श्रीलंका में ही है प्रभाकरन: लिट्टे
बीबीसी सिंहली रेडियो सेवा के साथ सोमवार को फोन पर बातचीत में लिट्टे की राजनीतिक शाखा के नेता पी. नदेशन ने प्रभाकरन के श्रीलंका से फरार होने की खबरों का खंडन किया है।
बीबीसी ने नदेशन के हवाले से कहा है, "यह दुष्प्रचार है। हमारे नेता अभी भी हमारे साथ हैं। हमारे नेता हमारी आजादी की लड़ाई का नेतृत्व कर रहे हैं।"उसने दावा किया कि लड़ाई जारी रहेगी।
श्रीलंका के सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल सरत फोंसेका ने दावा किया है कि लिट्टे के कब्जे वाले मुल्लइतिवू को अपनी कमान में ले लेने के साथ तमिल विद्रोहियों के खिलाफ 95 प्रतिशत लड़ाई समाप्त हो गई है।
प्रभाकरन ने 1976 में लिट्टे का गठन किया था। बताया जाता है कि मुल्लाइतिवू के घने जंगलों में लिट्टे विद्रोहियों की गहरी और भूमिगत गुफाएं हैं। इस इलाके को अभी श्रीलंका सुरक्षा बलों ने घेर रखा है।
नदेशन ने कहा, "संघर्ष में किसी सुरक्षा बल द्वारा किसी इलाके को गंवाना और उसे फिर से हासिल करना तथा आजादी हासिल करना सामान्य बात है। अतीत में भी हम कई बार इलाके खो चुके हैं और उन पर फिर फिर सफलताओं के साथ फिर से कामयाब हो चुके हैं।"
ये पूछने पर कि लिट्टे हथियार क्यों नहीं डालता और श्रीलंका सरकार से बातचीत क्यों शुरू नहीं करता उसने कहा, "हमने हथियार अपनी जनता की हिफाजत के लिए उठाए हैं। हमें स्वतंत्रता, सम्मान और संप्रभुता के साथ जीने की गारंटी देनी होगी। तब तक हथियार नहीं डाल सकते।"
इसबीच अगस्त 2005 में पूर्व विदेश मंत्री लक्ष्मण कादिरगमार की हत्या की सिलसिले में श्रीलंका की एक अदालत ने सोमवार को प्रभाकरन और तीन अन्य के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी किया।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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