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‘काले सोने’ के चक्‍कर में मिट जाएगा बुंदेलखंड!

By रामलाल जयन
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बांदा। ‘पहाड़ और नदियां प्राकृतिक धरोहर हैं, इसे मानव समाज को नष्‍ट करने का कोई हक नहीं है।' लेकिन, विंध्य श्रंखला की पर्वतों और नदियों की भरमार से अलग पहचान कायम रखने वाले बुंदेलखंड में ‘काला सोना' हासिल करने के लिए खनन माफिया एक दषक से इन पहाड़ों को नेस्तनाबूद करने में जुटे हैं। अगर ‘काला सोना' का खनन जारी रहा तो बुंदेलखंड मिट जाएगा।

महोबा के आल्हा-ऊदल की वीर गाथा हो या फिरंगी सेना के छक्के छुड़ाने वाली झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की चर्चा या फिर भगवान श्रीराम के वनवास का प्रसंग, सब बुंदेलखंड के पहाड़ों और नदियों के बिना अधूरी मानी जाती हैं। कभी उत्तर प्रदेश का ‘कश्‍मीर' कहा जाने वाले बुंदेलखंड की धरती घने जंगलो से आच्छादित थी, विंध्य श्रंखला की पर्वत श्रेणियों और कलकल बहती नदियों की वजह से इसकी अलग पहचान थी, आज वही बुंदेलखंड खनन माफियाओं से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने को मजबूर है।

एक दशक पूर्व काफी कुछ ठीक था, इधर ज्यादातर राजनीतिक रसूखदारों की नजर पत्थर और बालू उत्खनन पर टेढ़ी हुई और बेपरवाह यह गोरखधंधा शुरू हो गया। उत्तर प्रदेश सरकार के खनिज विभाग की मानें तो ‘बुंदेलखंड के सभी सात जनपद बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर, महोबा, जालौन, झांसी व ललितपुर के विभिन्न पहाड़ों के 1311 स्थानों को चालू वर्श में खान क्षेत्र घोषित किया गया है, जिनमें 1021 क्षेत्रों में पत्थर खनन का कार्य किया जा रहा है और 510 अरब रुपए सालाना राजस्व की प्राप्ति होती है।'

यहां है प्राचीनतम देवस्‍थान

यह तो सरकारी आंकड़े हैं, पर हकीकत कुछ और ही है। पत्थर व्यवसाय से जुड़े पनगरा गांव के शुभेन्द्र प्रकाश यादव बताते हैं कि ‘दर्जनों आवंटी ऐसे हैं जो आवंटित एरिया से कई गुना ज्यादा क्षेत्र में उत्खनन कार्य कार्य करा रहे हैं। कई तो ऐसे भी हैं जो खनिज विभाग के अधिकारियों की मिली भगत से नाजायज तरीके से इस कार्य में लिप्त हैं।' महोबा जनपद का जुझार पहाड़ ग्रामीण बस्ती से लगा हुआ है, इसी पहाड़ में एक प्रचीनतम हिन्दू देवस्थान है।

इस पहाड़ को बचाने के लिए ग्रामीणों ने एक माह तक आन्दोलन चलाया था, परिणामस्वरूप खनन तो रुका लेकिन अब तक आवंटन निरस्त नहीं हुआ। वैसे बांदा जनपद में कई पहाड़ों में देवस्थान हैं जहां खनन भी जारी है। कैबिनेट मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी के बांदा में शेरपुर स्योढ़ा गांव के पहाड़ में मां विंध्यवासिनी का प्रसिद्ध मन्दिर है, इस पहाड़ में बसपा के बर्खास्त एक चर्चित पूर्व मंत्री के नजदीकी का खनन पट्टा है।

इसी प्रकार नरैनी के बरुआ गांव के पहाड़ में रामजानकी का पुराना मन्दिर है, यह पहाड़ बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से विधायक रहे पुरुशोत्तम नरेश द्विवेदी के भाई को आवंटित किया गया था। कालिंजर के पहाड़ में विश्‍व प्रसिद्ध राजा अमान सिंह का किला है तो बांदा शहर के बाम्बेश्‍वर पहाड़ में बाम ऋषि का मन्दिर है। अपवाद स्वरूप कुछ पहाड़ों को छोंड़ दें तो ज्यादातर पहाड़ों में पत्थर उत्खनन का कार्य किया जा रहा है, एक दषक में आधे से ज्यादा पहाड़ों का वाजूद खत्म हो गया है।

बस्तियों में गिरते हैं पत्‍थर

नदी बचाओ-तालाब बचाओ आन्दोलन के सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश रैकवार ने बताया कि ‘पहाड़ों में किए जा रहे बेधड़क उत्खनन से जहां पर्यावरण पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है, वहीं पहाड़ों के आस-पास की सैकड़ों एकड़ उपजाऊ कृशि भूमि बंजर होती जा रही है।' चित्रकूट जनपद के गोंड़ा गांव के रामदास महराज ने बताया कि ‘यहां बस्ती के पास के पहाड़ में छह लोगों का पट्टा है, लेकिन दो दर्जन पत्थर खदानें चल रही है। खदानों में दिन भर की जाने वाली ब्लास्टिंग से उड़ कर भारी पत्थर बस्ती में गिरते हैं, जिससे कई लोग घायल हो चुके हैं और तीन लोगों की जाने चली गई हैं। खदानों की धूल से एक सैकड़ा से ज्यादा लोग सांस की बीमारी के शिकार हैं और पहाड़ के पास वाली पचास बीघे कृशि भूमि बंजर हो गई है।'

