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Integrated Farming : देसी पॉल्ट्री फार्म और मछली पालन में सुनहरा भविष्य, कमाई भी शानदार

कोरोना महामारी के दौरान लॉकडाउन से प्रभावित संजीव कुमार उन लोगों के लिए प्रेरणा बन सकते हैं, जो या तो जॉबलेस होने की स्ट्रेस में हैं, या आमदनी के लिए किसी स्टार्टअप की प्लानिंग में जुटे हैं।

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बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश), 15 मई : राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में रहने वाला कोई व्यक्ति अगर अच्छी-खासी कमाई छोड़कर घर लौट जाए और मछलीपालन को अपना करियर बनाने का फैसला करे तो आप उसे क्या कहेंगे ? उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में रहने वाले एक संजीव सिंह ने कुछ ऐसा ही किया है। उन्होंने मुर्गीपालन और मछलीपालन का व्यवसाय शुरू कर नशानदार कामयाबी हासिल की है। संजीव बताते हैं कि निजी कंपनी में नौकरी के अवसर तलाश रहे लोगों के पास अगर थोड़ी-बहुत जमीन हो तो वे मुर्गी और मछलीपालन को अपना पेशा बना सकते हैं। आर्थिक पहलू पर संजीव ने कहा कि पहले छोटे स्तर से काम शुरू करना चाहिए। सफलता मिलने पर काम का दायरा बढ़ाना खुद के हाथ में है। पढ़िए संजीव को किस प्रकार मिली सफलता

sanjeev bulandshahar farming

युवा काम की शुरुआत कैसे करें
पलायन कर रहे युवाओं को संदेश देते हुए संजीव ने कहा, अपने घर पर रहें। छोटे स्तर पर काम शुरू करें, कामयाबी मिलेगी। कम पैसों वाले किसान 100-200 चूजे लाकर काम शुरू करें। शहरों में 10-20 हजार की नौकरी से बेहतर है फार्म का बिजनेस। घर परिवार के साथ रह सकते हैं। उन्होंने मुर्गियों के आहार के बारे में बताया कि दाना देना भी जरूरी है, लेकिन चक्की नहीं है तो मक्का बाजरा भी खिला सकते हैं।

दिल्ली छोड़कर मछलीपालन से जुड़े संजीव

दिल्ली छोड़कर मछलीपालन से जुड़े संजीव

संजीव बताते हैं कि गांव में मां के अकेले होने के कारण गांव लौटे। शुरुआत में मछलीपालन के लिए तालाब बनाया। तालाब खुदवाने के बाद निकली मिट्टी से ऊंची जगह को समतल बनाकर मुर्गी फारम बनाया। मछलीपालन के साथ-साथ मुर्गी पालन भी शुरू कर दिया।

देसी मुर्गियों की खूब केयर, मिलते हैं अच्छे पैसे

देसी मुर्गियों की खूब केयर, मिलते हैं अच्छे पैसे

राष्ट्रीय राजधानी की लैविश लाइफ छोड़कर गांव लौटने के फैसले के बारे में संजीव सिंह बताते हैं कि वे पहले भी गांव में ही रहते थे, दिल्ली आना जाना होता था। लॉकडाउन के बाद हमेशा के लिए गांव आ गए। आज संतोष के साथ कह सकते हैं कि जितना पैसा शहर में नहीं कमा पाते थे, उससे अधिक गांव में कमा लेते हैं। दिल्ली में गैस एजेंसी में काम करते थे। अपनी इंगेजमेंट के बारे में संजीव बताते हैं कि देसी मुर्गियों की खूब केयर करते हैं। बेचने पर उन्हें अच्छे पैसे भी मिलते हैं।

मुर्गियों के दाने के लिए घर में ही लगाई आटा चक्की

मुर्गियों के दाने के लिए घर में ही लगाई आटा चक्की

मुर्गियों के दाने के लिए घर में ही आटा चक्की लगा ली है। इससे मुर्गी और मछलियों के आहार पर होने वाला खर्च बच जाता है। संजीव बताते हैं कि मुर्गीपालन की शुरुआत में वे अंडे देती हुई बड़ी मुर्गियां लाए थे। एक मुर्गी की कीमत लगभग 310 रुपये पड़ी थी। 700 मुर्गियों से शुरुआत की। मुर्गियों की वेराइटी के बारे में संजीव बताते हैं कि उनके फारम में आरआईआर, डबल एफजी प्रजाति की मुर्गियां हैं। इनको चुनने के पीछे कारण सबसे अधिक अंडे देना है। दोनों प्रजातियों की मुर्गियां अंडे खूब देती हैं।

