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मध्य प्रदेश में 'लाडली माताएं' संकट में

By Staff
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भोपाल, 14 मई (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश सरकार भ्रूण हत्या को रोकने के साथ बालिका जन्म को प्रोत्साहित करने के लिए 'लाडली लक्ष्मी योजना' चला रही है मगर 'लाडली माताएं' सकंट में है। इस बात की गवाही प्रदेश में हर रोज होने वाली 18 माताओं की मौत के आंकड़े देते हैं।

प्रदेश का महिला बाल विकास विभाग 18 साल तक की बालिकाओं को परिवार का बोझ न बने, इसके लिए लाडली लक्ष्मी योजना को अमल में लाई है, मगर यही लाडली लक्ष्मी मां बनते ही संकट से घिर जाती है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण तीन से पता चलता है कि प्रदेश में हर एक लाख माताओं में से 332 की मौत हो जाती है, इस तरह प्रदेश मे हर साल 19 लाख माताओं में से 6,365 महिलाएं दमतोड़ देती है। यह आंकड़े साफ बताते है कि प्रदेश मे हर रोज 18 माताएं काल के गाल में समा जाती हैं।

तमाम अध्ययन इस बात का खुलासा करते है कि प्रदेश में बढ़ती माताओं की मौत की वजह बाल विवाह, स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, महिला का कुपोषित होना और रक्त की कमी (एनेमिक) हैं। स्वास्थ्य विभाग और महिला बाल विकास विभाग की तमाम योजनाओं के बाद भी मौतों का आंकड़ा कम नही हो पा रहा है। कई अध्ययन इस बात का खुलासा करते है कि 15 वर्ष की उम्र में मां बनने से मातृ मृत्यु की संभावना 20 वर्ष की उम्र में मां बनने से पांच गुना अधिक होती है।

भोपाल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. शीला भंबल मानती है कि माताओं की मौतों की बढती संख्या की एक वजह बाल विवाह भी है। वे कहती है कि कम उम्र मे शादी होने से ंबालिकाएं असुरक्षित यौन चक्र में शामिल हो जाती है, अपरिपक्व शरीर में बालिका का गर्भधारण करने से खतरा बढ़ जाता है। इतना ही नहीं 18 वर्ष से कम आयु की लड़कियां मानसिक रूप से भी तैयार नहीं होती है।

वहीं चाइल्ड राइड ऑब्जरवेटरी की अध्यक्ष निर्मला बुच का कहना है कि कम उम्र में शादी सीधे तौर पर बाल अधिकारों का हनन है। ऐसा होने से अच्छा जीवन जीने, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा का लाभ उन्हें नहीं मिलता और समाज से जो सुविधा उन्हे मिलना चाहिए वह हासिल नही ंहो पाती है। इतना ही नहीं घरेलू हिंसा का शिकार भी वही महिलाएं ज्यादा होती है जिनकी कम उम्र में शादी हो जाती है।

बुच मानती है कि जननी सुरक्षा योजना के चलते सरकारी अस्पतालों मे प्रसव कराने आने वाली महिलाओं की संख्या मे इजाफा हुआ है, इसके बावजूद और भी कदम उठाए जाने की जरूरत है।

यूनिसेफ की रिपोर्ट भी मानती है कि बाल विवाह सीधे तौर पर बाल अधिकारों का उल्लंघन है और इसी के चलते कई तरह की समस्याएं जन्म लेती है। जिन लड़कियों की कम उम्र में शादी हो जाती है उनके विकास से समझौता करना पड़ता है और जिसकी परिणति समय से पहले मां बनने के तौर पर होती है। इतना ही नहीं बाल विवाह लड़के और लड़की को शिक्षा से तो दूर कर ही देते है साथ में शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विकास पर भी असर डालते है।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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