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अंटार्कटिक की समुद्री बर्फ में कमी का रिकॉर्ड फिर टूटा

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तापमान बढ़ने से बर्फ पिघलती है मगर इसके बाद तापमान और बढ़ता है

फरवरी के आखिर में बर्फ से ढंके समुद्री इलाके का क्षेत्रफल 20 लाख वर्ग किलोमीटर की सांकेतिक सीमा से नीचे चला गया. 1978 से इस इलाके का सेटेलाइट से रिकॉर्ड रखा जा रहा है. इसके बाद पहली बार यहां इतनी कम बर्फ देखी गई है. एडवांसेज इन एटमोस्फेरिक साइंसेज जर्नल की एक स्टडी में यह बात पता चली है.

क्यों हुई बर्फ में कमी

रिसर्चरों ने पता लगाया है कि बर्फ में कमी का प्रमुख कारण तापमान में बदलाव है हालांकि बर्फ के द्वव्यमान में आए बदलावों ने भी थोड़ी बहुत भूमिका निभाई है. उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव दोनों इलाके में औसत तापमान 19वीं सदी के आखिर की तुलना में करीब 3 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया है. वैश्विक औसत से यह करीब तीन गुना ज्यादा है. अंटार्कटिक ने पहली बार गर्म हवाओं का अनुभव 2020 में किया था. तब यहां तापमान औसत से 9.2 डिग्री सेल्सियस ऊपर चला गया था. इसका मतलब है कि पूर्वी अंटार्कटिक में मौजूद रिसर्च सेंटर ने तापमान में सामान्य की तुलना में 30 डिग्री सेल्सियस ज्यादा तापमान दर्ज किया था. हालांकि इस तरह की असाधारण घटनाएं हाल में ही हुई हैं.

पृथ्वी का तापमान बढ़ने के नतीजे अलग अलग रूपों में नजर आ रहे हैं

1970 के दशक के आखिरी सालों से आर्कटिक में मौजूद समुद्री बर्फ हर साल तीन फीसदी घट रहा है. इसके उलट अंटार्कटिक में इसी दौर में हर दशक में बर्फ एक फीसदी बढ़ता रहा. हालांकि सालाना स्तर पर देखें तो इसमें काफी उलटफेर भी हुए. इस साल पश्चिमी अंटार्कटिका के ज्यादा हिस्सों में बर्फ सिमटी है. यह इलाका पूर्वी अंटार्कटिका की तुलना में ग्लोबल वार्मिंग के ज्यादा खतरे की जद में है.

बर्फ की कमी का असर

समुद्री बर्फ के पिघलने का समुद्री जलस्तर पर साफ असर नहीं दिखाई देता है क्योंकि बर्फ पहले से ही समुद्री पानी में है. हालांकि फिर भी बर्फ का पिघलना एक बड़ी चिंता है क्योंकि यह ग्लोबल वार्मिंग को तेज करने में मदद करता है. गुआंगझु की सन यात सेन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर चिंगहुआ यांग इस रिसर्च रिपोर्ट के सह-लेखक भी हैं. उन्होंने समझाया कि सफेद समुद्री बर्फ सूर्य की ऊर्जा को वापस अंतरिक्ष में परावर्तित कर देती है. जब यही बर्फ पिघल जाती है तो गहरे रंग के समुद्री पानी में "परावर्तन कम होता है और ऊष्मा का अवशोषण ज्यादा." प्रोफेसर यांग का कहना है, "इसके नतीजे में और ज्यादा समुद्री बर्फ पिघलती है और उष्मा का अवशोषण और बढ़ता है."

प्राचीन हिम और बर्फ सूरज से आने वाली 80 फीसदी ऊर्जा को वापस अंतरिक्ष में भेज देते हैं जबकि समुद्री पानी इतनी ही ऊर्जा को अवशोषित कर लेता है.

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कितनी कम हुई है बर्फ

25 फरवरी को बर्फ से ढंके इलाके का क्षेत्रफल 19 लाख वर्ग किलोमीटर मापा गया है. यह 1981-2010 के दौरान की औसत समुद्री बर्फ की तुलना में करीब 30 फीसदी कम है. इससे पहले 2017 में यह 20 लाख वर्ग किलोमीटर से थोड़ा ज्यादा दर्ज किया गया था. हाल के वर्षों में अंटार्कटिक में अधिकतम समुद्री बर्फ का औसत 18 लाख वर्ग किलोमीटर के आसपास रहा है.

अंटार्कटिका में विशाल हिमखंड कहीं टूट रहे हैं तो कहीं पिघल रहे हैं

इस साल समुद्री बर्फ में हुई रिकॉर्ड कमी के कारणों का विश्लेषण करने के लिए रिसर्चरों ने अंटार्कटिका के "सी आइस बजट" का परीक्षण किया है. इसमें साल दर साल खत्म हुए और नये बर्फ की मात्रा आंकने समेत हर रोज समुद्री बर्फ में हुए परिवर्तन का आकलन किया जाता है.

आर्कटिक में समुद्री बर्फ का सबसे कम क्षेत्रफल 2012 में था तब यह 34 लाख वर्ग किलोमीटर था. इसके बाद दूसरा और तीसरा सबसे कम क्षेत्रफल 2020 और 2019 में सामने आया.

पश्चिमी अंटार्कटिक में बर्फ की चादर तकरीबन छह मीटर समुद्री जल स्तर को अपने अंदर समेटे है. जबकि पूर्वी अंटार्कटिक के विशाल ग्लेशियर वैश्विक समुद्री जलस्तर को 50 मीटर तक बढ़ा सकते हैं.

एनआर/आरएस (एएफपी)

Source: DW

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English summary
Antarctic sea ice reduction record broken again
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