पूर्वजों की शहादत को ग्वालियर में याद करेंगे साधु संत
भोपाल, 16 जून (आईएएनएस)। आजादी की लड़ाई में साधु-संतों ने भी कुर्बानियां दी थीं। वर्ष 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ ग्वालियर में हुई लड़ाई में 700 से अधिक साधु-संतों ने अपने प्राण न्योछावर किए थे। उनकी शहादत की याद में देश भर से साधु-संत 18 जून को ग्वालियर में इकट्ठा हो रहे हैं, जहां वे अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देंगे।
आजादी की पहली लड़ाई की मुख्य नायिका रानी लक्ष्मी बाई झांसी से संघर्ष करते हुए घायल अवस्था में ग्वालियर पहुंची थी और बाबा गंगादास के आश्रम में अंतिम सांस ली थी। वीरगति को प्राप्त करने से पहले रानी ने बाबा गंगादास के हाथों तुलसी दल और जल ग्रहण किया था और इच्छा जताई थी कि उनका शरीर किसी भी कीमत पर अंग्रेजों के हाथ नहीं लगना चाहिए।
बाबा गंगादास आश्रम के महंत रामसेवक दास बताते हैं कि अंग्रेजों के आश्रम तक पहुंचने से पहले ही रानी के अंतिम संस्कार का इंतजाम किया गया। साथ ही बाबा ने वहां मौजूद साधु-संतों को निर्देश दिया कि अगर अंग्रेज आते हैं तो वे उनका मुकाबला करें। अंग्रेज वहां पहुंचे और साधुओं ने उनका जमकर मुकाबला किया, जिसमें 700 से अधिक साधु-संत शहीद हो गए थे।
महंत राम सेवक दास के अनुसार हर वर्ष 18 जून को उन शहीद साधु-संतों की याद में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया जाता है। यह वर्ष इन साधुओं की शहादत का डेढ़ सौवां साल है। इसलिए इस बार की श्रद्धांजलि सभा में देश भर के साधु सम्मिलित हो रहे हैं।
बाबा गंगादास का आश्रम ग्वालियर में ठीक उसी नाले के किनारे है जहां रानी का घोड़ा फंस गया था। आश्रम के करीब ही महारानी लक्ष्मी बाई का समाधि स्थल बना है, जहां बलिदान दिवस के मौके पर तीन दिवसीय कार्यक्रम चलते हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।