ये है पटना विश्वविद्यालय की खासियत, नीतीश की सेंट्रल यूनिवर्सिटी के दर्जे वाली बात मोदी मानेंगे!
अपनी स्वर्णिम इतिहास से लेकर अब तक इस विश्वविद्यालय में कई उतार-चढ़ाव आए और आज सौ साल पूरे होने पर 14 अक्टूबर को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में ये शताब्दी समारोह मनाया गया।
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पटना। क्या पटना विश्वविद्यालय को सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा मिलेगा? मोदी से नीतीश की इस मांग के बाद जरा देखिए क्या है पटना यूनिवर्सिटी का इतिहास। आज पटना विश्वविद्यालय अपने सौ साल पूरे होने का शताब्दी समारोह मना रहा है। पटना विश्वविद्यालय की स्थापना 1917 में हुई थी। इस विश्वविद्यालय के स्थापना के बाद पढ़ाई लिखाई के लिए ये काफी चर्चित हुआ और इसके गौरवशाली इतिहास भी रहे। स्थापना के 25 साल बाद जहां इस विश्वविद्यालय को ऑक्सफोर्ड ऑफ द ईस्ट के नाम से लोग जानने लगे तो अब तक इस विश्वविद्यालय में राजनीति के साथ-साथ सामाजिक कार्यों और अन्य क्षेत्रों में ऐसे छात्रों को दिया है जिसका नाम देश का हर कोई जानता है। और तो और ये यूनिवर्सिटी देश का ऐसा सबसे पुराना सातवां विश्वविद्यालय है जो गंगा नदी के किनारे स्थित है। आपको बता दें कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना बिहार के दरभंगा महाराज के रीजन में हुई थी और आज भी विश्वविद्यालय के मुख्य भवन को दरभंगा महाराज के नाम से जाना जाता है। अपनी स्वर्णिम इतिहास से लेकर अब तक इस विश्वविद्यालय में कई उतार-चढ़ाव आए और आज सौ साल पूरे होने पर 14 अक्टूबर को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में ये शताब्दी समारोह मनाया गया। आइए जानते हैं इस विश्वविद्यालय के इतिहास के बारे में...
नीतीश ने बताया कितनी बड़ी है पटना युनिवर्सिटी
बता दें की 1917 में स्थापित हुआ पटना विश्वविद्यालय आज भी बिहार के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना से पहले इसके अंतर्गत आने वाले सभी कॉलेज कोलकाता से जुड़े हुए थे। लेकिन पटना विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद इस विश्वविद्यालय से साइंस कॉलेज, पटना कॉलेज, वाणिज्य महाविद्यालय, बीएन कॉलेज, पटना कला एवं शिल्प महाविद्यालय, लॉ कॉलेज, मगध महिला कॉलेज के साथ साथ 10 महाविद्यालय जुड़े हुए हैं। तो ये विश्वविद्यालय देश का ऐसा विश्वविद्यालय है जो गंगा नदी के किनारे स्थित है हालांकि देश में कुछ ऐसे भी विश्वविद्यालय हैं जिनकी स्थापना गंगा नदी के किनारे हुई है जिसमें से पटना विश्वविद्यालय भी एक माना जाता है।
जानिए कैसे इस विश्वविद्यालय का नाम पड़ा 'ऑक्सफोर्ड ऑफ द ईस्ट'....
अशोक राजपथ में स्थित विश्वविद्यालय के भवन का निर्माण दरभंगा महाराज ने करवाया था। विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद इनसे तीन कॉलेज, पांच एडेड कॉलेज और वोकेशनल कॉलेज इससे जुड़े। 1917 एक्ट के तहत स्थापित हुआ पटना विश्वविद्यालय का कार्य क्षेत्र नेपाल से लेकर उड़िसा जाता था और स्थापित होने के 25 साल बाद ही इस विश्वविद्यालय की उपलब्धि कुछ ऐसी रही जिसे लोग 'ऑक्सफोर्ड ऑफ द ईस्ट' के नाम से जानने लगे। जब इस विश्वविद्यालय की स्थापना हुई तभी कुलपति बिहार बंगाल और उड़ीसा के प्रशासनिक अधिकारी जॉर्ज जे जिनिंग्स थे। उस वक्त यह पद अवैतनिक था वहीं कुलपतियों को पटना विश्वविद्यालय एक्ट, 1951 लागू होने के बाद वेतन मिलने लगा। सवैतनिक कुलपति के रूप में इस विश्वविद्यालय में सबसे पहले के एन बाहल कुलपति बने जिसके बाद से अब तक 51 कुलपति इस विश्वविद्यालय का कमान संभाल चुके हैं। पटना विश्वविद्यालय के वर्तमान कुलपति प्रोफ़ेसर रास बिहारी प्रसाद सिंह का कहना है कि यह विश्वविद्यालय बिहार के गौरवशाली इतिहास को भी दर्शाता है।" और बेहद गर्व की बात तो यह है कि पटना विश्वविद्यालय ने अपने सौ वर्ष पूरे कर लिए हैं।
अब तक इस विश्वविद्यालय से निकल चुके हैं कई राजनीतिक दिग्गज...
पटना विश्वविद्यालय के छात्र ने राजनीतिक की दुनिया में अपना खास पहचान बनाया है जिसमें से लोकनायक जयप्रकाश नारायण, पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, फिल्म अभिनेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री शत्रुघ्न सिन्हा, केंद्रीय मंत्री जे पी नड्डा, पूर्व रेलमंत्री व राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव, केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद, उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, सामाजिक कार्यकर्ता व सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक समेत कई विशिष्ठ लोग शामिल हैं। और तो और देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा पटना कॉलेज के प्रध्यापक भी रह चुके हैं। तो दूसरी तरफ इस विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्र राजनीति ही नहीं अन्य क्षेत्र में भी नाम किऐ हैं जिसमे राजीव गौवा, बिहार के मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह, पूर्व विदेश सचिव मुचकुंद दूबे, पूर्व आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल भी शामिल हैं जिन्होंने देश और दुनिया में अपने कार्यो के बल पर इस विश्वविद्यालय का नाम रौशन किया है।
हालांकि वर्तमान में पटना विश्वविद्यालय के हालात कुछ ठीक नहीं हैं...
अब हम आपको बताने जा रहे हैं कभी अपने नाम और कारनामे को लेकर चर्चित रहा पटना विश्वविद्यालय की हालात इस वक्त बहुत अच्छी नहीं है राज्य के अन्य विश्वविद्यालयों की तरह यहां भी पर अध्यापकों की बेहद कमी है। इस विश्वविद्यालय का इतिहास भले ही गौरवशाली हो पर वर्तमान स्थिति संतोषजनक नहीं दिखती है। पटना विश्वविद्यालय से 52 साल तक छात्र और शिक्षक के रूप में जुड़े रहे पटना कॉलेज के पूर्व प्राचार्य नवल किशोर चौधरी का कहना है कि इस कार्यक्रम में आ रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वागत है लेकिन अब पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय देने की जरूरत है। क्योंकि इस विश्वविद्यालय का इतिहास गौरवशाली रहा है लेकिन पैसे की कमी के कारण इसके संचालन में अब काफी परेशानियां आ रही है अगर इस विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिल गया तो काफी पैसा भी मिलेगा और विश्वविद्यालय पुराने इतिहास को दोबारा दोहराने लगेगी।
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