बिहार के इस ज़िले में है Footballer Village, हर घर में मिलेंगे एक खिलाड़ी,राष्ट्रीय स्तर पर लहरा चुके हैं परचम
Footballer Village के रहने वाले लोगों की दिनचर्या में फुटबॉल खेलना शामिल हैं। बच्चे पढ़ाई के साथ खेलते हैं तो वहीं कुछ लोग काम से फुरसत पाकर फुटबॉल खेलते हैं। खिलाड़ियों ने नेशनल लेवल तक का सफर तय किया है।
Footballer Village नाम सुनकर आप भी हैरान हो रहे होंगे की आखिर माजरा क्या है ? दरअसल पूर्णिया ज़िले में एक गांव है जहां के लोगों को फुटबॉल खेलने का बहुत पसंद है। यहां हर घर में फुटबॉल प्रेमी रहते हैं, हर परिवार में एक फुटबॉलर रहता है। ऐसा नहीं है कि झील टोले के खिलाड़ी सिर्फ अपने गांव में ही फुटबॉल खेलते हैं, बल्कि यहां बच्चों ने अंडर 14,17 औ 19 ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर अपने हुनर का परचम लहराया है।
झील टोला को ‘फुटबॉलर गांव’ की संज्ञा
पूर्णिया ज़िले के झील टोला में आज भी लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। इन सबके बावजूद यहां के बच्चों ने भारत को फीफा वर्ल्ड की दहलीज तक ले जाने का सपना संजो रखा है। इस मोहल्ले में करीब 200 लोग रहते हैं। शहर से सिर्फ तीन किलोमीटर दूरी पर बसे गांव के बच्चों की सुबह दौड़ के साथ होती है। वहीं शाम ट्रेनिंग पर खत्म होती है। लोग इस मोहल्ले को ‘फुटबॉलर गांव' की संज्ञा देते हैं। फुटबॉल खेल में युवाओं की दिलचस्पी को देखते हुए गांव के कुछ लोगों ने मिलकर 1980 सरना फुटबॉल का गठन किया था। करीब 42 सालों से यहां के युवा और बच्चे फुटबॉल में अपने हुनर का परचम लहरा रहे हैं। अंडर-14, अंडर-17 और अंडर-19 से लेकर नेशनल टीम तक का सफर तय कर चुके हैं।
नेशनल लेवल तक बना चुके हैं पहचान
स्थानीय लोगों ने बताया कि झील टोले के खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके हैं। उन्होंने बताया कि इस गांव से ताल्लुक रखने वाले सुमन कुजुर नेशनल लेवल तक का सफर तय कर चुके हैं। फुटबॉल खेलने के जुनून की वजह से दो बार उनका पैर भी टूट गया, इसके बावजूद उन्होंने फुटबॉल खेलना नहीं छोड़ा। झील टोला के निवासी अमित लकड़ा पांच साल पहले जूनियर नेशनल सुब्रतो कप में खेलने के लिए जम्मू गये थे। इसी गांव के दो सगे भाई राहुल तिर्की और सौरव तिर्की हाल ही में संतोष ट्राफी के कैंप का हिस्सा बने हैं।
झील टोला के लोगों की दिनचर्या में शामिल है फुटबॉल
शुभम आनंद (सचिव, सरना क्लब) की मानें तो इस गांव के बच्चों के दिनचर्या में फुटबॉल खेलना शामिल है। यहां के बच्चे और युवा वक्त निकाल कर फुटबॉल ज़रूर खेलते हैं। कोई पढ़ाई के साथ फुटबॉल खेलता है तो कोई अपने काम से फुरसत निकाल कर फुटबॉल खेलता है। गांव के लोगों का कहना है कि सरकार की तरफ़ से किसी भी प्रकार की कोई मदद नहीं मिल रही है। यही वजह है कि यहां के कई खिलाड़ी अच्छा खेलने का बावजूद सही मंज़िल तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। सरकार को चाहिए कि खिलाड़ियों की हौसला अफज़ाई करे और उचित संसाधन मिले, ताकि खिलाड़ी प्रदेश का झंडा बुलंद कर सकें।
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'वरिष्ठ फुटबॉल खिलाड़ी करते हैं मदद'
स्थानीय लोगों ने बताया कि झील टोला के वरिष्ठ खिलाडी और समाज के लोग सहायता करते हैं, जिससे क्लब का संचालन हो पा रहा है। नौकरी कर रहे खिलाड़ी खास तौर से मदद करते हैं, उनके पहल की वजह से ही युवाओं में फुटबॉल के प्रति रुची है। युवाओं के खेलों में मशगूल रहने से एक अच्छी बात यह है कि, गांव के किसी भी व्यक्ति का नाम आपराधिक घटनाओं में नहीं है। यहां के युवाओं का किसी प्रकार का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है। सरकार अगर यहां के खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करे तो देश के नाम फीफी कप भी ला सकते हैं।
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