बिहार चुनाव के नतीजे चाहे जो भी आए हरियाणा कनेक्शन की है अहम भूमिका
बिहार में चाहे एनडीए की सरकार बने या महागठबंधन की, दोनों ही सूरत में उसे कैसे हरियाणा कनेक्शन प्रभावित कर रहा है. पढ़ें.
बिहार चुनाव का नतीजा चाहे जो भी निकले, चाहे एनडीए की सरकार बने या महागठबंधन की, दोनों ही सूरत में उसे हरियाणा कनेक्शन प्रभावित कर रहा है. चौंकिए नहीं, ये बिहार चुनाव का वो सच है जिसका असर चुनाव के दौरान पार्टियों की रणनीति पर देखा गया.
पहले बात करते हैं महागठबंधन की. अगर बिहार में महागठबंधन की सरकार बनती है तो इसमें जिन दो लोगों की अहम भूमिका होगी वो दोनों हरियाणा के हैं. इनमें एक ने पर्दे के पीछे अहम भूमिका अदा की तो दूसरे ने पर्दे के सामने आकर ज़िम्मेदारियों को बख़ूबी सँभाला है.
बिहार में महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं तेजस्वी यादव. उनके राजनीतिक सलाहकार और निजी सचिव संजय यादव हरियाणा के हैं. 37 साल के संजय बीते एक दशक से तेजस्वी यादव से जुड़े हुए हैं. दोनों की मुलाक़ात दिल्ली में कॉमन दोस्तों के ज़रिए 2010 में हुई थी और तब तेजस्वी यादव आईपीएल में अपना करियर तलाश रहे थे.
तेजस्वी के सलाहकार संजय
उस वक़्त भोपाल यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर साइंस में एमएससी और इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी, दिल्ली से एमबीए करने के बाद तीन मल्टीनेशनल आईटी कंपनियों में नौकरियाँ बदल चुके थे.
अगले दो साल तक दोनों एक दूसरे से समय-समय पर मिलते रहे और सामाजिक न्याय की राजनीति को लेकर संजय की समझ ने उन्हें तेजस्वी के क़रीब कर दिया. फिर 2012 में तेजस्वी यादव ने क्रिकेट छोड़कर पूरी तरह से राजनीति पर फ़ोकस करने का निश्चय किया तो उन्होंने संजय यादव को नौकरी छोड़कर साथ काम करने को कहा.
हरियाणा के महेंद्रगढ़ ज़िले के नांगल सिरोही गाँव के संजय यादव इसके बाद अपना बोरिया-बिस्तर समेट कर 10 सर्कुलर रोड, पहुँच गए. बीते आठ साल से उन्होंने न केवल तेजस्वी यादव के हर क़दम की रूपरेखा तैयार की बल्कि सीमित संसाधनों के बाद भी राष्ट्रीय जनता दल को लेकर ऑनलाइन और ऑफ़ लाइन प्रचार व्यवस्था का ज़िम्मा भी सँभाला है.
2012 के बाद संजय ने बिहार की हर विधानसभा सीट का डेमोग्राफिक अध्ययन किया और किस विधानसभा में कौन सा फैक्टर अहम होगा, इसको समझा. 2015 में पार्टी विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी. नीतीश कुमार की सरकार में तेजस्वी यादव उप मुख्यमंत्री बने.
हालाँकि तब प्रशांत किशोर के योगदान की चर्चा ज़्यादा हुई थी लेकिन तब भी प्रशांत किशोर ने ज़्यादा काम नीतीश कुमार को लेकर किया था और संजय ने आरजेडी के लिए किया था. लेकिन संजय यादव की सारी समझ 2019 के आम चुनाव में नाकाम हो गई. पार्टी का खाता नहीं खुल पाया.
और तो और इस बार के चुनाव अभियान में आरजेडी के पास लालू प्रसाद यादव नहीं थे लेकिन रणनीति के स्तर पर पार्टी को उनकी कोई कमी नहीं खली. संजय यादव उस टीम में सबसे मुखर थे जो तेजस्वी के पोस्टर के साथ चुनाव में उतरने की वकालत कर रहा था. ये भरोसा सही साबित होता लग रहा है.
इस दौरान वे न केवल तेजस्वी यादव की चुनावी सभाओं को मैनेज कर रहे थे बल्कि अलग अलग सभाओं में तेजस्वी को क्या बोलना चाहिए, इसकी रूपरेखा भी बना रहे थे.
तेजस्वी यादव हर दिन 17-18 सभाओं को संबोधित कर रहे थे और उसका कंटेंट मुहैया कराने के साथ-साथ तेजस्वी की बात पूरे बिहार तक पहुँचे, इसकी कोशिश भी लगातार हुई.
इन सबके बीच अगले दिन की सभाओं की तैयारी और क्षेत्र से आ रही सभाओं की माँग पर ध्यान देने के अलावा हेलीकॉप्टर लैंड करने का अनुमति पत्र मिले, विपक्षी नेताओं ने क्या निशाना साधा है, पार्टी के कौन-से वरिष्ठ नेता किस बात पर नाराज़ हो गए हैं, किस उम्मीदवार के प्रति स्थानीय लोगों में रोष है, संजय सबको सुनते समझते रहे. इसी बीच दिल्ली से आए पत्रकारों के अनुरोध को भी सँभालते रहे.
