आखिर एफडीआई के नाम पर हंगामा क्यों है बरपा?
आजकल चारों ओर केवल एक ही शोर है- एफडीआई, एफडीआई। इस मु्द्दे पर संसद चल नहीं रही, सड़कों पर लोग निकल आये हैं, यहां तक कि 1 दिसंबर को इसी समस्या के कारण पूरे देश में भारत बंद रहा। यूपी, गुजरात और केरल के सत्ताधारियों ने इस बात का पुरजोर विरोध करते हुए कहा कि अगर उनके राज्य में रिटेल स्टोर खुले तो अच्छा नहीं होगा। कोई कह रहा है कि रिटेल स्टोर में माचिस से आग लगा देगें तो कोई कह रहा है कि इसके जरिये अंग्रेजों की हुकूमत वापस आ जायेगी। खैर...
क्या होगा और क्या नहीं यह तो बाद में पता चलेगा लेकिन एफडीआई के बारे मे कहने से पहले हम आपसे से देश के कुछ रोचक विरोधी घटनाओं पर जिक्र करते हैं। बात 90 के दशक की करते हैं जब माइक्रोसॉफ्ट जैसी बड़ी कंपनियों ने भारत में आईटी के क्षेत्र में कदम रखा था तो देश में जबरदस्त विरोध हुआ था।
सबने कहा कि कंप्यूटर के आने से लोग बेरोजगार हो जायेंगे। क्योंकि मशीन के आगे इंसानों को कोई नहीं पूछेगा। आज आलम यह है कि सब्जी बेचने से लेकर बैंक के सारे काम कंप्यूटर से ही होते हैं। और किसी दिन कहीं का कंप्यूटर सिस्टम फेल हो जाता है तो उस दिन उस जगह या तो हंगामा हो जाता है या लोग छुट्टी मना लेते हैं। मतलब यह कि कंप्यूटर की वजह से हजारों लोग बेरोजगार होने की बजाय करोड़ो रोजगार वाले हो गये।
अब बात करते है लोगों की पसंद पिज्जा हट, मैकडॉनल, केएफसी की। जब इनकी शुरूआत होने वाली थी तो विरोधियों और कुछ राजनीतिक लोगों ने बहुत शोर मचाया और कहा कि इनके आने से ढ़ाबे वालों का जीवन तबाह हो जायेगा। क्योंकि जो लोग ढ़ाबे पर खाना खाने आते हैं वो पिज्जा-बर्गर के आने के बाद नहीं आयेंगे।
देश में जबरदस्त विरोध हुआ। कई रैलियां निकाली गयी लेकिन सरकार की सेहत पर असर नहीं पड़ा, उसने बर्गर-पिज्जा की इजाजत दे दी। नतीजा आपके सामने है। आप ने अब तक ना ही पढ़ा होगा, ना किसी से सुना होगा और ना ही कहीं देखा होगा कि पिज्जा हट या मैक डी के चलते कोई ढ़ाबे वाला बेरोजगार हो गया।
आपको बता दें कि पिज्जा हट, मैकडॉनल, केएफसी में कोई भी चीज 20 या 25 रूपये से नीचे नहीं मिलती है और जो चीज इन दामों में मिलती है उनसे किसी का पेट नहीं भर सकता है। जबकि किसी भी ढ़ाबे में आपको आज की डेट में भी 25-30 रूपये में भरपेट भोजन मिल जाता है। अब आप ही बताइये कि पिज्जा हट, मैकडॉनल, केएफसी किस करह से ढा़बे वालों की मार्केट खराब कर सकते थे। जो यह बात कहते थे आप उनके बौद्धिक स्तर का पता लगा सकते हैं।
अब मु्द्दे पर लौटते हैं। जो लोग एफडीआई का विरोध कर रहे हैं, उनमें से अस्सी प्रतिशत लोगों को पता ही नहीं है कि एफडीआई किस चिड़िया का नाम है? हैरत तो यह है कि विरोधी दल और विपक्ष को भी यह पता है कि मल्टी-ब्रांड रिटेल के आने से देश की महंगाई घटेगी। सही और शुद्ध सामान मिलेगा। मिलावटी और नकली चीजों के लिए जगह नहीं रहेगी। सबसे बड़ा फायदा उपभोक्ता को होगा जो सैकड़ो रूपये खर्च करके भी मिलावट के नाम पर लूट लिया जाता है।
आज हर विरोधी कह रहा है कि इसकी वजह है छोटे दुकानदारों और किसानों का शोषण होगा जबकि सच्चाई यह है कि अगर विरोधी दल इस बात का विरोध नहीं करेंगे तो उन्हें अपने चुनावों में बिचौलिये और मिलावटखोरों से वोट नहीं मिलेगा। इसलिए विरोध हो रहा है।
हां केन्द्र सरकार को भले ही एफडीआई लागू करने से पहले कुछ नियम औऱ शर्ते लागू कर देनी चाहिए। एक रेग्यूलेटरी सिस्टम लाना चाहिए जिससे रिटेल स्टोर की ओर से धोखेबाजी की संभावना ना रहे। आपको बता दें कि रिटेल सिस्टम के आने से काफी बेरोजगार लोग रोजगार वाले हो जायेंगे। लेकिन हमारे सदन का नियम हैं ना कि एक पक्ष अगर कुछ करेगा तो दूसरा पक्ष उसका विरोध करेगा। सो सरकार एफडीआई को ला रही है तो विपक्ष विरोध कर रहा है जबकि उसे पता ही नहीं है कि वो विरोध कर क्यों रहा है? बस करना है तो कर रहा है।
यह बात देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने उस समय कही थी जिस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह थे और उन्होंने यूपी की शिक्षाप्रणाली को सुधारने के लिए नकल अध्यादेश लागू किया था। और विपक्ष में बैठी सपा पार्टी विरोध में सड़को पर उतर आयी थी। तब अटल जी ने कहा था ऐसे लोगों को क्या कहा जाये सिवाय बुद्धिहीन के, जिन्हें समझ ही नहीं आ रहा कि वो विरोध कर क्यों रहे, बस विरोध करना है तो कर रहे हैं।