बासुकीनाथ धाम जाना नहीं भूलते कांवड़िये
यही कारण है कि बाबा बैद्यनाथ मंदिर में जलाभिषेक करने आये कांवड़िये यहां से लगभग 42 किलोमीटर दूर दुमका जिले में स्थित बासुकीनाथ मंदिर में जलाभिषेक करने जाते हैं। कांवड़िये अपनी कांवड़ में सुल्तानगंज में गंगा नदी से दो पात्रों में जल लाते हैं उनमें से एक बाबा बैद्यनाथ में चढ़ाते हैं और दूसरा एक बाबा बासुकीनाथ में।
किंवदंती के मुताबिक प्राचीन काल में बासुकी नाम का एक किसान जमीन पर हल चला रहा था तभी उसके हल का फाल किसी पत्थर के टुकड़े से टकरा गया और वहां दूध बहने लगा। इसे देखकर बासुकी भागने लगा उसी समय यह आकाशवाणी हुई, "तुम भागो नहीं मैं शिव हूं। मेरी पूजा करो।" तब ही से यहां पूजा होने लगी। कहा जाता है कि उसी बासुकी के नाम पर इस मंदिर का नाम बासुकीनाथ धाम पड़ा।
बासुकीनाथ मंदिर के पुजारी पंडित विजय झा के मुताबिक बासुकीनाथ में शिव का रूप नागेश का है। वह बताते हैं कि यहां पूजा में अन्य सामग्रियां तो चढ़ायी ही जाती हैं लेकिन दूध से पूजा करने का काफी महत्व है। मान्यता है कि नागेश रूप के कारण दूध से पूजा करने से शिव खुश रहते हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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