Flashback BIHAR: बॉलीवुड के दो नायक बने बड़ी खबर, राजनीति के दो नायक नीतीश-तेजस्वी में हुई दिलचस्प चुनावी जंग
बिहार। साल 2020 बिहार के लिए घटनाओं से भरा रहा। इस साल कोरोना वायरस से फैली महामारी की वजह से लगे लॉकडाउन में देशभर में रोजगार के लिए फैले लाखों बिहार वासियों को कष्ट झेलकर प्रदेश वापस आना पड़ा। एक्टर सोनू सूद ने बिहार के प्रवासियों को घर लौटने में जो मदद की, उसके लिए वे प्रदेश के लोगों के लिए रियल हीरो रहे। इसी दौरान बेटी ज्योति साइकिल चलाते हुए पिता को गुरुग्राम से बिहार के दरभंगा स्थित घर ले आई। जून में बिहार निवासी एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमयी मौत ने चुनावी राजनीति को गरमा दिया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के 15 साल के शासनकाल के बाद इस बार के चुनाव में उनके सामने फिर से सत्ता में आने की बड़ी चुनौती थी जिसमें वे सफल हुए लेकिन सीटों के मामले में सहयोगी पार्टी भाजपा आगे निकल गई। चुनाव में राजद नेता तेजस्वी यादव और लोजपा नेता चिराग पासवान के युवा नेतृत्व की भी परीक्षा हुई। लंदन से पढ़कर आईं पुष्पम प्रिया चौधरी अपनी पार्टी और चुनाव के दौरान बिहार में दौरों को लेकर सोशल मीडिया पर चर्चा का केंद्र बनीं। इस साल बिहार ने रघुवंश प्रसाद सिंह, राम विलास पासवान सरीखे दिग्गज नेताओं को खो दिया। आइए साल 2020 में बिहार में हुई बड़ी घटनाओं पर एक नजर डालते हैं।
कोरोना महामारी, प्रवासी, एक्टर सोनू सूद और ज्योति
बिहार में कोरोना वायरस का संक्रमण जून के महीने में तेजी से फैला जब लॉकडाउन के बाद लाखों प्रवासी देश के अलग-अलग राज्यों से वापस लौटने लगे। 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा होते ही प्रवासियों में डर फैला और वे पैदल, रिक्शा, ठेला, साइकिल जो भी साधन मिला, उसी से घर लौटने लगे। बिहार वासियों के लिए साल 2020 का यह दौर बहुत दुखदायी रहा। महाराष्ट्र में रह रहे प्रवासियों को घर भेजने के लिए एक्टर सोनू सूद आगे आए जिनको बिहारवासी अब मसीहा से कम नहीं समझते। प्रवासियों के वापस लौटने की दर्दनाक तस्वीरें सुर्खियां बनीं। उसी दौरान गुरुग्राम में रह रही ज्योति दिव्यांग पिता को साइकिल पर लेकर सैकड़ों किलोमीटर दूर दरभंगा लौटी तो देश ही नहीं विदेश की शख्सियतों का भी उसने ध्यान खींचा। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ट्रंप ने ज्योति की प्रशंसा करते हुए ट्वीट किया। कोरोना वायरस की रोकथाम के मोर्चे पर विपक्षी नेता सीएम नीतीश कुमार पर लगातार हमलावर रहे। वहीं इस मामले में मुख्यमंत्री खुद को सफल बताते रहे। बिहार में अब तक इस वायरस से संक्रमित ढाई लाख के करीब मरीज मिल चुके हैं और 1300 से ज्यादा लोगों की मौतें हो चुकी हैं। बिहार में आरटीपीसीआर टेस्टिंग कम की गईं, वहीं कम विश्वसनीय रैपिड एंटीजन जांच ज्यादा की गईं जिसमें भारी अनियमितताएं सामने आईं।
एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमयी मौत
बिहार के पूर्णिया निवासी एक्टर सुशांत सिंह राजपूत बॉलीवुड के उभरते हुए सितारे थे। उनकी लाश फ्लैट में 14 जून को मिलने के बाद सनसनी फैल गई। पहले तो इसे खुदकुशी कहा गया लेकिन सुशांत के रिश्तेदारों, एक्टर शेखर सुमन समेत अन्य कई शख्सियतों ने इसे हत्या करार देते हुए जांच कराने की मांग की थी। सुशांत के पिता ने गर्लफ्रेंड रिया के खिलाफ पटना में केस दर्ज करा दिया। उधर महाराष्ट्र पुलिस ने कहा कि सुशांत की हत्या के कोई सबूत नहीं मिले इसलिए यह खुदकुशी ही है। बिहार पुलिस और महाराष्ट्र पुलिस के बीच विवाद में नीतीश और उद्धव सरकार में टकराव शुरू हो गया। इसी बीच, एक्ट्रेस कंगना रनौत ट्विटर के जरिए और बिहार के तत्कालीन डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय बयानबाजी करते हुए कूदे। सोशल मीडिया और टीवी मीडिया पर यह घटना इस कदर छाई कि सुशांत को न्याय दिलाने और रिया को जेल भिजवाने की मुहिम शुरू हो गई। नीतीश सरकार ने सीबीआई जांच की सिफारिश की जिस पर मोदी सरकार ने मुहर लगा दी। उधर, केंद्र सरकार की तरफ से ईडी और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो भी इस मामले में जांच करने लगी। आखिरकार रिया को गांजा रखने के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। सीबीआई जांच में सुशांत की हत्या के सबूत नहीं मिले। ईडी की जांच में कुछ सामने नहीं आया। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो अभी भी इस मामले में धड़पकड़ में लगी है। सुशांत सिंह राजपूत की मौत को बिहार की चुनावी राजनीति में भुनाने की पूरी तैयारी थी लेकिन कुछ ठोस हाथ नहीं लगने पर मंसूबे अधूरे रह गए।
गुप्तेश्वर पांडेय: एक डीजीपी जिनको सुशांत की मौत ने नेता बना दिया!
