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पीएम ने 1954 कुंभ हादसे के नाम पर मांगा वोट, जानें क्या थी वो दिल दहला देने वाली घटना जिसमें सैकड़ों ने गंवाई जान

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Prayagraj news, प्रयागराज। उत्तर प्रदेश के कौशांबी लोकसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी के लिए बुधवार को वोट मांगने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए हुए थे। यहां उन्होने 1954 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के समय में हुये कुंभ हादसे का जिक्र का किया। पीएम ने उस हृदयविदारक घटना का जिक्र करते हुए एक बार फिर इतिहास के पन्नों को न सिर्फ कुरेदा, बल्कि गुमनाम हुए इस हादसे की कुछ परतें भी उकेर दीं। बहुत ही कम लोग 1954 के कुंभ मेले में हुए भीषण हादसे को जानते होंगे, जिसमें सैकड़ों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।

पीएम ने दिव्य कुंभ की एवज में वोट मांगा

पीएम ने दिव्य कुंभ की एवज में वोट मांगा

पीएम मोदी ने इस भीषण हादसे के बहाने कांग्रेस सरकार पर जमकर निशाना साधा और अपने कार्यकाल में हुए दिव्य कुंभ की एवज में वोट मांगा। लेकिन पीएम ने अपने भाषण के सहारे इस घटना पर अब नई बहस छेड़ दी है और प्रधानमंत्री के जाने के बाद इस घटना पर तमाम मीडिया रिपोर्टस ने पूरे देश में 1954 की घटना को तरोताजा कर दिया है।

क्या हुआ था उस दिन

क्या हुआ था उस दिन

तात्कालीन समय में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले कई छात्रनेता इस घटना के समय कुंभ क्षेत्र में ही मौजूद थे और बांध के उपर से ही उन्होंने इस विभत्स घटनाक्रम को देखा था, जिसमें छात्रसंघ अध्यक्ष विनोद चंद दुबे व उनके साथियों का नाम भी आता है। इनके बयान के आधार पर कई बार यह खबर सुर्खियां बनी, जबकि तत्कालीन पत्रकार एनएन मुखर्जी ने अपने संस्मरण ‘छायाकृति' पत्रिका में इस घटना का विस्तृत उल्लेख किया है। जो लंबे समय तक बहस और सरकार की नाकामी के दिखाने के लिए साक्ष्य के तौर पर मुद्दा बनाकर रखा जाता रहा है।

मौनी अमावस्या का दिन था वो

मौनी अमावस्या का दिन था वो

पत्रिका में छपे घटनाक्रम के अनुसार वह मौनी अमावस्या का दिन था और वर्तमान की मौनी अमावस्या की तरह पूरे कुंभ क्षेत्र में आपर भीड़ एकत्रित थी। पूरे देश से लोग स्नान के लिए संगम आये हुये थे। सुबह लगभग 10 बजे नेहरू अपने आवास आनंद भवन से संगम स्नान के लिये निकले और 10:20 बजे प्रधानमंत्री नेहरू व राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू की कार त्रिवेणी रोड से आकर बांध से नीचे उतरने लगी। कार को संगम नोज की ओर ले जाने के लिये पुलिस ने किला घाट की ओर मुड़वा दिया और अथाह जनसमूह के बीच से गाड़ी आगे बढ़ने लगी। लाखों लोग पैदल ही कुंभ क्षेत्र में आस्था की गठरी सर पर रखकर संगम की ओर आते जाते नजर आ रहे थे।

लोग धक्का देकर इधर-उधर से निकलने लगे

लोग धक्का देकर इधर-उधर से निकलने लगे

मौसम भी कुछ खराब था और रिमझिम बारिश हो रही थी। जिससे लोगों को चलने में तकलीफ भी हो रही थी, लेकिन पीएम व राष्ट्रपति के आने के बाद लोगों को बांध के दोनों ओर रोक दिया गया। काफी देर तक खड़े रहने के बाद भीड़ का दबाव बढ़ा तो कुछ लोग बांध पर चढ़ने लगे। नीचे से उपर जाने का क्रम शुरू ही हुआ था कि शहर की ओर रूकी हुई भीड़ भी बांध की ओर चढ़कर संगम की ओर जाने के लिए निकल पड़ी। भारी भीड़ की रस्साकसी शुरू हो गई और लोग धक्का देकर इधर-उधर से निकलने लगे। महिलाएं व बच्चों के साथ बुजुर्ग भारी भीड़ में फंस गए तो हालात धीरे-धीरे खराब होने लगे।

जो गिरा फिर उठा नहीं

जो गिरा फिर उठा नहीं

बूंदाबांदी के बीच बांध के ढाल पर अब भारी फिसलन हो चुका था। आज के समय की तरह तब बांध पर सड़क नहीं थी। कच्चा रास्ता था जो बेहद ही उंचाई के कारण अब चिकनाहट से फिसलन पैदा कर चुका था। भीड़ में इक्का दुक्का लोग फिसल कर गिरने लगे। पहले तो साथ चल रहे लोगों ने इक्का दुक्का मदद की, लेकिन भीड़ के बढ़ते दबाव के बीच मुश्किल बढ़ती जा रही थी। थोड़ी देर में फिसलन और बढ़ी और ढाल पर गिरने वालों का क्रम शुरू हो गया। इसी बीच बांध के नीचे गड्ढे में भी फिसलकर कुछ लोग गिरे तो चीख पुकार मच गयी और लोग हड़बड़ाहट में तेज से उपर की ओर भागने लगे। लोग फिसल कर कर गिरने लगे और अब जो गिर रहा था, भीड़ उसके उपर पैर रखकर आगे निकल रही थी।

