सरकार ने अदालत से कहा, नो गे सेक्स, प्लीज
नई दिल्ली, 1 अक्टूबर (आईएएनएस)। सरकार ने बुधवार को समलैंगिक सेक्स (गे सेक्स) का विरोध करते हुए इसे प्रकृति के विपरीत करार दिया और कहा कि पश्चिमी मूल्यों को आंख बंद कर भारत में लागू नहीं किया जा सकता।
समलैंगिक कार्यकर्ताओं के वकील के तर्को को खारिज करते हुए अतिरिक्त महाधिवक्ता पी. पी. मल्होत्रा ने दिल्ली उच्च न्यायालय में कहा, "हम अपने समाज को पश्चिमी समाज की प्रवृत्ति पर आगे बढ़ने के लिए मजबूर नहीं कर सकते।"
याचिकाकर्ताओं के वकील वयस्कों के बीच आपसी रजामंदी पर समलैंगिक सेक्स को अलग नजरिये से देखने की मांग कर रहे थे।
मल्होत्रा ने कहा कि भारतीय संविधान में लैंगिक रुझान के बारे में कोई अवधारणा नहीं है। उन्होंने कहा कि पुरुष-पुरुष के बीच सेक्स संबंधों को गोपनीय रखने का अधिकार ठीक नहीं है और न ही इस पर विचार करना व्यापक समाज के हित में है।
मल्होत्रा ने कहा, "समलैंगिक सेक्स प्रकृति के खिलाफ है। हम इसकी मंजूरी देकर प्रकृति को नष्ट कर देंगे। कुछ अकाट्य परिस्थितियों में सरकार को सार्वजनिक नैतिकता को बनाए रखने के लिए कानून का सहारा लेना पड़ता है।"
मुख्य न्यायाधीश अजित प्रकाश शाह और न्यायाधीश एस. मुरलीधर यह जानना चाहते थे कि समलैंगिक सेक्स के खिलाफ कानून के पीछे सरकार की क्या मंशा है।
समलैंगिक सेक्स के दोषी पाये जाने पर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।