दिल्ली: उल्का पिंड ही गिरा था मकान पर
मौके पर पहुंची पुलिस और सीएफएल की टीम ने नमूने इकट्ठा किए और इसे जांच के लिए भेज दिया। इसकी प्रकृति के आधार पर खगोल विज्ञानी पूरी संभावना जता रहे है कि यह उल्का पिंड है। यानी आकाश में कभी-कभी एक ओर से दूसरी ओर तेज गति से जाते या पृथ्वी पर गिरते हुए खगोलीय पिंड, जिन्हें टूटता हुआ तारा भी कहा जाता है। वहीं देर रात करीब दो बजे फोरेंसिक साइंस लैब (एफएसएल) की तीन सदस्यीय टीम ने मौके का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने सैंपल उठाकर जांच के लिए भेज दिया है। पुलिस अधिकारी मंगलवार को भी मौके पर मुआयना करने पहुंचे। फोरेंसिंक टीम ने मौके की फोटोग्राफी करने के साथ वहां मिले टुकड़ों के अलावा दीवार का सैंपल भी लिया है।
मिशन चंद्रायन से जुड़े खगोल वैज्ञानिक - डा. जयंत कुमार पती कहते हैं अपनी अहमियत की वजह से उल्का पिंड सरकारी संपत्ति होता है। लिहाजा किसी को ऐसा पिंड मिलने पर उसे इसे अधिकारियों के पास जमा करा देना चाहिए। जयंत कहते हैं। दरअसल रात में अनगिनत संख्या में उल्काएं दिखती हैं। इसमें से पृथ्वी पर गिरने वाले पिंडों की संख्या कम होती है। अंदाजन प्रति वर्ष पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश करने वाले 3000 टन में से महज 500 टन। वैज्ञानिक नजरिए से इनकी खासी अहमियत है। क्योंकि अति दुर्लभ होने के साथ आकाश में चक्कर लगाते विभिन्न ग्रहों के संगठन और संरचना को समझने के यह अहम स्रोत हैं। इन्हें पृथ्वी, चंद्रमा, सूर्य और धूमकेतु आदि का अंश माना गया है।