घर पर ही अंडों का बंदोबस्त

घर पर ही अंडों का बंदोबस्त

काम शुरू होने के बाद आमदनी बढ़ी तो संजीव ने घर पर ही मुर्गी के अंडे का भी बंदोबस्त कर लिया। उन्होंने बताया कि मुर्गियों के प्रजनन के लिए हैचरी भी रखी है। आरआईआर प्रजाति की मुर्गी साल में लगभग 200 अंडे देती हैं। उन्होंने बताया कि कड़कनाथ नई प्रजाति है। इनके अंडे बेचने में मशक्कत करनी पड़ती है। बाकी दोनों प्रजाति की मुर्गियों के अंडों की बिक्री आसानी से हो जाती है। सर्दियों में देसी अंडे 10-15 रुपये के बीच बिक जाते हैं।

काम का दायरा और बढ़ाने का प्रयास
मुनाफा कितना होता है, इस सवाल पर संजीव ने कहा, काम शुरू करने के बाद 8 महीनों में जो भी आमदनी हुई, उसे पॉलट्री फार्म और मछलीपालन में लगा दिया। उनके पास 10 बीघा जमीन है। काम और आगे बढ़ाने की कोशिश में जुटे हैं। इस काम के लिए किसी ट्रेनिंग की जरूरत नहीं लगती।

1000 मुर्गियों को रखने का इंतजाम

1000 मुर्गियों को रखने का इंतजाम

1000 मुर्गियों को रखने का इंतजामरखने वाले संजीव अपने मुर्गी फारम के बारे में बताते हैं कि उनका मुर्गी फारम 32 फीट चौड़ा, 70 फीट लंबा है। उन्होंने कहा कि 1000 से अधिक मुर्गियों को रखने की क्षमता है। उन्होंने प्राकृतिक वातावरण में रखने के लिए शेड के भीतर मुर्गियों के लिए स्टैंड भी बना रखा है।

देसी अंडों और मुर्गों की डिमांड अधिक
संजीव बताते हैं कि उनके पास जो हैचरी है उसमें 700 अंडे रखे जा सकते हैं। पहली बार में लगभग 620 बच्चे निकले। उन्होंने कहा कि जिस भी स्थानीय व्यक्ति को मुर्गीपालन से जुड़ना है, उसे चूजे देने के लिए तैयार हैं। जिसे जरूरत हो, मदद के लिए संपर्क कर सकता है।

अपनी जमीन के तालाब में मत्स्यपालन, फिर मुर्गीपालन

अपनी जमीन के तालाब में मत्स्यपालन, फिर मुर्गीपालन

संजीव ने अपनी एक बीघा जमीन पर तालाब खुदवाने के बाद लगभग 60 हजार मछलियों के बच्चों के साथ मत्स्यपालन शुरू किया। इसके बाद उन्होंने मुर्गीपालन में हाथ आजमाए। उन्होंने कहा कि मुर्गीपालन का विचार इसलिए आया क्योंकि ग्रामीण इलाकों के अलावा लोगों के बीच देसी अंडों की डिमांड है। देसी मुर्गे-मुर्गियों में बीमारियों का भी डर नहीं रहता। उन्होंने शुरुआत में 500 मुर्गियां लाईं, जिसमें लगभग 1.5 लाख का खर्च आया। मुर्गी फारम का शेड बनवाने में एक-डेढ़ लाख रुपये खर्च हुए। मुर्गे-मुर्गियों को कोई परेशानी होने पर देसी इलाज के संबंध में संजीव बताते हैं कि सर्दियों में लहसुन, प्याज अदरख खिलाते हैं, इनसे ही परेशान सॉल्व हो जाती है।

इंटीग्रेटेड फार्मिंग का सफल नमूना है संजीव का काम

इंटीग्रेटेड फार्मिंग का सफल नमूना है संजीव का काम

संजीव का काम इंटीग्रेटेड फार्मिंग का सफल नमूना है। शुरुआती चुनौतियों को लेकर एक सवाल के जवाब में संजीव ने कहा, हर नए काम की शुरुआत में डर तो रहता है, लेकिन हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। उन्होंने कहा कि प्लानिंग बहुत कम कामयाब होती है। संकल्प के साथ सीधा काम शुरू करना चाहिए। उन्होंने बताया, एक मुर्गी तैयार करने में बच्चे से बड़े होने में लगभग 60-70 रुपये का खर्च होता है। उन्होंने कहा कि मार्केटिंग के लिए मेहनत करनी पड़ेगी। फेसबुक, यूट्यूब और वॉट्सऐप पर ग्रुप बनाने के बाद प्रचार में मदद मिलती है।

ये भी पढ़ें- New Zealand छोड़ मछली पालक बने युवा अर्नव ने दिखाई कामयाबी की राह, जानिए बिहार के सासाराम की सक्सेस स्टोरी

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English summary
Sanjeev Kumar started Desi Poultry Farming and Fish Farming in Bulandshahar, UP after leaving job in New Delhi. He invites many to do such things for economic prosperity.
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