धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक महत्व भी रखता है शिव का अभिषेक
जगत की सारी अशुद्धि को शुद्ध करना शिव का कर्म है। जगत की सारी अच्छी और बुरी ऊर्जाएं शिव से ही शुद्ध होती हैं।
नई दिल्ली। भारत और भारतीयों के कण-कण में, तन-मन में बसते हैं भोले भंडारी भगवान शिव। सृष्टि का निर्माण इनसे, चेतनता का भान इनसे, अपूर्ण की पूर्णता इनसे और अशुद्धि की शुद्धि भी इनसे ही। स्वयं विष पीना और सबमें अमृत बांट देना, यही धर्म, यही कर्म है इनका।
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तभी तो सृष्टि को रचकर भी विमुक्त नहीं हुए शिव,इन भोले बाबा को जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक बहुत भाता है। भले ही तमाम दुनिया इस जलाभिषेक या दुग्धाभिषेक को बर्बादी का नाम दे, पर बाबा के भक्त अपने तारणहार को शीतलता देने के लिए सदियों से इस परंपरा को निभाए जा रहे हैं।
क्या वाकई यह परंपरा मात्र कर्मकांड है? या इसके पीछे कोई सशक्त कारण है? आइये शास्त्रों से ही जानें शिवलिंग पर जल चढ़ाने की धारणा के मायने...
शिवलिंग की स्थापना
शिव इस चर-अचर जगत की चेतना का मूल हैं। जगत की सारी अशुद्धि को शुद्ध करना शिव का कर्म है। जगत की सारी अच्छी और बुरी ऊर्जाएं शिव से ही शुद्ध होती हैं। ऐसा माना जाता है कि जहां शिवलिंग की स्थापना होती है, उस स्थान की सारी नकारात्मकता स्वयमेव नष्ट हो जाती है। शिवलिंग के पास से निकलने वाली सभी बुरी शक्तियां उसके स्पर्श से शुद्ध हो जाती हैं। इसी अवधारणा के साथ शिवलिंग के जलाभिषेक को मान्यता प्राप्त हुई है। माना जाता है कि जब बुरी शक्तियां प्रबल होती हैं, तब उनका ताप बहुत बढ़ जाता है।
अशुद्ध ताप में कमी आती है
यही शक्ति जब शिवलिंग से टकराती है, तब अपने कर्म के अनुसार वह उसका पूरा ताप हर उसे शुद्ध कर देते हैं। इस क्रम में शक्ति तो शुद्ध हो जाती है, पर उसके ताप को ग्रहण कर शिवलिंग की गर्मी बढ़ जाती है। शिवलिंग पर लगातार जल चढ़ाने से उस अशुद्ध ताप में कमी आती है। दूध और पानी के मिश्रण से शिवलिंग की गर्मी समाप्त होती है और शक्ति में वृद्धि होती है। तब वह पुनः शक्तिशाली होकर दोगुनी क्षमता से विश्व के शुद्धिकरण में संलग्न हो जाते हैं। इस बात को व्यक्तिगत स्तर पर बड़ी आसानी से समझा जा सकता है। यदि हम भयंकर तनाव, थकान या काम की अधिकता से परेशान हों, तो हमारा दिमाग गर्म हो जाता है। ऐसी हालत में हमारा दिमाग काम करना बंद कर देता है। इसके ठीक विपरीत अगर हमारा दिमाग और मन शांत हो, तो हमारी कार्यक्षमता बढ़ जाती है और हम बेहतर ढंग से काम कर पाते हैं।
शास्त्रों के अनुसार
शास्त्रों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए सभी कर्म स्वाधिष्ठान चक्र में संग्रहित होते हैं। यह चक्र जल तत्व से बना है। जब भी हम कोई बुरा काम करते हैं, तो वह हमारे शरीर के जल चक्र को प्रदूषित करता है। चूंकि जल तत्व पर ही व्यक्ति की व्यक्तिगत, स्वास्थ्य, संपत्ति और आध्यात्मिक उन्नति आधारित होती है, इसलिए जल तत्व के बुरे कर्म ग्रहण करते ही उसके पूरे जीवन पर दुष्प्रभाव पड़ता है। जाने-अनजाने में गलत काम करके व्यक्ति अपना ही नुकसान कर रहा होता है। ऐसे में जब कोई व्यक्ति शिवलिंग पर जल चढ़ाता है, तो उसके स्वाधिष्ठान चक्र में प्रदूषित हुआ जल तत्व, शिवलिंग पर जाप के साथ चढ़ाए जा रहे जल से एकाकार हो जाता है। इस तरह शिवलिंग पर जल चढ़ाने के साथ ही जल तत्व की शुद्धि हो जाती है और व्यक्ति का मानसिक, आध्यात्मिक और शारीरिक उत्थान होता है।
आत्मतत्व के रहस्य
उपर्युक्त बताए गए स्थूल कारणों के अतिरिक्त शिव के जलाभिषेक का एक सूक्ष्म कारण है, जो व्यक्ति के आत्मतत्व के रहस्य से जुड़ा है। माना जाता है कि हमारा शरीर पांच मूल तत्वों जल, अग्नि, वायु, पृथ्वी और आकाश से मिलकर बना है। हमारे शरीर के भीतर इन पांचों तत्वों से जुड़े चक्र पाए जाते हैं। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण आज्ञाचक्र हमारे मस्तक के अग्र भाग में स्थित होता है। इसकी स्थिति मस्तक के अग्र भाग से लेकर नाक की आधी लंबाई तक रहती है। यह स्थान शिव का आधार माना जाता है। हमारा मस्तिष्क यही स्थित होता है। इसके अलावा दूसरा महत्वपूर्ण स्थान सिर के उपरी हिस्से में माना जाता है, जहां सहस्रार चक्र होता है और यह आज्ञाचक्र से जुड़ा होता है। हमारे जीवन के सभी आनंद का स्रोत यही स्थल है। जब हम शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं, तब हमारे ध्यान में केवल दो बातें होती हैं- शिव और जल। इस प्रक्रिया में हम स्थूल रूप से जल शिवलिंग पर चढ़ा रहे होते हैं, पर सूक्ष्म रूप में हम अपने अंदर स्थित दो विशिष्ट चक्रों में स्थित शिव को पूज रहे होते हैं।
महत्वाकांक्षाओं, तनावों, बढ़ती आयु...
इस प्रक्रिया में शिवलिंग के शीतल होने के साथ हमारे शरीर के चक्रों का शुद्धिकरण हो रहा होता है। इससे महत्वाकांक्षाओं, तनावों, बढ़ती आयु आदि तमाम प्रभावों से क्षीण हो रहे हमारे शरीर के चक्रों को नई शक्ति मिलती है और हम आत्मिक रूप से शुद्ध हो जाते हैं। इसका सीधा प्रभाव हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर दिखाई देता है। हिंदू धर्म की अधिकांश पूजा प्रक्रियाओं को केवल धर्म की दृष्टि से नहीं बनाया गया है। हमारे विद्वान मनीषियों ने हर कर्म का विधान व्यक्ति पर पड़ने वाले शारीरिक, आत्मिक प्रभाव को देखकर निश्चित किया है। यही कारण है कि हम हिंदुओं के अधिकतर कर्मविधानों का वैज्ञानिक आधार शास्त्रों में मिलता है। शिवलिंग पर जल अर्पित करने की छोटी सी प्रक्रिया के इस वृहद और सूक्ष्म विश्लेषण से आप जान ही गए होंगे कि हमारे हर धर्म-कर्म के धार्मिक ही नहीं, वैज्ञानिक प्रमाण भी उपलब्ध हैं।