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प्रताप सोमवंशी की कुछ और ग़ज़लें
एक
तितलियां
बारिश
में
खुलकर
भीगती
है,
बेटियां
जूडो-कराटे
सीखती
हैं.
दिक्कतें
बुलवा
रही
हों
झूठ
जब
भी,
गैरतें
कालर
पकड़
कर
रोकती
हैं.
ट्रेन
में
कुछ
देर
तक
बातें
हुई
थी,
आज
भी
उसको
निगाहें
खोजती
हैं.
लालचें
फिर
खोजती
हैं
इक
नया
घर,
नेकियां
दरिया
का
रास्ता
पूछती
हैं.
दो
सरासर
झूठ
बोले
जा
रहा
है.
हुंकारी
भी
अलग
भरवा
रहा
है.
ये
बंदर
नाचता
बस
दो
मिनट
है,
ज्यादा
पेट
ही
दिखला
रहा
है.
दलालों
ने
भी
ये
नारा
लगाया,
हमारा
मुल्क
बेचा
जा
रहा
है.
मैं
उस
बच्चे
पे
हंसता
भी
न
कैसे,
धंसा
कर
आंख
जो
डरवा
रहा
है.
तुझे
तो
ब्याज
की
चिन्ता
नही
है,
है
जिसका
मूल
वो
शरमा
रहा
है.
सुना
है
आजकल
तेरे
शहर
में,
जो
सच्चा
है
वही
घबरा
रहा
है.
प्रताप सोमवंशी
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