राष्ट्रीय. पटाखा रेलगाडी दो अंतिम नयी दिल्ली
धुंध के दौरान इंजन ड्राइवरों को सिगनल देने के लिए अंगरेजों ने एक अलग तरीका इजाद किया था1 इसके तहत सिगनल से कुछ पहले एकोपडा बना कर उसमें पटाखे देकर एक व्यक्ति बिठाया जाता था1 जैसे ही किसी गाडी को सिगनल मिलता था. वह पटरी में पटाखा बांध देता था1 धुंध के बीच रेंगती गाडी जैसे ही पटाखे से गुजरती थी. हल्का धमाका होता और ड्राइवर सम जाते थे कि सिगनल हरा है1 यदि पटाखा नहीं बजता तो ड्राइवर गाडी रोक देते थे
उपग्रह संचार आेर संकेत प्रणाली के इस दौर में भी भारतीय रेल मेंकमोबेश यही तकनीक अभी भी अपनायी जा रही है1 भारत में भी ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम.जीपीएस. के सहारे सिगनल की जानकारी ड्राइवरों को देने की योजना बनायी गयी है1 उत्तर रेलवे के अम्बाला डिवीजन में इस प्रौद्योगिकी का परीक्षण हो रहा है पर यह तकनीक सफ्ल है. इस पर कोई भी अधिकारी अभी कुछ कहने को तैयार नहीं है1 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान आईआईटी कानपुर के सहयोग से रेलवे गाडियां की ट्रैकिंग और संचार की एक नयी तकनीक पर काम कर रहा है जिसका परीक्षण कानपुर के आसपास हो रहा है
उत्तर रेलवे के एक अधिकारी ने बताया कि 65 रूपए प्रति पटाखे के दर से उसके जोन में डेढ लाख पटाखे खरीदे गए हैं1 रेलवे के सभी 16 जोनों के लिए करीब 25 लाख पटाखे खरीदे गए हैं1 जिनकी कुल कीमत 16 करोड रूपए बैठती है
शिशिर जितेन्द्र वीरेन्द्र1405 वार्ता