साल 2020 की अधिकांश बड़ी घटनाएं बिहार की चुनावी राजनीति से प्रेरित रहीं। एक्टर सुशांत की मौत के बाद उनको न्याय दिलाने की मांग को लेकर महाराष्ट्र सरकार और रिया चक्रवर्ती के खिलाफ दिए गए बयानों की वजह से तत्कालीन डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय चर्चा में आए। उन्होंने सीएम नीतीश की आलोचना करने पर 'रिया की औकात नहीं है' जैसे बयान भी दे डाले जिस पर सफाई भी देनी पड़ गई। सुशांत की मौत के बाद बयानबाजी से मशहूर हुए गुप्तेश्वर पांडेय ने जब अचानक सेवा से वीआरएस लिया तो उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का पता सबको चला। आनन-फानन में सीएम नीतीश से मुलाकात के बाद जदयू में शामिल हुए गुप्तेश्वर पांडेय को चुनाव लड़ने के लिए टिकट नहीं मिला तो वो सुर्खियों से गायब हो गए।
नीतीश-तेजस्वी के बीच चुनावी जंग में खिला कमल, बुझा चिराग
बाढ़ और कोरोना वायरस संक्रमण काल के बीच बिहार विधानसभा चुनाव हुआ और वह उसी तरह संपन्न हुआ जैसे कि सामान्य परिस्थितियों में होता। रैलियों में उतनी ही भीड़ जुटी और सोशल डिस्टेंसिंग व मास्क जैसे नियमों के पालन की चर्चा भी बेमानी हो गई। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने पंद्रह साल के शासनकाल के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी फैक्टर था और इसका फायदा उठाने में सहयोगी पार्टी भाजपा लगी रही। एनडीए से लोजपा अलग हुई और चिराग पासवान नीतीश कुमार पर लगातार हमलावर रहे। उधर प्रमुख विपक्षी पार्टी राजद के तेजस्वी यादव का पलड़ा भारी दिख रहा था। चुनाव की शुरुआत में तेजस्वी यादव ने सत्ता में आने पर पहले फैसले के तौर पर दस लाख लोगों को रोजगार देने का ऐलान किया जो मुद्दा पूरे चुनाव में हावी रहा। एनडीए नेताओं ने इस वादे पर तेजस्वी यादव पर लगातार हमला बोला और रोजगार का मुद्दा ही इस चुनाव के केंद्र में रहा। एग्जिट पोल में तेजस्वी यादव को जीतते हुए दिखाया गया लेकिन नतीजे आए तो उसमें राजद को 75 और भाजपा को 74 सीटें मिलीं। सीएम नीतीश की पार्टी जदयू को महज 43 सीटें मिल पाईं। चिराग पासवान को एक सीट से संतोष करना पड़ा लेकिन उन्होंने जदयू को भारी नुकसान पहुंचाया। बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश फिर से मुख्यमंत्री जरूर बने लेकिन इस बार असली कमान भाजपा के हाथ में है। चुनाव खत्म होने के बाद भाजपा ने अपने दो नेताओं को डिप्टी सीएम बनाया, साथ ही प्रदेश की राजनीति के बड़े नायक सुशील मोदी को बिहार से हटाने का फैसला लिया ताकि पार्टी प्रदेश में अपना मुख्यमंत्री तलाश सके।
बिहार राजनीति में चमके ओवैसी और वामपंथी
बिहार चुनाव में इस बार हैदराबाद के असदुद्दीन ओवैसी की मुस्लिम पहचान वाली पार्टी एआईएमआईएम और वर्ग संघर्ष की विचारधारा वाली वामपंथी पार्टियों ने अच्छा प्रदर्शन कर सबका ध्यान खींचा। जाति आधारित वोट बैंकों में बंटे बिहार में इन दोनों पार्टियों के शानदार प्रदर्शन ने राजनीतिक विश्लेषकों को सोचने पर मजबूर किया। सीमांचल में पांच सीटें एआईएमआईएम ने जीतीं। इन सभी सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की