खुदरा प्रबंधन लेकर आया रोजगार के अवसर
नई दिल्ली, 15 जून (आईएएनएस)। आजकल बिक्री का इतना अधिक महत्व है कि खुदरा प्रबंधन अनिवार्य क्षेत्र बन चुका है। रिलायंस, इंडियन टोबैको कंपनी, हिन्दुस्तान लीवर लिमिटेड जैसे बड़े-बड़े व्यावसायिक संगठन इस क्षेत्र में धाक जमा रहे हैं। इस वजह से खुदरा प्रबंधन विशेषज्ञता-युक्त नया प्रबंधन क्षेत्र बन चुका है।
प्रथम दृष्टया स्थानीय भाषा में इसे 'किराना' स्टोर कहते हैं लेकिन खुदरा प्रबंधन मात्र इतना ही नहीं है। कोई भी व्यक्ति यह कार्य कर सकता है। बदलती जीवन-शैली के प्रति अनुकूलन क्षमता से जुड़ी आवश्यकताओं की इस प्रकार से पूर्ति की जाती है कि यह क्षेत्र प्रबंधन के विशेष क्षेत्र का रूप धारण कर लेता है। खुदरा प्रबंधन ब्रांड तैयार करना है, न कि मात्र उत्पाद तैयार करना बल्कि यह कार्य संगठन से जुड़ा है।
भारत में यह अपेक्षाकृत नया क्षेत्र है। खुदरा प्रबंधन में अनिवार्यत: थोक व्रिकेता के विपरीत कम मात्रा में सामान का चयन किया जाता है। यही कम मात्रा खुदरा बिक्री को नया विशिष्ट रूप देती है। अत: खुदरा प्रबंधन केवल बिक्री काउंटर का ही प्रबंधन नहीं करता है।
यह विनिर्माण, वित्त, बिक्री, मार्केटिंग, सूचना प्रौद्योगिकी, मानव संसाधन, स्टोर संबंधी प्रचालन कार्यो का मिश्रित रूप है। सामान्य विपणन कार्य-नीतियों से भिन्न इस क्षेत्र में उत्पाद संवर्धन, मूल्य तथा स्थान संबंधी निर्णायक तत्वों पर पकड़ होती है। खुदरा प्रबंधन की सफलता की कुंजी उसके लोग या ग्राहक हैं।
अत: खुदरा प्रबंधकों में संप्रेषण अथवा व्यवहारमूलक कौशल होना चाहिए। वे ग्राहक का व्यवहार भांपने में भी पूर्णत: कुशल होने चाहिए। चाहे अल्पकालिक प्रयोजन हों या दीर्घ-कालीन प्रयोजन, खुदरा प्रबंधकों को ग्राहकों का स्टोर के प्रति निरंतर ध्यान आकर्षित करने के लिए नए-नए तरीके अपनाते रहना चाहिए। इस प्रयोजन से इष्टतम मूल्य बरकरार रखते हुए विभिन्न स्कीमें और बिक्री संवर्धन की कार्यनीतियां लागू करनी चाहिए।
हालांकि खुदरा बिक्री असंगठित क्षेत्र है लेकिन आज के समय में दुकानदार नई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। साथ ही बड़े-बड़े कॉरपोरेट और शॉपर्स शॉप, क्रॉसवर्ड जैसे विशाल (मेगा) रिटेलर इस क्षेत्र को नया रूप दे रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय खुदरा उद्योग का एक सौ अस्सी अरब डालर मूल्य आंका गया है। बाजार में संगठित क्षेत्र का 2 प्रतिशत हिस्सा है तथा परचून क्षेत्र लगभग 50 प्रतिशत है। फिर भी, ओआरजी के अन्य अध्ययन से संकेत मिलता है कि मात्र 5.3 करोड़ खुदरा दुकानें (आउटलैट) इस देश के संगठित और असंगठित बाजार में उपलब्ध हैं। अनेक विदेशी खुदरा कॉरपोरेट भी भारतीय खुदरा बाजार में फल-फूल रहे हैं।
इस उद्योग में अचानक उछाल आने का कारण उदारीकरण की नीतियां हैं। स्पष्ट है कि भारतीय उपभोक्ता अपनी जरूरतों से अच्छी तरह से परिचित हैं। इंटरनेट के प्रवेश से भारतीय उपभोक्ता को मार्केट से जुड़ने का नया रास्ता मिल गया है।
इस क्षेत्र में व्यापक वृद्धि हुई है। इससे देश में खुदरा प्रबंधन के पाठ्यक्रम भी बढ़ रहे हैं। ग्राहकों में बढ़ती जागरूकता के कारण तथा कॉरपोरेट की गहन रुचि की वजह से इस क्षेत्र में उल्लेखनीय संस्थागत रुचि पनपी है।
ईबोनी, द होम स्टोर्स जैसे खुदरा स्टोरों में इस क्षेत्र से संबंधित कक्षाएं ली जाती हैं। ईबोनी रिटेल अकादमी राष्ट्रीय बिक्री संस्थान (एनआईएस) के साथ मिलकर खुदरा अभिविन्यास, उपभोक्ता-व्यवहार, योजना तथा रिपोर्टिग, बिक्री और संवर्धन क्षेत्रों में कक्षाएं आयोजित करता है। होम स्टोर में अन्य पाठ्यक्रम चलाया जाता है, जो किसी विश्वविद्यालय से नहीं जुड़ा है। ईबोनी के कोर्स की अवधि तीन माह है, जिसके लिए कोई विशिष्ट पात्रता मानदंड नहीं है। म्यूजिक वर्ल्ड का अपना खुदरा प्रबंधन संस्थान है।
प्रबंधन तथा व्यावसायिक स्कूल इस क्षेत्र की बढ़ती संभावनाओं तथा लोकप्रियता को समझ चुके हैं। इन्होंने खुदरा प्रबंधन में नए पाठ्यक्रम शुरू कर दिए हैं।
खुदरा प्रबंधन के लिए आपके पास विभिन्न कौशल होने चाहिए। जैसे - गणना में रुचि, खरीदते समय विशिष्ट उत्पाद वर्गो की जानकारी और ग्राहक सेवा संबंधी अंतरवैयक्तिक कौशल। निम्न स्तर पर प्रबंधक प्रतिवर्ष एक लाख रुपये तक कमा सकते हैं तथा मध्य और उच्च स्तर पर इससे अधिक वेतन मिलता है।
(कैरियर संबंधी और अधिक जानकारी के लिए देखिए ग्रंथ अकादमी, नई दिल्ली से प्रकाशित ए गांगुली और एस. भूषण की पुस्तक "अपना कैरियर स्वयं चुनें"।)
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।