया।
35
साल
के
लिए
मकान
लीज
पर
लेने
के
बाद
सृजन
महिला
विकास
समिति
के
अकाउंट
में
सरकार
के
खजाने
से
महिलाओं
की
सहायता
के
लिए
रुपए
आने
शुरू
हो
गए।
जिसके
बाद
सरकारी
अधिकारियों
और
बैंक
कर्मचारियों
की
मिलीभगत
से
पैसे
की
हेराफेरी
करना
शुरू
हो
गया।
लगभग
500
करोड़
से
ज्यादा
पैसा
समिति
के
अकाउंट
में
डाल
दिया
गया
और
इसके
ब्याज
से
अधिकारी
मालामाल
होके
चले
गए।
देखते
देखते
यह
कार्यक्रम
कई
सालों
तक
चला
और
सृजन
महिला
विकास
समिति
के
छह
अकाउंट
में
लगभग
करोड़ों
में
रुपए
डालना
शुरु
हो
गया।
मनोरमा
देवी
की
हेराफेरी
के
खेल
में
कई
अधिकारियों
के
साथ
साथ
सफेदपोश
लोग
भी
शामिल
थे।
जांच
के
आदेश
के
बाद
आरोपी
फरार
अपनी
जिंदगी
की
75
साल
गुजारने
के
बाद
उसकी
मौत
हो
गई।
मनोरमा
देवी
की
मौत
के
बाद
उसके
बेटे
अमित
और
उसकी
पत्नी
प्रिया
महिला
समिति
के
कामकाज
देखना
शुरू
कर
दिया।
जब
यह
मामला
का
पर्दाफाश
हुआ
दोनों
कहीं
फरार
हो
गए
फिलहाल
पुलिस
उनकी
तलाश
कर
रही
है।
1995
से
लेकर
2016
तक
चले
इस
घोटाले
में
हजार
करोड़
रुपए
की
हेराफेरी
की
बात
बताई
जा
रही
है।
विभाग
के
अधिकारियों
द्वारा
मामले
की
जांच
पड़ताल
की
जा
रही
है
और
जल्द
ही
इस
मामले
में
सभी
को
बेनकाब
करने
की
बात
बताई
जा
रही
है।