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चुनावी माहौल में केंद्र ने फिर खेला एक दांव

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दिल्ली (ब्यूरो)। पांच राज्यों में चुनावी बिगुल बजने के बाद एससी, एसटी और अल्पसंख्यकों को लुभाने के लिए केंद्र सरकार ने एक और दांव खेला है। सूत्रों ने बताया कि केंद्र सरकार सार्वजनिक उपक्रमों यानी पीएसयू में पिछड़ों, अल्पसंख्यकों, एससी व एसटी के लिए आरक्षित पदों की भर्ती को कंपनियों के सालाना मूल्यांकन से जोड़ने जा रही है। इनकी नियुक्ति नहीं करने वाली कंपनी को मूल्यांकन में पिछड़ना पड़ सकता है।

केंद्र सरकार के भारी उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला सार्वजनिक उपक्रम विभाग (डीपीई) इस आशय का प्रस्ताव तैयार कर रहा है। इसके तहत सभी नौकरियों के लिए आरक्षित वर्गो को पूरा प्रतिनिधित्व देने के उद्देश्य से सरकार ने यह कदम उठाया है। सूत्र बताते हैं कि हाल में अल्पसंख्यकों को 4.5 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला करने के बाद सरकार ने इसे लागू करने की संभावनाओं पर भी काम करना शुरू किया है।

हालांकि आचार संहिता के चलते चुनाव वाले पांचों राज्यों में अल्पसंख्यक आरक्षण वाले फैसले के अमल पर रोक लगा दी है। मौजूदा व्यवस्था के तहत सार्वजनिक कंपनियों को संबंधित मंत्रालयों के साथ सहमति पत्र पर विभिन्न मानदंडों के आधार पर सालाना लक्ष्य दिया जाता है। कंपनियों का मूल्यांकन अंक प्रणाली के आधार पर होता है। इसमें वित्तीय प्रदर्शन, मानव संसाधन मामलों में प्रगति, कंपनी सामाजिक जिम्मेदारी, कंपनी के कामकाज का तरीका तथा शोध एवं विकास शामिल हैं।

वित्तीय लक्ष्यों को पूरा करने के एवज में कंपनियों को मूल्यांकन में 50 प्रतिशत अंक दिए जाते हैं। जबकि शेष अंक विभिन्न मानदंडों के आधार पर दिया जाता है। अब पहली बार कंपनियों के कामकाज के मूल्यांकन में अनुसूचित जाति-जनजाति तथा अन्य पिछड़े वर्गो के साथ साथ अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित नौकरियों का भी योगदान होगा। अभी डीपीई ने यह तय नहीं किया है कि आरक्षित पदों पर भर्ती की प्रक्रिया पूरी करने के बदले सार्वजनिक उपक्रमों को मूल्यांकन के दौरान कितने अंक मिलेंगे।

डीपीई दिशानिर्देश के अनुसार सार्वजनिक इकाइयों को कुल नौकरियों में 15 प्रतिशत अनुसूचित जाति, 7.5 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति तथा 27 प्रतिशत अन्य पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित करना होगा। पिछड़े वर्गो के लिए आरक्षित इसी हिस्से से साढ़े चार प्रतिशत अल्पसंख्यकों को आरक्षण मिलेगा।

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English summary
As the assembly elections in four states are catching up, the Central Government is looking into all possibilities of wooing the voters especially the backwards classes.
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