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Bihar Elections 2020: क्या ‘रघुवंश फैक्टर’ की अनदेखी राजद को पड़ेगी भारी?

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क्या ‘रघुवंश फैक्टर’ की अनदेखी राजद को पड़ेगी भारी?

राजनीति के प्रकांड पंडित महात्मा विदुर का कथन है, जो राजा विद्वानों के विचारों पर ध्यान नहीं देता और अहंकार का प्रदर्शन करता है, उसकी सत्ता का नाश निश्चित है। रघुवंश बाबू ने भी राजद को समझाया था कि उसे वंशवाद त्याग कर जेपी, लोहिया और कर्पूरी के आदर्शों पर चलना चाहिए। राजद के लिए रघुवंश बाबू महात्मा विदुर की तरह ही थे। हमेशा सही रास्ते पर चलने की सीख दी। लेकिन लगता है राजद ने उनकी शिक्षा को मन से ग्रहण नहीं किया। राजद के नेता रघुवंश बाबू की चिठ्ठी की विश्वसनीयता पर सवाल उठा कर सच्चाई से मुंह मोड़ रहे हैं। वे सच स्वीकारने की बजाय इस बात पर बहस कर रहे हैं कि ये चिट्ठी लिखी कैसे गयी। रघुवंश बाबू की विदुर नीति थी, अनुशासन या विनाश। एक बार राजद के पूर्व सांसद पप्पू यादव ने लालू यादव को धृतराष्ट्र कहा था। तो क्या पुत्र मोह के कारण राजद का पतन अब निकट है ?

अनुशासन बिना कैसे मिलेगा शासन ?

अनुशासन बिना कैसे मिलेगा शासन ?

लालू की वंशवादी राजनीति का विरोध करते-करते रघुवंश बाबू स्वर्ग सिधार गये। जीतन राम मांझी का आरोप है कि तेजप्रताप के अपमान से रघुवंश बाबू इतने आहत हुए कि उनकी जान चली गयी। एक लोटा पानी वाले बयान के कारण अब तेजप्रताप यादव पहले से अधिक निशाने पर हैं। बार-बार विवादास्पद बयान देकर निकल जाने वाले तेजप्रताप पहली मर्तबा शिकंजे में फंसे हैं। इसी दबाव का असर है कि वे रघुवंश बाबू की अंत्येष्टि में शामिल नहीं हुए। दूर एकांत में उनकी तस्वीर को श्रद्धांजलि दे कर तेजप्रताप क्या अपनी गलती सुधार रहे हैं ? या फिर वे राजनीतिक नुकसान से बचने के लिए ऐसा कर रहे हैं ? राजद के पूर्व नेता चंद्रिका राय और महेश्वर यादव कह चुके हैं कि तेजप्रताप की वजह से पार्टी को बहुत नुकसान हो चुका है। उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होने से गलत संदेश जा रहा है। यह सच है कि लोकसभा चुनाव में राजद कम से कम जहानाबाद की एक सीट तो जीत ही सकता था। लेकिन तेजप्रताप ने यहां अपना उम्मीदवार दे कर राजद को हरा दिया था। इतनी बड़ी गलती के बाद भी तेजप्रताप पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। अगर उस समय एक्शन लिया गया होता तो आज ये स्थिति नहीं आती।

राजद में वरिष्ठ नेताओं के सम्मान का सवाल

राजद में वरिष्ठ नेताओं के सम्मान का सवाल

रघुवंश बाबू के करण राजद में वरिष्ठ नेताओं के सम्मान का सवाल भी सिर उठा कर खड़ा हो गया है। आरोप है कि लालू यादव ने अपने पुत्रों को राजनीति में स्थापित करने के लिए राजद के समर्पित और अनुभवी नेताओं को दरकिनार कर दिया। हालात के कारण ऐसे नेता चुप हैं। रघुवंश बाबू भी बहुत दिनों तक चुप ही रहे थे। लेकिन पिछले एक साल से उन्होंने सच बोलने की ठान ली थी। 2010 में जब राजद के 22 विधायक थे तो नेता प्रतिपक्ष का पद अब्दुल बारी सिद्दीकी को दिया गया था। नेता प्रतिपक्ष की बहुत बड़ी अहमियत है। माना जाता है कि जब पार्टी सत्ता में आएगी तो बागडोर उसे ही मिलेगी। 1988 में लालू यादव नेता प्रतिपक्ष बने थे और 1990 में जब जनता दल को जीत मिली तो वे मुख्यमंत्री बने थे। 2015 में जब राजद को सत्ता में शामिल होने का मौका मिला तो अब्दुल बारी सिद्दीकी की वरियता तेजस्वी और तेजप्रताप के बाद तीसरे नम्बर पर ढकेल दी गयी। इतना ही नहीं जब 2017 में नीतीश कुमार ने राजद को सत्ता से अलग कर दिया तो नेता प्रतिपक्ष का पद तेजस्वी को दे दिया गया। अब्दुल बारी सिद्दीकी सीन से ही गायब हो गये। यह भी आरोप लगता है कि जगदानंद सिंह कहने के लिए प्रदेश अध्यक्ष हैं, सारे फैसले तेजस्वी लेते हैं। तेज प्रताप यादव पर आरोप लगता रहा है कि वे पार्टी के सीनियर लीडरों का सम्मान नहीं करते। लेकिन रघुवंश बाबू की मौत ने राजद की इस कुप्रथा को बहस का मुद्दा बना दिया है। 2020 के चुनाव में अगर ये मुद्दा उछला तो राजद को इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

दोराहे पर राजद

दोराहे पर राजद

2020 चुनाव के पहले जिन परिस्थितियों के बीच रघुवंश बाबू की मौत हुई है उसने राजद को दोराहे पर खड़ा कर दिया है। लोकसभा चुनाव में हार के बाद राजद ने सवर्णों को भी पार्टी से जोड़ने की नीति बनायी थी। लेकिन उनके गुजर जाने से राजद की इस मुहिम को जोर का झटका लगा है। लोकसभा चुनाव में सवर्ण आरक्षण का विरोध करना राजद को महंगा पड़ गया था। अब आशंका जतायी जा रही है कि ‘रघुवंश फैक्टर' के कारण सवर्ण विधानसभा चुनाव में भी विरोधी रुख कायम रख सकते हैं। पार्टी की समीक्षा बैठकों में राजद के नेता मान चुके हैं कि चुनावी जीत के लिए अब एमवाई समीकरण ही काफी नहीं है। गैरयादव जातियों को भी पार्टी से जोड़ना होगा। मौजूदा समय में यही माना जाता है कि अभी अतिपिछड़ी जातियों पर नीतीश और भाजपा का प्रभाव है। 2020 में राजद को बदली हुई परिस्थितियों में चुनाव लड़ना है। अगर वह नीति सम्मत फैसला लेने में असफल रहता है तो नतीजे कुछ भी हो सकते हैं।

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English summary
Bihar assembly elections 2020: Will RJD pay cost Ignoring Raghuvansh prasad sing Factor
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