बिहार चुनाव 2020: टॉम, डिक हैरी का जुमला उछाल कर क्या चिराग ने आग में घी डाल दिया है?
क्या चिराग पासवान के दिल में नीतीश कुमार के लिए खुन्नस कम नहीं हुई है? उन्होंने ये क्यों कहा कि भाजपा द्वारा चुने गये किसी भी टॉम, डिक हैरी के साथ वे खुश हैं? भाजपा ने तो बिहार चुनाव के लिए नीतीश कुमार को ही चुना है तो क्या नीतीश कुमार उनके लिए टॉम, डिक या हैरी हैं? टॉम,डिक हैरी से क्या मतलब है ? चिराग ने घुमफिरा कर नीतीश कुमार के लिए टॉम, डिक, हैरी की उपमा क्यों दी ? टॉम, डिक हैरी एक हिन्दी कॉमेडी फिल्म है जिसमें गूंगे, बहरे और नेत्रहीन, तीन दोस्तों की कहानी दिलचस्प अंदाज में पेश की गयी है। तो क्या चिराग ने नीतीश की तुलना गूंगे, बहरे किरदारों से की है?
टॉम, डिक, हैरी का क्या मतलब?
चिराग ने एनडीए की छतरी के नीचे चुनाव लड़ने की रजामंदी तो दे दी है लेकिन वे नीतीश कुमार के प्रति अभी नरम नहीं हुए हैं। वे भाजपा के फैसले को तो सिर-आंखों पर ले रहे हैं लेकिन नीतीश के लिए तल्खी कम नहीं हुई है। उनका कहना है कि एक जनप्रतिनिधि होने के नाते अगर राज्य की समस्याएं मुख्यमंत्री के सामने नहीं कहेंगे तो फिर किससे कहेंगे ? उनका साफ कहना है कि वे नीतीश कुमार के साथ उन वायदों पर काम नहीं करना चाहते जो उन्होंने 2015 के चुनाव के पहले किये थे। दरअसल नीतीश 2015 में एनडीए के साथ नहीं थे। तब उनकी राजनीति भाजपा और लोजपा के खिलाफ थी। ऐसे में वे नीतीश के पुराने वायदों के साथ कैसे काम कर सकते हैं। खबरों के मुताबिक नीतीश कुमार ने लोजपा को लेकर भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से अपनी नाराजगी जतायी थी। भाजपा की पहल के बाद चिराग ने अभी एनडीए में बने रहने की बात तो कही है लेकिन विवाद जड़ से खत्म नहीं हुआ है। युद्ध विराम के लिए वे नीतीश कुमार के लिए कोई सम्मानजनक बयान दे सकते थे । लेकिन टॉम, डिक हैरी का जुमला उछाल कर उन्होंने आग में घी डाल दिया है। वे नीतीश कुमार को अपना अभिभावक भी कह सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं कहा। चिराग को भाजपा की तो फिक्र है लेकिन उन्हें नीतीश की परवाह नहीं है। इसलिए वे बार बार कह रहे हैं कि भाजपा जो भी फैसला करेगी वो उन्हें मंजूर है। टॉम हो, डिक हो या फिर हैरी हो, भाजपा जिसे भी नेता बना दे, वे खुशी-खुशी मान लेंगे। फिल्म टॉम, डिक एंड हैरी 2006 में रिलीज हुई थी जिसमें डिनो मोरिया ने बहरे, जिम्मी शेरगिल ने गूंगे और अनूज साहनी एक नेत्रहीन की भूमिका अदा की थी। चिराग के इस बयान से सुलह की कोशिशों झटका लग सकता है।
नीतीश के मुकाबले भाजपा को तरजीह क्यों ?
चिराग पासवान नीतीश के मुकाबले भाजपा को क्यों तरजीह दे रहे हैं ? जब रामविलास पासवान ने अपने सियासी सफर के एक मोड़ पर भाजपा का साथ छोड़ दिया था तब आज चिराग सब कुछ छोड़ कर उसे क्यों गले लगा रहे हैं ? चिराग भविष्य की राजनीति के लिए बिसात बिछा रहे हैं। बिहार में सामाजिक-राजनीतिक ध्रुवीकरण से जो हालात बने हैं उसके हिसाब से किसी एक दल का अकेले सत्ता में आना अब मुश्किल है। नीतीश जैसे तपे-तपाये नेता को भी सत्ता के लिए भाजपा या राजद के मदद की दरकार पड़ती है। चिराग कुछ महीने पहले ही भविष्य में मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जता चुके हैं। उनके लिए राजद तो विकल्प हो ही नहीं सकता क्योंकि वहां तेजस्वी यादव तो खुद सीएम इन वेटिंग हैं। अब चिराग को भाजपा ही मुनासिब दोस्त दिख रही है। चिराग अपने भावी सपने के लिए भाजपा को नाराज नहीं करना चाहते हैं। शनिवार को भी चिराग ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पुरजोर तारीफ की।
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सुलह की कमान नड्डा के हाथ में
2019 के लोकसभा चुनाव के समय भाजपा और नीतीश कुमार के बीच सीट बंटवारे पर घनघोर विवाद हुआ था। एक समय बात इतनी बढ़ गयी थी कि गठबंधन टूटने के कगार पर पहुंच गया था। लेकिन ऐन वक्त पर रामविलास पासवान ने भाजपा और नीतीश के बीच मेल-मिलाप के लिए अपने अनुभव का इस्तेमाल किया। रामविलास की मध्यस्थता के कारण भाजपा और नीतीश के रिश्ते पर जमी बर्फ पिघल गयी। बाद में भाजपा इतनी उदार हो गयी कि उसने नीतीश के लिए अपनी जीती हुई सीटें भी छोड़ दी। भाजपा, जदयू और लोजपा की दोस्ती और ज्यादा निखर कर सामने आयी और तीनों ने मिल कर 40 में से 39 सीटें जीत लीं। अब विधानसभा चुनाव में जब नीतीश और लोजपा के बीच ठनी हुई है तो मध्यस्थता की जिम्मेदारी भाजपा ने उठा रखी है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की बिहार यात्रा के बाद एक प्रगति तो ये हुई कि लोजपा ने एनडीए में बने रहने की हामी भर ली। बिहारी सरोकार के कारण जेपी नड्डा की नीतीश कुमार से अच्छी पटती है, इसलिए माना जा रहा है कि समय रहते एनडीए की सेहत ठीक हो जाएगी।