राघोपुर का गेम प्लान: क्यों चिराग चाहते हैं कि तेजस्वी जीत जाएं?
चिराग पासवान ने कुछ सीटों पर भाजपा के साथ फ्रैंडली मैच खेलने का फैसला किया है। चिराग के इस फैसले से तेजस्वी को फायदा मिलता दिख रहा है। लोजपा ने राघोपुर से राकेश रोशन को टिकट दिया है। इस सीट पर भाजपा के सतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच आमने सामने की लड़ाई थी। लेकिन अब लोजपा के चुनाव मैदान में आने से राजद विरोधी मतों में विभाजन की आशंका बढ़ गयी है। राकेश रोशन बिहार के बहुबली नेता बृजनाथी सिंह के पुत्र हैं। दबंग बृजनाथी सिंह लोजपा के नेता थे जिन्हें 2016 में दिनदहाड़े एके -47 से भून दिया गया था। बृजनाथी सिंह का राजपूत समुदाय में अभी भी प्रभाव माना जाता है। राघोपुर में अगर सवर्ण वोट बंटते हैं तो इसका सीधा फायदा तेजस्वी यादव को मिलेगा। तो क्या चिराग चाहते हैं तेजस्वी जीत कर विधान सभा में जाएं ? इस बात की चर्चा है कि चिराग, तेजस्वी की जीत इसलिए चाहते हैं ताकि वे विधानसभा में नीतीश कुमार को मजबूती से घेर सकें। सदन में तेजस्वी के हमलों से कई बार नीतीश कुमार को परेशान होते देखा गया है। चिराग, नीतीश कुमार की इस परेशानी को आगे भी देखना चाहते हैं। हालांकि लोजपा नेताओं का कहना है कि राकेश रोशन को उनकी योग्यता के आधार पर उम्मीदवार बनाया गया है। राकेश आइटी इंजीनियर हैं और वे लोजपा के आइटी सेल के प्रदेश अध्यक्ष हैं। वे पार्टी के चुनावी रणनीतिकारों में एक हैं। राघोपुर उनका गृहक्षेत्र है इसलिए उन्हें यहां से टिकट दिया गया है। वे 2015 में भी सपा के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ चुके हैं।
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राघोपुर में तेजस्वी की स्थिति
2015 में तेजस्वी यादव राघोपुर से तब जीते थे जब नीतीश कुमार उनके साथ थे। उनको चुनौती देने वाले भाजपा के सतीश कुमार पहले जदयू में थे। सतीश 2010 में जदयू के उम्मीदवार थे। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी जैसी मजबूत नेता को हरा कर तहलका मचा दिया था। लेकिन 2015 में जब नीतीश लालू के साथ चले गये तो सतीश भाजपा में आ गये। 2015 में तेजस्वी को 91 हजार 236 वोट मिले थे जब कि सतीश कुमार को 68 हजार 503 वोट। इस सीट पर लालू यादव और राबड़ी देवी ने भी लड़ा था लेकिन उनको भी इतने वोट नहीं मिले थे। लालू यादव को 1995 में यहां करीब 74 हजार वोट मिले थे तो राबड़ी देवी को यहां अधिकतम 48 हजार के आसपास ही वोट मिले हैं। माना जाता है कि तेजस्वी को 91 हजार वोट इस मिल गये थे क्यों उनके साथ नीतीश कुमार भी थे। 2020 में तेजस्वी के सामने दो बड़ी मुश्किलें हैं। पहली ये कि अब उन्हें अपने दम पर चुनाव लड़ना है और दूसरी ये कि उनके सबसे मजबूत आधार रहे उदय नारायण राय उर्फ भोला राय अब विरोध में हैं। भोला राय की स्थानीय यादव राजनीति गहरी पैठ है। इसलिए तेजस्वी इस बार कांटे की लड़ाई में फंसे हुए हैं। लेकिन अब चिराग ने उनकी राह आसान कर दी है। लोजपा के राकेश जितना भी सवर्ण वोट काटेंगे तेजस्वी को उतना ही फायदा होगा।
भाजपा की दो और सीटों पर लोजपा से टक्कर
चिराग ने पहले कहा था कि वे भाजपा के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारेंगे। लेकिन जब भाजपा ने उनकी सीटिंग सीट पर कैंडिडेट दे दिये तो चिराग ने भी नये सिरे से रणनीति बनायी। चिराग को जहां भी मजबूत उम्मीदवार मिल रहे हैं वे टिकट देने में कोई संकोच नहीं कर रहे। भाजपा ने भागलपुर में रोहित पांडेय को उम्मीदवार बनाया है। चिराग ने यहां से भागलपुर के पूर्व डिप्टी मेयर राकेश कुमार वर्मा को खड़ा किया है। भागलपुर कांग्रेस की सीट है। 2015 में कांग्रेस के अजीत शर्मा ने भाजपा को हरा कर ये सीट जीती थी। भाजपा इस बार अब अपनी खोयी सीट को फिर प्राप्त करने का मंसूबा बनाये हुए थी लेकिन अब उसकी राह कठिन लग रही है। रोसड़ा सीट भाजपा के वीरेन्द्र पासवान चुनाव लड़ रहे हैं। अब इस सीट पर चिराग ने अपने चचेरे भाई कृष्णराज को चुनाव मैदान में उतार दिया है। कृष्ण राज सांसद प्रिंस राज के छोटे भाई हैं। रोसड़ा सीट भी कांग्रेस की है। 2015 में कांग्रेस के अशोक कुमार यहां से जीते थे। लेकिन कृष्ण राज के मैदान में उतर जाने से लड़ाई दिलचस्प हो गयी है।
चिराग ने एक बहनोई का भी रखा ध्यान
राम विलास पासवान की मौत के समय उनकी पहली पत्नी और दो पुत्रियों को उपेक्षित रखने का मामला सुर्खियों में आया था। उनकी एक बहन आशा और बहनोई अनिल कुमार साधु ने अपनी नाराजगी भी जाहिर की थी। लेकिन अब चिराग पासवान ने ये संदेश दिया है कि वे अपनी बहनों के प्रति कितने उदार हैं। उन्होंने अपने एक बहनोई मृणाल पासवान को राजापाकर सीट से उम्मीदवार बनाया है। मृणाल 2010 और 2015 में भी चुनाव लड़े थे लेकिन हार गये थे। इस बार वे अपने ससुर रामविलास पासवान की मौत से उपजी सहानुभूति लहर से उम्मीद लगाये बैठे हैं। अनिल साधु ने 2015 के चुनाव के समय मनपसंद सीट नहीं मिलने पर लोजपा से बगावत कर दी थी। लोकसभा चुनाव से पहले वे अपनी पत्नी आशा के साथ राजद में चले गये थे। अनिल साधु अभी राजद के ही नेता हैं।
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