भारत में शासन की बारीकियां सीखेंगे श्रीलंकाई मुख्यमंत्री
नई दिल्ली, 7 जून (आईएएनएस)। श्रीलंका के पूर्वी प्रांत के मुख्यमंत्री सिवानेसाथुरई चंथिराकंथन इन दिनों भारत दौरे पर हैं। उनका यहां आने का मकसद शासन करने का हुनर सीखना है।
चंथिराकंथन कभी लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) के सदस्य थे और उनका नाम पिलयन था। आज वह श्रीलंका में एकमात्र तमिल मुख्यमंत्री हैं। उनका कहना है कि वह भारत में शासन करने के कुछ ण्ेसे तौर तरीके सीखेंगे जिससे उन्हें अपने प्रदेश में मदद मिलेगी।
उन्होंने आईएएनएस से फोन पर बातचीत में कहा, "हमारा लक्ष्य अपनी प्रांतीय सरकार को मजबूत बनाना है। हम इस बात पर अध्ययन करना चाहते हैं कि भारत, खासकर केरल में व्यवस्था किस तरह से संचालित होती है। यह हमारे लिए उपयोगी रहेगा।"
चौंतीस वर्षीय चंथिराकंथन 30 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल के साथ शुक्रवार को केरल के थ्रिसूर पहुंचे। वह वहां पंचायती राज पर आयोजित कार्यशाला में हिस्सा लेंगे। वह यहां एक सप्ताह तक रहेंगे।
चंथिराकंथन ने कहा, "हमारा लक्ष्य श्रीलंका की एकता को मजबूत करना है। हम अपने लोगों के लिए बेहतरीन जिंदगी देना चाहते हैं।"
चंथिराकंथन उस समय लिट्टे के साथ हो लिए थे जब वह स्कूल में थे। वह लिट्टे की लड़ाकू क्षमता से प्रभावित होकर उसके साथ जुड़े थे हालांकि बाद में वह इससे अलग हो गए। स्कूल छोड़कर वह उन्होंने हथियार उठाए थे और बाल सैनिकों की जमात में शामिल हुए थे।
वर्ष 2004 में जब लिट्टे के शक्तिशाली नेता वी. मुरलीथरन ऊर्फ करुणा ने बगावत का बिगुल फूंका तो चंथिराकंथन भी उनके साथ हो लिए। बाद में यही फूट लिट्टे की तबाही का सबब बनी।
इसके बाद वर्ष 2007 में पूर्वी प्रांत पर सेना का कब्जा हुआ। अप्रैल, 2008 में यहां प्रांतीय परिषद के चुनाव हुए और इसमें चंथिराकंथन भी निर्वाचित घोषित किए गए। मई, 2008 में राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के समर्थन से वह पूर्वी प्रांत के पहले मुख्यमंत्री बने।
चंथिराकंथन मानते हैं कि दो वर्ष के उनके कार्यकाल के दौरान उनकी कुछ सफलताएं भी रहीं तो कुछ नाकामियां भी मिलीं। उनका कहना है कि वह अब लोकतंत्र को अपना हमसफर बना चुके हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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