शर्मनाक है इशरत जहां मामले पर राजनीति करना
2006 में ऐसा ही एक एंकाउंटर दिल्ली के तिमारपुर में हुआ, जिसमें दो मुस्लिम और एक हिन्दू मारा गया। दिल्ली पुलिस द्वारा की गई इस फर्जी मुठभेड़ पर किसी का फोकस नहीं गया। सच पूछिए तो राजनीतिक पटल पर शीला दीक्षित की कांग्रेस शासित सरकार पर इस एंकाउंटर को लेकर कोई बात तक नहीं करना चाहता।
अब अगर मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट पर एक नजर डालें तो मंजर कुछ और ही मिलेगा। 2004-05 में पुलिस कस्टडी में हुई मौंतों की बात करें तो बिहार, गुजारत, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, असम, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में कस्टडी में हुईं मौतों में गिरावट दर्ज हुई, जबकि आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, ओडिशा, दिल्ली, झारखंड और उत्तराखंड में ऐसी घटनाएं बढ़ीं। इस रिपोर्ट के अनुसार 2004-05 में 122 सूचनाएं आयोग को एंकाउंटर में मारे गये लोगों की मिलीं। यूपी से 66, आंध्र से 18, दिल्ली से 9 और महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश से पांच-पांच। वहीं आयोग में फर्जी मुठभेड़ के 84 मामले दर्ज हुए।
अब अगर कांग्रेस व के कांग्रेस समर्थन से शासित सरकारों के राज में हुईं फर्जी मुठभेड़ की बात करें तो सबसे ज्यादा मामले दिखाई देंगे। 2004-05 की रिपोर्ट के अनुसार गुजरात से एक( आंध्र प्रदेश से छह, यूपी से 54, हरियाणा से 4 मामले सामने आये। अगर लंबित मामलों की बात करें तो गुजरात में सिर्फ पांच केस लंबित हैं। वहीं आंध्रा में 21, महाराष्ट्र में 29 और सपा शासित यूपी में 175 मामले लंबित हैं। मानवाधिकार आयोग में 555 मामले फर्जी मुठभेड़ के दर्ज हुए, जिनमें से 411 अभी भी अनसुलझे हैं। इस लेख में आंकड़े नीति सेंट्रल के लेख से लिये गये हैं।