Sri Lakshmi Panchami 2022:जानिए पूजा विधि और कथा
नई दिल्ली, 06 अप्रैल। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को श्री लक्ष्मी पंचमी व्रत किया जाता है। इसे श्री पंचमी और श्री व्रत भी कहा जाता है। यह पावन दिन आज है।। आज सुख-समृद्धि और सौभाग्य बढ़ाने वाला सौभाग्य योग भी रहेगा। साथ ही पूरे दिन-रात सर्वार्थसिद्धि और सायं 7.41 से रवियोग भी है।
श्री लक्ष्मी पंचमी, श्री पंचमी या श्री व्रत माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। इस व्रत के प्रभाव से समस्त आर्थिक अभाव दूर हो जाते हैं। कार्यो में उन्नति प्राप्त होती है। श्री अर्थात् लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। जिन लोगों के जीवन में हमेशा धन की कमी बनी रहती है, कठोर प्रयास करने के बाद भी धन का आगमन नहीं होता उन्हें श्री लक्ष्मी पंचमी व्रत अवश्य करना चाहिए।
श्री लक्ष्मी पंचमी पूजन विधि
श्री लक्ष्मी पंचमी व्रत स्त्री-पुरुष के साथ पूरा परिवार कर सकता है। पूरा परिवार न कर पाए तो कम से कम घर के स्त्री-पुरुष को अवश्य करना चाहिए। व्रत करने के लिए सबसे पहले प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर साफ-स्वच्छ वस्त्र पहनकर अपने घर के पूजा स्थान को स्वच्छ कर लें। इसके बाद अपने समस्त आर्थिक अभाव दूर करने की कामना मां लक्ष्मी से करते हुए व्रत करने का संकल्प लें। इसके बाद सूर्यास्त के बाद शुभ मुहूर्त में एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर चांदी, पीतल या मिट्टी का नया कलश अक्षत और सिक्का भरकर रखें। कलश को लाल वस्त्र से सजाएं। कलश के ऊपर श्रीयंत्र स्थापित करें। फिर भगवान विष्णु-लक्ष्मी की मूर्तियों को पंचामृत और शुद्ध जल से स्नान करवाकर हल्दी, कुमकुम, चावल, अबीर, गुलाल, अष्टगंध आदि पूजन सामग्रियों से पूजन करें। भगवान विष्णु को पीले और मां लक्ष्मी को लाल पुष्प अर्पित करें। इसी प्रकार भगवान विष्णु को पीले वस्त्र और मां लक्ष्मी को लाल वस्त्र भेंट करें। विभिन्न प्रकार के मिष्ठान्न और फलों का नैवेद्य लगाएं। श्री लक्ष्मी पंचमी व्रत कथा का पाठ करें। श्री सूक्त का पाठ करें और श्री सूक्त के प्रत्येक श्लोक से लघु हवन करें। हवन शुद्ध घी में कमलगट्टे भिगोकर करें। अगले दिन प्रात:काल किसी ब्राह्मण दंपती को भोजन करवाकर या भोजन की सामग्री भेंट कर चौकी पर रखा कलश दान करें। इस प्रकार यह व्रत पूरा होता है।
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श्री लक्ष्मी पंचमी की कथा
एक समय माता लक्ष्मी देवताओं से रूठ गई। इससे समस्त देवता श्री विहीन हो गए। तब देवराज इंद्र ने मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। इंद्र का अनुसरण करते हुए समस्त देवता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए तपस्या करने लगे। उधर, ब्रह्मांड के श्री विहीन होने से असुर भी नहीं बच सके। असुरों पर भी संकट आ गया तो वे भी मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के प्रयास करने लगे। भक्तों की तपस्या से प्रसन्न होकर मां लक्ष्मी प्रकट हुई और देवता-दानव उन्हें पाकर फिर से श्रीवान हो गए। इस प्रकार चैत्र शुक्ल पंचमी के दिन मां लक्ष्मी ने फिर से देव-दानवों को सुख-समृद्धि प्रदान की।