आबादी ज्यादा हैं। विश्लेषकों का कहना है कि इस बार मुस्लिम मतदाताओं ने राजद और कांग्रेस के विकल्प के तौर पर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी को वोट दिया। मुस्लिम अब अपनी पहचान और विकास चाहते हैं, सिर्फ भाजपा के खिलाफ वोट करने वाला समुदाय बनकर नहीं रहना चाहते। दूसरी तरफ, वामपंथियों की तीन पार्टियां मिलाकर 16 विधायक इस बार बने हैं। भाकपा माले ने 12, भाकपा ने 2 और माकपा ने 2 सीटों पर जीत हासिल की। बिहार में वामपंथ के चुनावी प्रदर्शन का इतिहास अच्छा रहा है लेकिन इसमें लगातार गिरावट होती चली गई। 1972 में वामपंथ दल के पास 35 सीटें थी और प्रमुख विपक्षी पार्टी थी। इसके बाद के चुनावों में गिरावट के बाद 1995 में फिर अच्छा प्रदर्शन करते हुए वामपंथी दलों में माकपा को 26, भाकपा माले को 6, सीपीआई (एम) को 2 और एमसीसी को 2 सीटों पर जीत मिली थी। 2015 के चुनाव में महज तीन सीटें पाने के बाद साल 2020 में वामपंथी दलों को फिर से उभरने का मौका मिला है।
बिहार ने खोए दो दिग्गज नेता
बिहार ने 2020 में अपने दो दिग्गज नेता खो दिए। राजद के संस्थापकों में से और लालू के करीबी रहे कद्दावर नेता रघुवंश प्रसाद सिंह कोरोना वायरस संक्रमित होने के बाद ठीक हो गए थे लेकिन उसके बाद उनको न्यूमोनिया हो गया जिसका इलाज वे दिल्ली एम्स में करा रहे थे। इसी बीच राजद में उपेक्षा और अपने इस्तीफे को लेकर वो सुर्खियों में रहे और लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप ने उनकी तुलना समंदर में एक लोटा जल से कर दी थी। 13 सितंबर को 74 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। विधायक, सांसद और केंद्रीय मंत्री रहे रघुवंश प्रसाद मनरेगा के जनक माने जाते हैं। दूसरे दिग्गज दलित नेता राम विलास पासवान का निधन 8 अक्टूबर को हुआ। कुछ दिन पहले ही उनकी हार्ट सर्जरी हुई थी। वे राजनीति के मौसम विज्ञानी कहे जाते थे और सरकार किसी की भी हो, वे उसमें शामिल होते थे। वे यूपीए और एनडीए दोनों में केंद्रीय मंत्री बने। लोजपा संस्थापक राम विलास पासवान ने पार्टी कमान बेटे चिराग पासवान को सौंप दी थी।
पुष्पम प्रिया चौधरी ने की खुद की चुनावी लॉन्चिंग
साल 2020 में यह नाम बिहार में काफी चर्चा में रहा। जदयू नेता के बेटी पुष्पम प्रिया चौधरी लंदन से पढ़कर लौटीं बिहार की युवा नेता हैं जिन्होंने प्लूरल्स पार्टी बनाकर बिहार की चुनावी राजनीति से खुद की लॉन्चिंग की। कई सीटों पर पुष्पम प्रिया चौधरी ने पार्टी प्रत्याशियों को उतारा जिसमें उनको कोई सफलता नहीं मिली लेकिन चर्चा जरूर मिली। चुनाव प्रचार के लिए बिहार के कई क्षेत्रों के दौरे पर गईं पुष्पम प्रिया यहां के खंडहर बने मिलों, ऐतिहासिक धरोहरों और प्राकृतिक जगहों के बारे में सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को बताती रहीं और सीएम बनने पर प्रदेश के विकास के दावे करती रहीं। सोशल मीडिया पर पुष्पम प्रिया काफी चर्चित रहीं और स्थानीय स्तर भी लोगों की जुबान पर उनका नाम रहा। फिलहाल वो बिहार की राजनीति में सोशल मीडिया के माध्यम से एक्टिव दिख रही हैं और लगातार अपडेट करती रहती हैं।