एक अन्य सामाजिक कार्यकर्ता आशीष सागर ने बताया कि ‘महोबा की कबरई व चित्रकूट के भरतकूप में राष्‍ट्रीय राजमार्ग के किनारे सैकड़ों पत्थर की क्रेशर मशीनें लगी हैं, जो मानक के विपरीत कार्य करती हैं।' बांदा के भूतत्व एवं खनिकर्म अधिकारी कमलेश राय बताते हैं कि ‘पहाड़ों में पहले से चिन्हित क्षेत्रों में खनन का पट्टा दिया गया है, खनन और ब्लास्टिंग के षासन से मानक निर्धारित हैं। मानके विपरीत और आवंटित एरिया से ज्यादा खनन के मामले की जांच कराई जाएगी।'

बुंदेलखंड़ के पहड़ों में पाया जाने वाला जदातर ग्रेनाइट पत्थर है, जिसे पत्थर व्यवसायी ‘काला सोना' की संज्ञा देते हैं। अगर यही हालात कुछ साल और रहे तो यहां से पहाड़ों का नामोनिशान मिट जाएगा और कृशि भूमि बंजर हो जाएगी, पहाड़ और नदियां ही यहां की असली पहचान हैं।

तस्‍वीरों में बुंदेलखंड

तस्‍वीरों में बुंदेलखंड

तस्‍वीरों में बुंदेलखंड

बुंदेलखंड अपने इतिहास के लिये प्रसिद्ध है। हर व्‍यक्ति जानता है कि बुंदेलखंड के लोगों ने 1857 की जंग में अंग्रेजों के खिलाफ पहली बार बगावत का बिगुल किस तरह फूंका था।

विंध्‍य के पहाड़

विंध्‍य के पहाड़

विंध्‍य के पहाड़ बुंदेलखंड की शान हैं। लेकिन लगातार हो रहे खनन और पर्यावरण में हो रहे परिवर्तन के कारण ये पहाड़ सूखे पत्‍थर की तरह होते जा रहे हैं।

खतरे में नदियां

खतरे में नदियां

बुंदेलखंड की नदियां लगातार खतरे में पड़ती जा रही हैं। सरकार इस बारे में जरा भी ध्‍यान नहीं दे रही है।

ओर्छा में मंदिर

ओर्छा में मंदिर

बुंदेलखंड से हमारा तात्‍पर्य उत्‍तर प्रदेश और मध्‍य प्रदेश दोनों में आने वाले शहरों से है। इसमें एमपी से ओर्छा आता है, जहां के मंदिरों में देश भर से श्रद्धालु आते हैं।

ओर्छा में मंदिर

ओर्छा में मंदिर

यह ओर्छा में लक्ष्‍मी माता का प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर है।

चित्रकूट

चित्रकूट

चित्रकूट वह जगह है, जहां भगवान राम ने वनवास के दौरान बसेरा किया था। हिंदुओं के लिये इस पावन स्‍थल का काफी महत्‍व है।

खनन की भेंट चढ़ता बुंदेलखंड

खनन की भेंट चढ़ता बुंदेलखंड

महोबा की कबरई व चित्रकूट के भरतकूप में राश्ट्रीय राजमार्ग के किनारे सैकड़ों पत्थर की क्रेषर मशीनें लगी हैं, जो मानक के विपरीत कार्य करती हैं। बांदा के भूतत्व एवं खनिकर्म अधिकारी कमलेश राय बताते हैं कि ‘पहाड़ों में पहले से चिन्हित क्षेत्रों में खनन का पट्टा दिया गया है।

बुंदेलखंड में खनन

बुंदेलखंड में खनन

पहाड़ों में किए जा रहे बेधड़क उत्खनन से जहां पर्यावरण पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है, वहीं पहाड़ों के आस-पास की सैकड़ों एकड़ उपजाऊ कृशि भूमि बंजर होती जा रही है।

ढेर सारा धन उगलती पहाड़ी

ढेर सारा धन उगलती पहाड़ी

बुंदेलखंड के सभी सात जनपद बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर, महोबा, जालौन, झांसी व ललितपुर के विभिन्न पहाड़ों के 1311 स्थानों को चालू वर्श में खान क्षेत्र घोशित किया गया है, जिनमें 1021 क्षेत्रों में पत्थर खनन का कार्य किया जा रहा है और 510 अरब रुपए सालाना राजस्व की प्राप्ति होती है।

पानी की कमी

पानी की कमी

कभी उत्तर प्रदेश का ‘कश्‍मीर' कहा जाने वाले बुंदेलखंड की धरती घने जंगलो से आच्छादित थी, विंध्य श्रंखला की पर्वत श्रेणियों और कलकल बहती नदियों की वजह से इसकी अलग पहचान थी, आज वही बुंदेलखंड़ खनन माफियाओं से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने को मजबूर है।

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English summary
The continuous coal mining in Bundelkhand has now started speaking its own pain. How the natural resources are being destroyed here.
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