इन सबके बीच संजय से नाराज़गी ज़ाहिर करने वाले पार्टी के नेता, पदाधिकारी भी हैं. कई इलाक़े के हेवीवेट नेताओं को लगता है कि उनकी बात अनसुनी की जा रही है लेकिन संजय इन सब स्थानीय फ़ैक्टरों से बचे रहते हैं क्योंकि वे ख़ुद बिहार नहीं हैं, लिहाजा कोई उनके लिए अपने इलाक़े का या अपने क्षेत्र का नहीं है.
ऐसे में, अगर तेजस्वी मुख्यमंत्री बनते हैं तो संजय यादव की भूमिका को नज़रअंदाज नहीं किया जाएगा और सरकार में उनकी भूमिका, पद के साथ या बिना किसी पद के, किस रूप में होगी ये देखने वाली बात होगी.
सुरजेवाला की भूमिका अहम
महागठबंधन में शामिल कांग्रेस इस बार बिहार में 70 विधानसभा सीटों पर चुनाव मैदान में उतरी है. तमाम एक्ज़िट पोल में कांग्रेस को क़रीब 30 सीटें मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है.
बिहार चुनाव में कांग्रेस की कमान 53 साल के हरियाणा के नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला के हाथों में थी. ख़ुद सुरजेवाला ने कांग्रेस की ओर से सबसे ज़्यादा 27 चुनावी सभाओं को संबोधित किया और राहुल गांधी सहित तमाम दूसरे कांग्रेसी नेताओं के चुनाव प्रचार के साथ-साथ मीडिया का प्रबंधन भी सँभाला.
यही वजह है कि नतीजा आने से ठीक पहले कांग्रेस की ओर से एक बार फिर रणदीप सिंह सुरेजवाला को पटना में तैनात किया गया है. किसी भी गठबंधन को बहुमत नहीं मिलने की सूरत में कांग्रेस को अपने विधायकों को एकजुट रखना होगा, और इसकी ज़िम्मेदारी सुरेजवाला को सौंपी गई है.
कांग्रेस महासचिव सुरेजवाला हरियाणा के कैथल से कई बार विधायक रहे और हरियाणा सरकार के सबसे कम उम्र में मंत्री तक बने. मृदुभाषी सुरजेवाला को राहुल गाँधी का बेहद ख़ास माना जाता है और वे पार्टी के कम्युनिकेशन विंग के प्रभारी भी रह चुके हैं.
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बिहार बीजेपी के चाणक्य
आरजेडी और कांग्रेस की ओर से बिहार के सभी समीकरणों को बनाने में हरियाणा कनेक्शन की भूमिका तो आपको समझ में आ गई होगी. लेकिन अगर बिहार चुनाव में एनडीए गठबंधन को बहुमत मिला तो क्या उसका भी कोई हरियाणा कनेक्शन है. तो जबाव है हां. चौंकिए नहीं.
दरअसल बिहार के बीजेपी प्रभारी भूपेंद्र सिंह यादव मूलरूप से हरियाणा के ही हैं, लेकिन यह बात सार्वजनिक तौर पर कम लोगों को ही पता है.
उनका परिवार हरियाणा के गुरुग्राम ज़िले से जुड़ा है जो बाद में राजस्थान शिफ़्ट हो गया और वे राज्यसभा में लगातार दो बार राजस्थान से चुने गए हैं.
भूपेंद्र यादव को चुनावी रणनीति में माहिर मानने वालों की कमी नहीं है. 2013 में राजस्थान, 2017 में गुजरात, 2014 में झारखंड और 2017 में उत्तर प्रदेश में बीजेपी की जीत में उनकी अहम भूमिका रही.
2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने 40 की 40 सीटों पर जीत का दावा किया था, उनके गठबंधन को 39 सीटों पर जीत मिली. लेकिन इस बार वे सीटों को लेकर कोई दावा नहीं करते बल्कि कहते हैं, '15 साल के एंटी इनकम्बेंसी के बाद भी हमारी सरकार की वापसी होगी, बहुमत हमें ही मिलेगा.'
बिहार की प्रत्येक विधानसभा सीट पर न केवल अपने बल्कि विपक्षी उम्मीदवार और बाग़ी उम्मीदवारों के नाम तक भूपेंद्र यादव के टिप्स पर मौजूद हैं.
इस बार के चुनाव परिणाम को लेकर एक्ज़िट पोल में एनडीए गठबंधन भले ही पिछड़ रहा हो लेकिन भारतीय जनता पार्टी की ताक़त बढ़ती हुई दिख रही है.
बिहार बीजेपी की पहचान पहले स्वर्णों की पार्टी के तौर पर होती रही थी लेकिन भूपेंद्र यादव ने पार्टी में बड़े स्तर पर पिछड़े, अति पिछड़ों को जोड़ा है.
जिसके चलते पार्टी के अंदर एक तबके में नाराज़गी भी है और बहुमत नहीं मिलने पर भूपेंद्र यादव की आलोचना करने वालों की संख्या भी बढ़ सकती है लेकिन वे कहते हैं, 'राजनीति में वोटबैंक की भूमिका ही अहम होती है, हमारी पार्टी सबको साथ लेकर चलने वाली पार्टी है और मुझे इसका जनाधार बढ़ाने की भूमिका मिली है.'
एनडीए के गठबंधन और बीजेपी के सीटों पर टिकट वितरण करने वाली टीम में उनकी भूमिका अहम रही है.
हालाँकि एनडीए से अलग होकर चिराग पासवान के अकेले चुनाव मैदान में उतरने का नुक़सान इस गठबंधन को उठाना पड़ सकता है. लेकिन भूपेंद्र यादव कहते हैं कि नतीजों का इंतज़ार कीजिए.