रोंगटे खड़ा कर देने वाला था दृश्य

रोंगटे खड़ा कर देने वाला था दृश्य

बांध के नीचे गड्ढे में पानी भर रहा था और उसमें लोगों के कुचलकर गिरने का क्रम चल पड़ा, जो गिरा वह दुबारा खड़ा नहीं हो पाया। पत्रकार मुखर्जी लिखते हैं कि उस हादसा विभत्स दृश्य रोंगटे खड़ा कर देने वाला था। कम से कम 1 हजार लोग भगदड़ में मारे जा चुके थे, जबकि हजारों लोग घायल थे। लेकिन संचार व्यवस्था इतनी सुदृढ़ ना होने व पीएम की सुरक्षा के चलते इस हादसे को समय रहते रोका नहीं जा सका और नतीजन मरने वालों की संख्या बढ़ती गई। शाम 4 बजे तक प्रशासनिक अधिकारियों को इस घटना की जानकारी भी नहीं थी, जबकि हादसा लगभग 11 बजे ही शुरू हो गया था।

कितने मरे नहीं पता

कितने मरे नहीं पता

उस हादसे में कितने श्रद्धालुओं की मौत हुई थी, इसकी सही संख्या तब की सरकार ने नहीं बताई, लेकिन इक्का दुक्का अखबारों में खबर थी कि 1 हजार लोग भगदड़ में मारे गये। छात्रसंघ के अध्यक्ष विनोद चंद्र दुबे बताते हैं कि घटना वाले दिन वह अपने पिता के साथ संगम में स्नान करने जा रहे थे और जैसे ही पीएम का काफिला आया और पुलिस ने उन्हें रास्ता देने के लिए भीड हटानी शुरू की तो भगदड़ मच गयी। लोग बांध पर फिसल कर गिरने लगे और फिर कुचल कर मारे गये।

स्वतंत्र भारत के इतिहास का भयानक दिन

स्वतंत्र भारत के इतिहास का भयानक दिन

तत्कालीन ग्राम पंचायत राजापुर मल्हुआ के मुखिया रहे बयोवृद्ध जागेश्वरी प्रसाद दुबे बताते है। कि 3 फरवरी 1954 को जो घटना हुई वह, स्वतंत्र भारत के इतिहास के सबसे भयानक दिनों में से एक थी। अखबार के माध्यम से उन्हे यह जानकारी पता चली कि हजारों लोग घायल हुये थे और 1 हजार से अधिक लोग मारे गये थे। यह कुंभ के सुनहरे अध्याय में बेहद ही दागदार दिन था। दुबे बताते हैं कि अखबार में छपा था कि उस समय यूपी में गोविंद वल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के सीएम थे और मौनी अमावस्या के दिन जब यह हादसा हुआ, उस वक्त प्रशासनिक अफसर गवर्नमेंट हाउस से लेकर पीएम की आवभगत में व्यस्त थे। एक-दो अखबारों को छोड़कर कहीं खबर नहीं छपी, लेकिन जिन दो अखबारों में फोटो के साथ खबर छपी उसने हड़कंप मचा दिया।

खबर छपने से अधिकारी हुए थे नाराज

खबर छपने से अधिकारी हुए थे नाराज

खबर छपने से उच्च अधिकारी बहुत नाराज हुए कि आखिर यह सब कैसे छप गया। सरकार की ओर से बचाव के लिये तब एक प्रेस नोट जारी किया गया और बताया गया कि कुछ भिखमंगे ही घटना में मरे हैं। इस पर सरकार के साामने वे तस्वीरें सामने रखी गईं, जिसमें औरतों के हाथ और और गले में गहने व अच्छे कपड़े थे। लेकिन, उस वक्त इस मामले को पूरी तरह से दबाने का प्रयास किया गया और एक साथ 20-20 करके लाशें जला दी गईं।

पीएम मोदी ने बनाया मुद्दा

पीएम मोदी ने बनाया मुद्दा

कौशांबी में प्रधाानमंत्री ने इसी घटना को चुनावी मुद्दा बनाते हुए कहा कि जब पंडित नेहरू जब प्रधानमंत्री रहते हुए कुंभ आए तो भगदड़ मची, हजारों लोगों की मौत हुई। लेकिन सरकार ने अपनी इज्जत बचाने के लिए घटना को दबा दिया और मीडिया में खबरे तक नहीं छपी। यह असंवेदनशीलता की हद थी, पाप था, जो देश के पहले प्रधानमंत्री द्वारा किया गया। पीएम मोदी ने कहा कि घटना वाले समय ग्राम पंचायत से लेकर केंद्र तक कांग्रेस काबिज थी, लेकिन भगदड़ में मारे गए लोगों की सुध नहीं ली गयी, उनके परिजनों की मदद या मुआवजा नहीं दिया। इस बार कुंभ में मैं खुद व्यवस्था देखने आया, भीड़ बहुत ज्यादा थी, लेकिन कोई हादसा नहीं हुआ। क्योंकि सरकार बदली थी तो हमने व्यवस्था भी बदली थी। प्रधानमंत्री ने कुंभ के नाम पर लोगों को वोट देने की अपील भी की।

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English summary
pm modi recalls 1954 kumbh mela stampede
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