बिहार चुनाव में कितनी असरदार होगी VIP? 11 सीटों पर क्या हैं चुनावी संभावनाएं?
बिहार विधानसभा चुनाव में विकासशील इंसान पार्टी (VIP) एनडीए के भागीदार के रूप में 11 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। उसने चार सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर दिये हैं। ब्रह्मपुर से पार्टी के उम्मीदवार जयराम सिंह बिंद पर्चा दाखिल कर चुके हैं। यहां 28 अक्टूबर को चुनाव है। वीआइपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राष्ट्रीय मुख्य प्रवक्ता राजीव मिश्रा का दावा है कि उनकी पार्टी इस चुनाव में 7 से 9 सीटें जीतेगी। वीआइपी के संस्थापक मुकेश सहनी के मुताबिक बिहार में निषाद समुदाय की कुल 22 उपजातियां हैं जिनकी आबादी बिहार की जनसंख्या की करीब 15 फीसदी है। अगर इतनी बड़ी आबादी एनडीए से जुड़ गयी है तो 2020 की चुनावी तस्वीर 2010 से भी बेहतर होगी। वीआइपी की सीटें हैं – ब्रह्मपुर, बोचहां, गौरा बौराम, सिमरी बख्तियारपुर, सुगौली, मधुबनी, केवटी, साहेबगंज, बलरामपुर, अलीनगर और बनियापुर।
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वीआइपी की 11 सीटों पर क्या है संभावना?
वीआइपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राजीव मिश्रा का कहना है कि उनकी पार्टी चुनाव जीतने के लिए मैदान में उतरी है। ऐसा नहीं है कि ऐसी- वैसी सीटें दे गयीं और हम केवल उपस्थिति दर्ज कराने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। राजीव मिश्रा वरिष्ठ पत्रकार रहे हैं। उन्होंने हिंदुस्तान अखबार में काम किय़ा है। वे लोकसभा टीवी के सीइओ भी रहे हैं। वे रिसर्च मेथडोलॉजी के जानकार हैं। राजीव मिश्रा के मुताबिक, वीआइपी ने बिहार चुनाव की घोषणा से पहले इलेक्शन की तैयारी शुरू कर दी थी। पार्टी की रिसर्च टीम ने सभी 243 सीटों के मतदान आचरण के शोध के बाद पाया कि 80 सीटें ऐसी हैं जो वीआइपी के सामाजिक समीकरण के हिसाब से अनुकूल हैं। चूंकि उस समय वीआइपी महागठबंधन का हिस्सा थी इस लिए इन 80 में से उन सीटों का अध्ययन किया गया था जो राजद और कांग्रेस के कब्जे में थी। इसके बाद 40 उन सीटों को चिह्नित किया जहां पार्टी के लिए बेहतर संभावनाएं थीं। फिर राजद से बात शुरू हुई। राजद नेता तेजस्वी यादव ने इन 40 में 25 सीटें देने के लिए हामी भर ली थी। वीआइपी को डिप्टी सीएम का पोस्ट देने पर भी सहमति बनी थी। लेकिन जब तेजस्वी यादव ने संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में इसकी घोषणा नहीं की तो वीआइपी ने महागठबंधन से किनार कर लिया। जब एनडीए से ऑफर आया तो हमने आनन-फानन में फिर उन सीटों की पहचान की जो कोर वोट स्ट्रेंग्थ के हिसाब से वीआइपी के लिए मजबूत थीं। राजीव मिश्रा के मुताबिक, हमने समाजिक समीकरण, वोटर टर्न आउट रेशियो और निषाद समाज की सहमति के आधार पर ये 11 सीटें ली हैं। अगर कोई दल हमें कमजोर कह रहा है तो ये उसकी समस्या है। हम पूरी तैयारी के साथ मैदान में हैं।
मुकेश
सहनी
2019
में
क्यों
नहीं
जीते?
