Bhopal News : दशहरे पर भी दिखी महंगाई की मार, 20% तक महंगे हुए रावण के पुतले
भोपाल के बांस खेड़ी ईटखेड़ी और तुलसी नगर में लगने वाले मार्केट में रावण के पुतले मिलते हैं। इन मार्केटों में 5 से 70 फीट तक के पुतले मिल जाते हैं। जहां पर 500 से लेकर ₹50 हजार तक के पुतले मिल जाएंगे।
भोपाल,4 अक्टूबर। कोरोना महामारी के बाद प्रदेश सहित पूरे देश में दशहरा का पर्व बड़े उत्साह के साथ मनाया जाएगा। लेकिन दशहरे से पहले रावण के ऊंचे-ऊंचे पुतले बनकर तैयार है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में रावण के पुतलों की बिक्री के लिए बाकायदा बाजार लगाया जाता है। भोपाल के बांस खेड़ी ईटखेड़ी और तुलसी नगर में लगने वाले इस मार्केट में रावण के पुतले मिलते हैं। इन मार्केटों में 5 से 70 फीट तक के पुतले मिल जाते हैं। अगर रावण के पुत्रों की कीमत की बात करी जाए तो यहां पर 500 से लेकर ₹50 हजार तक के पुतले बनाए गए हैं।
इस बार पुतलों की डिमांड ज्यादा
नर्मदा भवन स्थित रावण के पुतले बनाने वालों ने बताया कि इस बार रावण के पुत्रों की डिमांड बढ़ी है और एडवांस में ही कई लोगों ने रावण के पुतले बुक कर दिए थे। नर्मदा भवन पर रावण के पुतले ₹5 हजार से लेकर ₹30 हजार तक के उपलब्ध है। उन्होंने बताया कि महंगाई बढ़ने के कारण इस बार रावण के पुत्रों का भी दाम बढ़ गया है। क्योंकि इनको बनाने में काफी खर्चा होता है।
20% तक महंगे हुए रावण के पुतले
रावण के पुतले बनाने वाले प्यारे भाई ने बताया कि रावण को बनाने के लिए बांस, लकड़ी और कई प्रकार की सामग्रियों की आवश्यकता होती है। इन सब पर दाम काफी हद तक बढ़ चुके हैं। इसलिए रावण के पुतले 20 परसेंट 1 महीने हो गए। हालांकि हमने अपना लेबर रेट ज्यादा नहीं बढ़ाया है। वरना ये दाम और ज्यादा बढ़ सकते थे। उन्होंने बताया कि बारिश होने की संभावना के चलते हम एक कम कीमत पर पुतले बेचना पड़ रहे हैं।
भोपाल में कई जगहों पर रावण के पुतले का दहन किया जाता है। नार्थ टीटी नगर स्थित दशहरा मैदान में मुख्यमंत्री और राज्यपाल द्वारा रावण के पुतले का दहन किया जाता है। इसके अलावा विट्ठल मार्केट में भी रावण के बड़े पुतले का दहन किया जाता है। इस बार दशहरे पर बंदिशे नहीं है ऐसे में दशहरा उत्सव समिति या रावण दहन की तैयारी में जुटी हुई है। कोरोना वायरस के चलते 2 साल से रावण दहन का कार्यक्रम बड़े स्तर पर नहीं मनाया जा रहा था। पिछले साल तो कई कार्यक्रमों में रामलीला का मंचन ही नहीं किया गया था। वही मैदान या हॉल की कैपेसिटी से 50% लोग ही शामिल हो पाए थे।
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