दहेज का मुकदमा चलाने के लये शादी होना जरी या नहीं
नयी दिल्ली 14 अक्टूबर.वार्ता. उच्चतम न्यायालय इस पर विचार करेगा कि क्या विवाह संपन्न हुये बिना भी दहेज निरोधक कानून के तहत किसी व्यक्ति पर मुकदमा चलाया जा सकता है 1 न्यायमूर्ति अशोक भान तथा नयायमूर्ति डी के जैन की पीठ ने गत शुक्रवार को इस संबंध में एक इंजीनियर मोहनलाल रावत की याचिका को विचारार्थ मंजूर किया1 मोहन लाल को मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने दहेज निरोधक अधिनियम 1951 की धारा चार के तहत दहेज मांगने का दोषी करार दिया है 1 याचिकाकर्ता के वकील सुरेशचंद और के.शिवराज चौधरी ने न्यायालयके समक्ष दलील दी कि 19 मई 1986 को प्रस्तावित शादी के वक्त दर्ज दहेज संबंधी मामले पर 20 साल बाद मोहन लाल को दोषी ठहराया जाना गलत है
वकीलों ने यह भी दलील दी कि ग्रामीणोंं के समाने बुाने के बाद मोहन लाल बिना दहेज विवाह को राजी हो गया था लेकिन फिर लडकी के परिजनों ने ही शादी से इंकार कर दिया था इसलिये याचिकाकर्ता के खिलाफ दहेज का मामला नहीं बनता 1उन्होेने यह भी कहा कि इससे पहले मामले की सुनवाई कर चुकी दो निचली अदालतों ने दहेज की मांग वापस लेने के याचिकाकर्ता के बिन्दुओं को अपने रिकार्ड में रेखांकित किया था
गौरतलब है कि बीस साल से भी ज्यादा पुरानी इस घटना में मोहन लाल ने बारात के दौरान एक रेफ्रिजरेटर और स्कूटर की मांग की थी जिसे वधू पक्ष ने मानने से इंकार कर दिया था 1 उच्चतम न्यायालय ने मोहनलाल को गत 18 जून को जमानत देते हुये मध्यप्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया था1 पंचानन अजय लखमी1759.वार्ता..