अगर निषाद समाज एकजुट है और इसकी आबादी 15 फीसदी है तो मुकेश सहनी 2019 के लोकसभा चुनाव में क्यों नहीं जीत पाये ? उस समय तो वे निषाद बहुल खगड़िया से चुनावी मैदान में उतरे थे और उन्हें लालू यादव जैसे बड़े नेता का समर्थन भी हासिल था, फिर कहां कसर रह गयी ? इस सवाल के जवाब में राजीव मिश्रा कहते हैं, लोकसभा चुनाव में बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक ने नैरेटिव ही बदल दिया था। नरेन्द्र मोदी जी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए लोगों ने एनडीए के पक्ष में वोट कर दिया। स्थानीय मुद्दे गौण हो गये इसलिए हमारे प्रदर्शन पर इसका असर पड़ा। लोकसभा चुनाव के आधार पर अभी के विधानसभा चुनाव का आकलन नहीं किया जा सकता। 2020 का चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़ा जा रहा है। हमने निषाद समाज की गुरबत को चुनावी मुद्दा बनाया है। इस समाज की 22 उपजातियां नाव चलाने, नाव बनाने और मछली पकड़ने के काम में लगीं हैं। हमने नीतीश कुमार जी के नेतृत्व में इस पिछड़े समाज को आगे ले जाने का वादा किया है।
वीआइपी की मजबूत सीटें
वीआइपी ने मधुबनी सीट से भाजपा के विधान पार्षद सुमन महासेठ को अपना उम्मीदवार बनाया है। सुमन महासेठ जुलाई 2015 में बिहार विधान परिषद के लिए चुने गये थे। उनका कार्यकाल 2021 तक है। लेकिन अब वे वीआइपी के नाव छाप पर मधुबनी से चुनाव लड़ेंगे। उनका मुकाबला राजद के समीर कुमार महासेठ से है। समीर ने 2015 के चुनाव में भाजपा के रामदेव महतो को हराया था। मधुबनी सीट पर भाजपा के रामदेव महतो 2000, फरवरी 2005, अक्टूबर 2005 और 2010 में विधायक चुने गये थे। यानी इस सीट पर भाजपा का चार बार कब्जा रह चुका है। मधुबनी बिहार की उन सीटों में एक है जहां निषाद वोटरों की संख्या निर्णायक है। अगर एनडीए के आधार मत में निषाद वोट भी जुड़ जाएंगे तो सुमन कुमार महासेठ की स्थिति मजबूत हो जाएगी। इसी तरह सिमरी बख्तियारपुर की सीट भी वीआइपी के लिए काफी मजबूत मानी जा रही है। इस सीट पर पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी चुनाव लड़ेंगे। 2019 के उपचुनाव में इस सीट पर वीआइपी के उम्मादवार को करीब 25 हजार वोट मिले थे। हालांकि तब यहां राजद की जीत हुई थी लेकिन इससे निषाद वोटरों की गोलबंदी का अंदाजा लग गया था। इसी वोटिंग पैटर्न को ध्यान में रख मुकेश सहनी यहां से चुनाव लड़ रहे हैं। भोजपुर की ब्रह्मपुर सीट पर भी अगर भाजपा और निषाद वोटों की संख्या जोड़ दी जाए तो यहां भी वीआइपी के लिए बेहतर संभावना है। अली नगर से मिश्री लाल यादव को उम्मीदवार बना कर यादव, निषाद वोटरों को लुभाने की कोशिश की गयी है। मिश्री लाल यादव भी भाजपा के नेता हैं जिन पर मुकेश सहनी ने दांव खेला है। उन्होंने 2015 में भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था और राजद के अब्दुल बारी सिद्दीकी से हार गये थे। केवटी से हरि सहनी को मैदान में उतारा गया है। 2015 में केवटी से राजद के फराज फातिमी जीते थे। लेकिन फराज अब जदयू में आ गये हैं और उन्हें दरभंगा ग्रामीण से टिकट मिला है। फराज के सहयोग से हरि सहनी की स्थिति बेहतर दिखायी पड़ रही है।
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