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कृषि इंजीनियरिंग के क्षेत्र में हैं रोजगार के बड़े विकल्प

By Staff
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नई दिल्ली, 14 जून (आईएएनएस)। कृषि मात्र बीज बोने या फसल काटने का ही कार्य नहीं है। इसमें फार्म प्रबंधन, वित्त के संबंध में बैंकिंग कार्य-कलाप तथा खेतों का विकास, उत्पादों, कृषि सेवाओं आदि का परिमाण एवं गुणवत्ता बढ़ाने के लिए अनुसंधान कार्य जैसे कार्यकलाप भी शामिल है।

संक्षेप में, कृषि इंजीनियर जैव विज्ञान तथा पर्यावरण विज्ञान को कृषि मशीनरी के डिजाइन, विरचन तथा विनिर्माण कार्य के आभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग) सिद्धांतों के साथ समेकित करते हैं। साथ ही मृदा-संरक्षण, सिंचाई प्रणालियों की योजना, संरचना के डिजाइन एवं कृषि-ट्यूबवेल तथा पंप लगाने, प्रसंस्करित फार्म उत्पादों के उत्पादन आदि का कार्य करते हैं तथा कृषि वित्तपोषण सेवाओं पर केंद्रीत होते हैं।

कृषि इंजीनियर खेती के विभिन्न औजारों, मशीनों, खाद्य तथा कीटनाशक दवाओं जैसे अन्य उत्पादों का अध्ययन करते हैं, ताकि पर्यावरण को कम से कम क्षति पहुंचे और फसलें भी सुरक्षित रहें। ये कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण, उत्पादन, ढुलाई तथा भंडारण की भी देखभाल करते हैं। साथ ही प्रबंधकों एवं स्वामियों के साथ समस्याओं पर चर्चा करते हैं और रिपोर्ट तैयार करते हैं। बिल्डिंग, संस्थापना एवं परीक्षण प्रक्रियाओं की निगरानी करते हैं।

अन्य इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम के समान इस पाठ्यक्रम में डिग्री लेने के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति विज्ञान विषय में पीसीबी या पीसीएम सहित बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की हो। आप जैव रसायन इंजीनियरिंग, खाद्य प्रौद्योगिकी तथा प्राप्त कर रसायन प्रौद्योगिकी में डिग्री से कृषि इंजीनियरिंग के रूप में उपाधि पा सकते हैं। साथ ही खाद्य प्रौद्योगिकी या सिंचाई इंजीनियरिंग में विशेषज्ञता प्राप्त करना भी आवश्यक है। कृषि इंजीनियरिंग में एई या एमटेक के दौरान फार्म मशीनरी मृदा और जल संरक्षण इंजीनियरिंग, जल कृषि या जल प्रबंधन में विशेषज्ञता काफी उपयोगी सिद्ध होती है। पृथक व्यवसाय के रूप में कृषि इंजीनियरिंग अभी भारत में इतना लोकप्रिय नहीं हो पाया है। अधिकांशत: स्वयं कृषक भी इस इंजीनियरिंग की जानकारी हासिल करने में बहुत ज्यादा रुचि नहीं लते।

भारत का कृषि क्षेत्र अभी भी मजबूत है, अत: इसमें भी संभावनाएं बहुत हैं। वस्तुत: जैसे-जैसे उन्नति होती जाती है, इस क्षेत्र में अधिकाधिक विशेषज्ञता प्राप्त व्यावसायिकों की जरूरत भी बढ़ती जाती है। स्वयं किसान भी तकनीकी पक्षों को संभाल नहीं पाएंगे, जिससे उन्हें विशेषज्ञों से परामर्श लेने की आवश्यकता पड़ेगी। इस क्षेत्र में सरकार की गहन रुचि होने के कारण केंद्र व राज्य सरकार के विभागों में प्रचुर अवसर मौजूद हैं।

कृषि उद्योग, सिंचाई तंत्र तथा कृषि मशीनरी विकास एवं विनिर्माण कंपनियों, बीज तैयार करनेवाली कंपनियों, डेयरी एवं खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों तथा कृषि क्षेत्र में कार्यरत गैर-सरकारी संगठनों में विकल्प मौजूद हैं। कृषि वित्त अन्य क्षेत्र हैं, जहां इंजीनियर प्रबंधन प्रशिक्षणार्थी या तकनीकी अधिकारियों के रूप में बैंकों में कार्य कर सकते हैं।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, राष्ट्रीय बीज निगम, भारतीय खाद्य निगम, राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड तथा डेयरी व खाद्य उद्योग जैसे संगठन भी कृषि इंजीनियरों को नौकरी पर रखते हैं। डिप्लोमा धारकों को प्रारंभ में चार हजार से लेकर छह हजार रुपये तक वेतन मिलता है तथा कृषि इंजीनियरिंग में डिग्री धारकों को कम से कम साढ़े छह रुपये से नौ हजार रुपये तक प्रति माह वेतन मिलता है।

(कैरियर संबंधी और अधिक जानकारी के लिए देखिए ग्रंथ अकादमी, नई दिल्ली से प्रकाशित ए. गांगुली और एस. भूषण की पुस्तक "अपना कैरियर स्वयं चुनें"।)

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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