Teacher's Day: आखिर क्यों सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन को शिक्षक दिवस के तौर पर मनाया जाता है?
Teacher's Day: आखिर क्यों सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन को शिक्षक दिवस के तौर पर मनाया जाता है?
नई दिल्ली, 04 सितंबर: भारत में हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। शिक्षक दिवस के दिन हम हमारी जिंदगी में शिक्षकों के योगदान को याद करते हैं। एक छात्र के जीवन को सवारने और आकार देने में शिक्षक की सबसे बड़ी भूमिका होती है। शिक्षक दिवस भारत रत्न से सम्मानित स्वतंत्र भारत के पहले उप-राष्ट्रपति और देश के दूसरे राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती के दिन मनाया जाता है। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर को 1888 में हुआ था। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक उत्कृष्ट शिक्षक थे।
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक सम्मानित शिक्षाविद थे। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को एक तेलुगु परिवार में आंध्र प्रदेश में हुआ था। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 'द फिलॉसफी ऑफ रवींद्रनाथ टैगोर' पुस्तक लिखी थी। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन दर्शनशास्त्र में मास्टर डिग्री थे। राधाकृष्णन ने ही भारतीय दर्शन को वैश्विक मानचित्र पर रखने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी।
राधाकृष्णन का एक लंबा अकादमिक करियर था। उन्होंने चेन्नई के प्रेसीडेंसी कॉलेज और कलकत्ता विश्वविद्यालय में पढ़ाया था। राधाकृष्णन आंध्र प्रदेश विश्वविद्यालय के 1931-1936 तक कुलपति थे। इतना ही नहीं राधाकृष्णन ने ऑक्सफोर्ड में पूर्वी धर्म और नैतिकता के विषय पर भी 1936 से 16 सालों तक पढ़ाया था।
भारत के राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के रूप में उनके कार्यकाल 1962 से 1967 तक के दौरान उनके छात्रों और दोस्तों ने उनसे 5 सितंबर को अपना जन्मदिन मनाने की अनुमति मांगी थी। इसके लिए डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन से काफी गुजारिश की गई थी। हालांकि डॉ राधाकृष्णन ने इस तरह के भव्य प्रदर्शन से इनकार कर दिया था। डॉ राधाकृष्णन ने इसकी जगह कहा कि उनका जन्मदिन मनाने की बजाय अगर समाज में शिक्षकों के योगदान को मान्यता देने के लिए यह दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जा सकता है।
भारत में 1962 से डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन को शिक्षक दिवस के तौर पर मनाया जा रहा है। डॉ राधाकृष्णन को 'सर' की उपाधि से सम्मानित किया गया था, लेकिन उन्होंने भारत की आजादी के बाद इसका इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया था। सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने असल में कभी-भी अपने जीवन में शिक्षक बनना नहीं छोड़ा। डॉ राधाकृष्णन को नोबेल पुरस्कार के लिए कई बार नामांकित किया गया था। 1984 में राधाकृष्णन को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।