इलाहाबाद / प्रयागराज न्यूज़ के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
Oneindia App Download

योगी सरकार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया झटका, अब सीधे अनिवार्य सेवानिवृत्ति नहीं दे सकेगी सरकार

Google Oneindia News

Allahabad News(इलाहाबाद)। उत्तर प्रदेश में सरकारी नुमाइंदों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने योगी सरकार को बड़ा झटका दिया है। हाईकोर्ट ने सीधे-सीधे अनिवार्य सेवानिवृत्ति पर रोक लगा दी है और विभागीय जांच के बाद ही इस तरह की कार्रवाई का निर्देश दिया है। यानि अब यूपी सरकार के लिए अनिवार्य सेवानिवृत्ति देना आसान नहीं होगा। कर्मचारी के सर्विस रिकॉर्ड पर पहले विभागीय जांच होनी अनिवार्य होगी और अगर कर्मचारी के रिकॉर्ड में गड़बड़ियां पाई जाए, तब अनिवार्य सेवानिवृत्ति पर विचार किया जा सकता है। हालांकि हाईकोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर शुरुआती दौर के बाद कर्मचारी ने अपने सर्विस रिकॉर्ड में सुधार कर लिया हो तब भी इस तरह की कार्रवाई सही नहीं होगी। यह आदेश मुजफ्फरनगर के आबकारी इंस्पेक्टर की याचिका पर सुनाया गया है। इसमें योगी सरकार ने आबकारी इंस्पेक्टर को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी थी। हाईकोर्ट ने सरकार के इस फैसले पर रोक लगाने के साथ, आबकारी इंस्पेक्टर की अनिवार्य सेवानिवृत्ति रद्द कर दी है और सभी परिलाभों सहित सेवा बहाली का निर्देश दिया है।

योगी सरकार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया झटका, अब सीधे अनिवार्य सेवानिवृत्ति नहीं दे सकेगी सरकार

क्या है मामला

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में तैनात आबकारी इंस्पेक्टर रिजवान अहमद को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई है। अनिवार्य सेवानिवृत्ति के पीछे उनके सर्विस रिकॉर्ड में कुछ कारण भी दर्शाए गए हैं, जिसमें उनके आवास से भारी मात्रा में शराब की बरामदगी भी शामिल है। कार्य में लापरवाही व संदिग्ध निष्ठा पर याची को अनुपयोगी व सूखी लकड़ी मानते हुए सेवानिवृत्त कर दिया गया। सरकार के इसी आदेश के खिलाफ इंस्पेक्टर रिजवान अहमद ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की और सरकार के फैसले को चैलेंज करते हुए अपनी अनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेश को रद्द करने की मांग की। इस मामले में हाईकोर्ट ने याची के पक्ष में फैसला सुनाते हुए सरकार के आदेश को रद्द कर दिया है साथ ही सेवा बहाली का निर्देश दिया है।

हाईकोर्ट में क्या हुआ

इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल विशेष अपील पर न्यायमूर्ति गोविन्द माथुर तथा न्यायमूर्ति सीडी सिंह की खंडपीठ ने सुनवाई शुरू की तो कोर्ट को बताया गया कि जिस मामले को आधार बनाकर आवास पर भारी मात्रा में शराब मिलने के मामले को आधार बनाकर अनिवार्य सेवानिवृत्ति की कार्यवाही की गई है। उसमें सीजेएम मुजफ्फरनगर ने उसे बरी कर दिया है। इस बात की जानकारी विभाग को थी, लेकिन विभाग ने स्क्रीनिंग कमेटी को इसके बारे में नहीं बताया, जिसके आधार पर ही कार्य में लापरवाही व संदिग्ध निष्ठा का मामला बनाते हुए याची को अनिवार्य सेवानिवृति दे दी गई। याची की दलील थी कि बिना दोष के उसे दंडित किया जा रहा है और यह कार्रवाई दुर्भावनापूर्ण हो रही है।

हाईकोर्ट ने दिया ये फैसला

हाईकोर्ट ने याची का पक्ष सुनने के बाद कहा कि पिछले 10 सालों में 7 साल का रिकॉर्ड दर्ज ही नहीं किया गया है। सर्विस रिकॉर्ड की प्रविष्टि न होने पर कर्मचारी को इस तरह दंडित नहीं किया जा सकता। विभाग की कार्रवाई कानून की दृष्टि में सही नहीं है। इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा है कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति के लिए विभागीय जांच आवश्यक है। किसी शॉर्टकट तरीके से अनिवार्य सेवानिवृत्ति नहीं दी जा सकती। हाईकोर्ट ने कहा कि संबंधित कर्मचारी के सर्विस रिकॉर्ड को खंगाला जाना चाहिए और तथ्यों के साथ कर्मचारी पर इस तरह की कार्रवाई की जानी चाहिए। फिलहाल हाईकोर्ट ने याची की अनिवार्य सेवानिवृत्ति रद्द करते हुए उसकी नौकरी को बहाल कर दिया है।

ये भी पढ़ें:- आगरा: स्कूल से घर लौट रही 10वीं की छात्रा को पेट्रोल डालकर जिंदा जलाया, हालत गंभीरये भी पढ़ें:- आगरा: स्कूल से घर लौट रही 10वीं की छात्रा को पेट्रोल डालकर जिंदा जलाया, हालत गंभीर

Comments
English summary
high court take decesion against yogi goverment on retirement allahabad
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X