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धोनी की बचकानी जिद और हास्यास्पद तेवर

By Staff
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नई दिल्ली, 22 नवंबर (आईएएनएस)। मनमाफिक टीम पाने को लेकर उपजे विवाद ने भारतीय क्रिकेट में एक बार फिर हलचल मचा दी है। भारतीय टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने हालांकि गुरुवार को चयनकर्ताओं के साथ किसी तरह की बहस और इस्तीफे की पेशकश की बात को सिरे से खारिज कर दिया है लेकिन इससे उस बहस को फिर से हवा मिल गई है जिसमें बार-बार कहा जाता रहा है कि एक कप्तान को मनमाफिक टीम मिलनी चाहिए या नहीं।

नई दिल्ली, 22 नवंबर (आईएएनएस)। मनमाफिक टीम पाने को लेकर उपजे विवाद ने भारतीय क्रिकेट में एक बार फिर हलचल मचा दी है। भारतीय टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने हालांकि गुरुवार को चयनकर्ताओं के साथ किसी तरह की बहस और इस्तीफे की पेशकश की बात को सिरे से खारिज कर दिया है लेकिन इससे उस बहस को फिर से हवा मिल गई है जिसमें बार-बार कहा जाता रहा है कि एक कप्तान को मनमाफिक टीम मिलनी चाहिए या नहीं।

यह मुद्दा लंबे समय से बहस का कारण रहा है। पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) ने हाल ही में साफ कर दिया कि उसके चयनकर्ता कप्तान शोएब मलिक के मनमाफिक टीम ही चुनेंगे। इस लिहाज से पाकिस्तान में चयनकर्ताओं की भूमिका सिर्फ मलिक की पसंद-नापसंद पर ध्यान देना है।

भारत में मामला दूसरा है। यहां पांच क्षेत्रों से चयनकर्ता चुनकर आते हैं और कुल मिलाकर इस प्रक्रिया में क्षेत्रवाद हावी रहता है। इसका सबसे ताजा उदाहरण मुरली विजय हैं, जिन्हें चयन प्रमुख एस. श्रीकांत की पैरवी पर नागपुर टेस्ट में गौतम गंभीर के स्थान पर आजमाया गया।

इसमें कोई शक नहीं कि मुरली एक अच्छे बल्लेबाज हैं और उनका भविष्य उज्जवल है लेकिन उनकी तरह कई अन्य खिलाड़ी हैं, जिन्होंने हाल के दिनों में खुद को साबित किया है और इस लिहाज से वे भारतीय टीम में जगह पाने के हकदार हैं।

उत्तर से की बात करें तो दिल्ली के सलामी बल्लेबाज शिखर धवन, कई मौकों पर खुद को साबित कर चुके मुंंबई के सलामी बल्लेबाज वसीम जाफर और अंडर-19 टीम के सदस्य चितेश्वर पुजारा ऐसे खिलाड़ियों में शामिल हैं, जिन्हें मौका मिलना चाहिए था लेकिन मिल नहीं पा रहा है। इसका कारण यह है कि इनका कोई पैरोकार नहीं है।

जाहिर तौर पर कप्तान होने के नाते धोनी को उन खिलाड़ियों की पैरवी करनी चाहिए, जिनके साथ इंसाफ नहीं हुआ है। उन्हें ऐसे खिलाड़ियों की पैरवी करनी चाहिए जो टीम की जरूरत के मुताबिक फिट बैठते हों।

इस सूची में शामिल खिलाड़ियों की फेहरिस्त भी काफी लंबी है। ऐसे वक्त में जबकि कई खिलाड़ी रिजर्व बेंच पर बैठे अपनी बारी का इंतजार कर रहे हों, कप्तान को किसी ऐसे खिलाड़ी की पैरवी नहीं करनी चाहिए, जो दो मौकों पर बुरी तरह नाकाम रहा है।

किसी भी कप्तान के लिए वह स्थिति बहुत हास्यास्पद होती है, जिसमें उसे उस खिलाड़ी की उपयोगिता को लेकर सफाई देनी पड़ी, जिसकी वह पैरवी कर रहा हो।

रुद्र के प्रदर्शन की बात करें तो इंग्लैंड के साथ जारी श्रंखला में उन्होंने लगभग 90 रन खर्च करके एक विकेट हासिल किया है। अब इस तरह के प्रदर्शन के बावजूद धोनी रुद्र को टीम में क्यों बनाए रखना चाहते हैं, इसका तार्किक उत्तर शायद वह खुद भी नहीं जानते होंगे।

सच्चाई यह भी है कि हर बार कप्तान की मर्जी नहीं चलती। बहुत से ऐसे मौके आते हैं, जब चयनकर्ताओं की ही चलती है और इसमें बोर्ड की मौन सहमति होती है। खासतौर पर ऐसे में जबकि चयन समिति का अध्यक्ष खुद एक समर्पित और ईमानदारी क्रिकेटर रहा हो। यह भी स्वीकार करना होगा कि चयनकर्ता हमेशा गलत फैसले नहीं लेते, ऐसे में एक कप्तान को बहुत संयम के साथ उनके फैसलों को स्वीकार करना चाहिए।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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