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सीटीबीटी पर हस्ताक्षर से भारत का इंकार (लीड-1)

By Staff
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नई दिल्ली, 11 जून (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बुधवार को यह घोषणा की कि भारत सीटीबीटी यानी व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध संधि पर हस्ताक्षर नहीं करेगा। साथ ही उन्होंने यह आवश्यकता जताई कि देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत-अमेरिका परमाणु करार के मुद्दे पर सरकार को आगे बढ़ना ही होगा।

नई दिल्ली, 11 जून (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बुधवार को यह घोषणा की कि भारत सीटीबीटी यानी व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध संधि पर हस्ताक्षर नहीं करेगा। साथ ही उन्होंने यह आवश्यकता जताई कि देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत-अमेरिका परमाणु करार के मुद्दे पर सरकार को आगे बढ़ना ही होगा।

भारतीय विदेश सेवा के नए अभ्यर्थियों के लिए आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने चीन के साथ प्रतिस्पर्धा को लेकर भी आगाह किया।

प्रधानमंत्री ने भाषण के दौरान कई विषयों पर अपनी राय रखी। उन्होंने बालीवुड से लेकर भारतीय अर्थव्यवस्था और पड़ोसी राज्यों से संबंधों से जुड़े विषयों को अपने भाषण में सम्मिलित किया।

मनमोहन सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री बनने के बाद विदेश नीति के मामले में भारत अमेरिका परमाणु करार को लेकर उन्हें सबसे अधिक मुश्किलातों का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा कि घरेलू राजनीति के चलते हम इस करार को लेकर आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं।

उन्होंने कहा, "भारत और अमेरिका के बीच प्रस्तावित परमाणु करार किसी भी तरह से राष्ट्रीय हितों को प्रभावित नहीं करेगा। ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए हमें करार के मोर्चे पर आगे बढ़ना बेहद महत्वपूर्ण है।"

प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय संप्रभुता और अपने परमाणु परीक्षण के अधिकार को अक्षुण्ण रखने के लिए भारत सीटीबीटी पर हस्ताक्षर नहीं करेगा।

मनमोहन सिंह ने कहा कि भारत ने हालांकि अभी तक परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर नहीं किया है बावजूद हम इस रुख पर कायम हैं कि सीटीबीटी के मौजूदा प्रारूप पर दस्तखत करने की फिलहाल हमारी कोई योजना नहीं है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि नागरिक क्षेत्र में उपयोग के लिए परमाणु सहायता प्रदान करने के एवज में भारत पर एनपीटी या अन्य कोई वैश्विक करार पर दस्तखत करने के लिए अमेरिका का कोई दबाव नही हैं।

समझा जाता है कि प्रधानमंत्री का यह बयान अमेरिका के साथ प्रस्तावित परमाणु संधि पर वामदलों की घोर आपत्ति को ध्यान में रखकर दिया गया है और इस बात के प्रयास किए गए हैं कि वामदलों को इस मामले में भरोसा में लिया जा सके।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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