देश को भाग्य पर मत छोड़ें, वोट दें
मुझे लोग यह कहते मिल जाते हैं कि आलोक यह भारत है। क्यों खपा रहे हो अपना दिमाग इन्हें जगाने में? अगर इन्हें पता होता कि प्रजातंत्र का मतलब क्या है, तो क्या इन्होंने मत देने का रिकॉर्ड न बना डाला होता। और फिर यह तुमसे कम बुद्धिमान भी नहीं हैं, क्यों कि तुम जब इन्हें मत देने के लिए प्रेरित करते हो तब ये किसी नेता के यहां खड़े होकर अपने भविष्य का आंकड़ा बनाते हैं। यह जागते हुए सोने वाले लोग हैं.....
मुझे अपने लिए इस तरह के व्यंग से कोई फर्क नही पड़ता। मैं उनसे पूछता हूँ - क्या गाँधी, नेहरु, सुभाष चन्द्र बोस, लक्ष्मी बाई, भगत सिंह, सुखदेव, राज गुरु, तिलक के प्रयास से स्वतंत्रता मिली? अंग्रेजो ने ज्यादातर आन्दोलन कुचल दिए। और हम असफल ही रहे। पर ऐसा भी नहीं कि आन्दोलन के लिए किये गए प्रयास पूरी तरह बर्बाद हो गए। अंग्रेज जानते थे कि वो आन्दोलन पर उतरे भारतीयों को अपनी उपस्थिति को समझा नही पाएंगे। और इसी लिए द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब ब्रिटेन की आर्थिक स्थिति काफी बिगड़ गई और उनके लिए यह संभव ही नही रह गया कि वो उपनिवेश वाले देशों पर अपना कब्ज़ा बरकरार रख सकें।
चर्चिल ने कहा था, "मेरे पास देने के लिए आंसू के सिवा कुछ नही है।" इन शब्दों में यह संकेत था कि ब्रिटेन युद्ध से टूट चुका है। इसीलिए अगले प्रधान मंत्री एटली ने यह निश्चित किया कि भारत सहित उपनिवेश देशो को स्वतंत्र कर दिया जाना चाहिए। इसीलिए भारत स्वतंत्र हुआ पर जिन्होंने स्वंत्रता के लिए लड़ाई की थी. सेहरा उनके सर पर बंधा। यानि असफल होने के बाद भी किये गए प्रयासों के कारण भारत के नेताओ को स्वतंत्र देश का अग्रदूत माना गया।
तो फिर हम देश में मत डालने के लिए प्रेरित क्यों न करू? भले ही मुझे उस स्तर पर सफलता न मिले पर मुझे यह खुशी है कि भारत को वास्तविक स्वतंत्रता का अर्थ समझाने के लिए अखिल भारतीय अधिकार संगठन अपना अथक प्रयास कर रहा है। अगर सब कुछ भाग्य पर ही छोड़ दिया जायेगा, तो भारत में लोगो के लिए घर कम पर धार्मिक स्थल ज्यादा बन जायेंगे, जो ठीक नही है। इसीलिए अखिल भारतीय अधिकार संगठन चेता जागरण में जुटा है और आपसे भी अपेक्षा करता है कि भारत में 100 प्रतिशत मत को सुनिश्चित कराइए।
लेखक परिचय- अखिल भारतीय अधिकार संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष, श्री जयनारायण पीजी कॉलेज, लखनऊ के रीडर एवं इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय के काउंसिलर हैं।