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नज़रिया: 'मोदी के रास्ते का आख़िरी कांटा निकल चुका है'

 

  • बिहार में राजनीति ने जिस तेज़ी से करवट ली है इस तरह बहुत कम देखने को मिलता है.
  • मुख्यमंत्री नीतीश ने लालू और कांग्रेस से गठबंधन ख़त्म कर भाजपा के साथ सरकार बना ली.
  • साल 2015 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने बिहार में मोदी की भाजपा को क़रारी मात दी थी.

 

By शकील अख़्तर - बीबीसी उर्दू संवाददाता
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नीतीश कुमार
MONEY SHARMA/AFP/Getty Images
नीतीश कुमार

बिहार में राजनीति ने जिस तेज़ी से करवट ली है इस तरह बहुत कम देखने को मिलता है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद और कांग्रेस से अपना गठबंधन अचानक ख़त्म कर कुछ ही घंटों में भाजपा के साथ सरकार बना ली.

भाजपा गठबंधन के साथ मुख्यमंत्री बनते ही नीतीश ने लालू और उनके बेटे पर वार करते हुए कहा कि वह अपनी भ्रष्टाचार के पाप को धर्मनिरपेक्षता के चोले से छिपाना चाहते हैं.

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लालू के बेटे और पूर्व डिप्टी मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और बेटी मीसा यादव सहित परिवार के कई लोगों के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार से जमा की गई संपत्तियों के कई मामलों हाल में दर्ज किए गए थे और उनके इस्तीफ़े की मांग ज़ोर पकड़ रही थी.

लेकिन नीतीश के लालू और कांग्रेस से गठबंधन तोड़ने की वजह क्या यही थी?

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मोदी
GIL COHEN-MAGEN/AFP/Getty Images
मोदी

विपक्षी दलों में नीतीश कुमार एकमात्र ऐसे विश्वसनीय और अनुभवी नेता थे जिनके बारे में यह राय बनती जा रही थी कि आगामी लोकसभा चुनाव में एक संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार के तौर पर केवल वही नरेंद्र मोदी को चुनौती देने की क्षमता रखते हैं.

साल 2015 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने बिहार में मोदी की भाजपा को क़रारी मात दी थी. एक प्रतिद्वंद्वी के तौर पर वो एक शक्तिशाली नेता के रूप में उभरे थे.

भाजपा के ख़ेमे में वापस चले जाने से नीतीश ने प्रधानमंत्री बन सकने का अपना सपना स्पष्ट तौर पर तोड़ दिया है.

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कारण जो भी रहा हो लेकिन यह स्पष्ट है कि लालू और कांग्रेस के गठबंधन के बाद पिछले दो साल में मुख्यमंत्री के रूप में उनका काम-काज उतना अच्छा नहीं रहा था जितना कि इससे पहले के दौर में था.

उन्हें विकास और परिवर्तन का नेता माना जाता था. लेकिन उनकी यह छवि पिछले दो वर्षों में तेज़ी से आहत हुई है.

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नीतीश, सुशील और तेजस्वी
BBC
नीतीश, सुशील और तेजस्वी

नीतीश को यह अहसास होने लगा था कि इस गठबंधन से उनकी मुश्किलें बढ़ रही हैं.

लालू प्रसाद और उनके बेटे और बेटी पर भ्रष्टाचार के आरोप के बाद उन्हें यह महसूस हुआ कि लालू की पार्टी अब ख़तरे में है और उनके साथ गठबंधन रखना खुद उनके अपने अस्तित्व के लिए समस्या बन जाएगी.

लालू और कांग्रेस से गठबंधन तोड़ कर उन्होंने अगले विधानसभा चुनाव तक अपनी राजनीतिक स्थिति वर्तमान में ठीक कर ली है.

बीते चुनाव में बिहार एकमात्र ऐसा राज्य था जहां हिंदुत्व की लहर प्रवेश नहीं कर पाई थी.

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सीबीआई ने भ्रष्टाचार के आरोप में लालू और उनके पूरे 'राजनीतिक परिवार' को अब अपने घेरे में ले लिया है. पार्टी अब विपक्ष में चली गई है.

राजद आंतरिक अराजकता और बेचैनियों से घिरा हुआ है. इस बदलती राजनीति में लालू की पार्टी बच सकेगी या नहीं यह जानने में अभी अधिक समय नहीं लगेगा.

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लालू
PRAKASH SINGH/AFP/Getty Images
लालू

नीतीश ने भाजपा के साथ सरकार बनाकर 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए बिहार के दरवाज़े खोल दिए हैं.

नरेंद्र मोदी के दोबारा सत्ता में आने के लिए उत्तर प्रदेश और बिहार दोनों राज्यों में बेहतर प्रदर्शन करने होंगे. बिहार में विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 53 सीटें जीती थीं.

कई बार अपना सियासी पाला बदलने से नीतीश कुमार का राजनीतिक क़द कम हुआ है और विश्वसनीयता घटी है.

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लेकिन लालू की पार्टी में अराजकता और संभावित टूट-फूट से आने वाले दिनों में बिहार में भाजपा की लोकप्रियता में ज़रूर तेजी से वृद्धि होगी.

भाजपा की बढ़ती लोकप्रियता और हिंदुत्व की लहर नीतीश कुमार को पीछे धकेल सकती है.

बिहार के इस राजनीतिक घटनाचक्र में सबसे बड़ी जीत प्रधानमंत्री मोदी की हुई है जिनके लिए भविष्य की राजनीति के रास्ते का आख़िरी कांटा अब निकल चुका है.

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English summary
Bihar Chief Minister nitish's Lalu and Congress Reasons to Break the Alliance?.
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