Lord Shaligram: कौन हैं भगवान शालिग्राम? क्यों विष्णु की तरह उन्हें मंदिर में नहीं रखा जाता?
Who is Lord Shaligram?: भगवान शालिग्राम देखने में तो काले रंग एक पत्थर हैं,जिन्हें वैज्ञानिक जीवाश्म मानते हैं लेकिन पुराणों में ये भगवान विष्णु के अवतार कहे गए हैं, जो कि माता तुलसी के पति हैं। शालिग्राम का एकमात्र मंदिर नेपाल के मुक्तिनाथ क्षेत्र में स्थित है, जहां कि यात्रा काफी कठिन मानी जाती है। वैसे शालिग्राम आमतौर पर पवित्र नदी की तली से एकत्र किए जाते हैं। माना जाता है कि जिन घरों में शालिग्राम जी की पूजा होती है, वहां से कभी सुख-शांति और समृद्धि की विदाई नहीं होती है। मालूम हो कि शालिग्राम को भगवान विष्णु का विग्रह रूप कहा गया है और इसी वजह से इनकी पूजा की जाती है।
कैसे पड़ा विष्णु का नाम शालिग्राम?
दरअसल इसके पीछे एक लंबी कहानी है, जिसे हर किसी को जानना काफी जरूरी है। मालूम हो कि आदिकाल में एक जलंधर नाम का असुर था, जो कि बहुत दुष्ट और ताकतवर था। उसने अपने बल से इंद्र समेत सारे देवताओं को अपने अधीन कर लिया था। वे देवताओं और देवकन्याओं को परेशान करता था। उसके आतंक से समस्त देवतागण परेशान हो गए थे। उसने महर्षि कन्या वृंदा से शादी की थी, जो कि भगवान विष्णु की परम भक्त थी। उसकी पूजा से खुश होकर भगवान विष्णु ने उसे सदा सुहागन रहने का आशीष दिया था, जिसका गलत फायदा जलंधर उठाने लग गया था।
इंद्र को ये बात जब पता चली तो वो भगवान विष्णु के पास मदद के लिए भागे, जब विष्णु को पता चला कि ये सब उनके ही एक वरदान के कारण हो रहा है तो वो काफी दुखी हुए और उन्होंने जलंधर को सबक सिखाने के लिए एक मायावी कहानी रची। उन्होंने जलधंर का रूप धरा और वृंदा के पास पति बनकर पहुंचे और उसके सतीत्व भंग कर दिया जिसके बाद जलंधर की शक्ति आधी हो गई और वो देवताओं से हुए युद्ध में माारा गया।
लेकिन वृंदा को जब सच्चाई पता चली तो उसे बड़ा ही क्रोध आया और उसने धोखा करने के लिए भगवान विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया, जो कि शालिग्राम कहलाए लेकिन बाद में देवताओं की प्रार्थना पर उसने अपना श्राप वापस ले लिया और जलंधर की चिता के साथ सती हो गईं लेकिन भगवान विष्णु को अपनी गलती पर शर्म आई, जहां वृंदा सती हुई थीं, वहां एक तुलसी के पौधे ने जन्म लिया और अपनी गलती को सुधारने के लिए शालिग्राम ने तुलसी से शादी करके उनको पत्नी का दर्जा दे दिया, उन्होंने अपनी गलती मानते हुए कहा था कि 'वृंदा यह तुम्हारे सतीत्व का फल है कि तुम तुलसी का पौधा बनकर हमेशा मेरे साथ ही रहोगी।'
जिस तरह से तुलसी माता घर के आंगन या बालकनी या बाहर के प्रांगण में पूजी जाती हैं, उसी तरह से शालिग्राम की पूजा भी घर के आंगन या बालकनी या बाहर के प्रांगण में होती है। भगवान विष्णु की तरह वो घर के मंदिर में नहीं रखे जाते हैं। उनकी पूजा तब तक अधूरी मानी जाती है, जब तक कि उन्हें तुलसी की पत्तियों से भोग ना लगे। कहते हैं कि जिस घर में तुलसी और शालिग्राम की पूजा साथ-साथ होती है, उस घर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी दोनों की कृपा बरसती है।
महादेव ने भी की थी शालिग्राम की स्तुति
पुराणों में कहा गया है कि जिस घर में भगवान शालिग्राम हो, वह घर समस्त तीर्थों से भी श्रेष्ठ है। तो वहीं देवों के देव यानी महादेव ने भी कार्तिक माहात्मय में भगवान शालिग्राम की स्तुति की थी, जिसका वर्णन स्कंदपुराण में किया गया है।
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