'पप्पी' से साध्वी और फिर..'आतंकवादी'!
भिंड, 22 नबम्वर (आईएएनएस)। अगर आप उत्तरप्रदेश की सीमा से सटे मध्यप्रदेश के आखिरी कस्बे लहार में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के बारे में पूछेंगे तो शायद ही कोई अपनी जुबान खोलेगा मगर जब आप 'पप्पी' की बात करेंगे तो हर कोई उसके किस्से आपको जरूर सुनाएगा।
भिंड, 22 नबम्वर (आईएएनएस)। अगर आप उत्तरप्रदेश की सीमा से सटे मध्यप्रदेश के आखिरी कस्बे लहार में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के बारे में पूछेंगे तो शायद ही कोई अपनी जुबान खोलेगा मगर जब आप 'पप्पी' की बात करेंगे तो हर कोई उसके किस्से आपको जरूर सुनाएगा।
दरअसल, भिंड जिले के 50,000 की आबादी वाले इस छोटे से कस्बे में प्रज्ञा सिंह को हर कोई पप्पी के नाम से ही जानता है। सिर्फ दो साल पहले तक जब वह साध्वी नहीं बनी थी तब वह इसी गांव की गलियों में पप्पी ठाकुर बनी फिरती थी। इस गांव में किसी को भरोसा नहीं होता कि पप्पी ने यहां से जाने के बाद ऐसा कौन सा पाठ पढ़ लिया है कि वह अब साध्वी से आतंकवादी की श्रेणी में आ गई।
प्रज्ञा सिंह अपने मां-बाप की चार बेटियों एवं एक बेटे में दूसरे नंबर की संतान है। सबसे बड़ी का नाम बबली है तो प्रज्ञा को सब पप्पी कहते थे। प्रज्ञा के परिवार को जानने वाले स्थानीय नागरिक सूर्यप्रताप सिंह कहते है कि दो साल पहले जब पप्पी सूरत से पहली बार मोटरसाइकिल लेकर आई थी तो खूब इठलाती घूमती थी। उसे अपनी मोटरसाइकिल से इतना लगाव था कि छोटे से छोटे काम के लिए भी दिन भर मोटरसाइकिल पर उड़ा करती थी। एक बात यहां और प्रचलित है कि लहार में पहली बार डिश टीवी उसी ने लगवाया था। वह भी तब, जब उसके अपने घर पर टीवी तक नहीं था। लोग चर्चा करते हैं कि उसके हाथ आखिर ऐसा कौन सा खजाना लग गया कि उसकी जिन्दगी का अंदाज ही बदल गया।
प्रज्ञा की शुरूआती पढ़ाई लहार की प्राथमिक कन्याशाला में हुई। उसे संस्कृत पढ़ना अच्छा लगता था। उसके शिक्षक आर.के. दीक्षित बताते हैं कि स्कूल में तो वह गांव की एक सीधी-साधी लड़की थी, खूब पढ़ती थी और सलवार सूट पहनती थी, लेकिन स्कूल के बाद उसने कालेज की दहलीज पर कदम रखा तो उसकी तमन्नाओं को पर लग गए और गांव की यह पप्पी बाल कटवा कर जींस पहनने लगी। उसी दौरान वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से भी जुड़ी।
प्रज्ञा की एक खासियत और थी कि उसने लोगों को पछाड़ने के दांव कबड्डी के मैदान में सीखे। लहार के वरिष्ठ कांग्रेसी विनोद तिवारी बताते हैं कि वह प्रदेश स्तर की कबड्डी खिलाड़ी थी। अब लहार में पप्पी का घर बंद पड़ा है। चार माह पहले ही उसके पिता सारा समान समेट कर चले गए थे। यानी अब लहार की पप्पी सिर्फ यादों में बची है और साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर बनने के बाद से आज तक उन्हें हर रोज चौंका रही है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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