Dussehra : पढ़ें: विजयादशमी की कथा
नई दिल्ली, 13 अक्टूबर। आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को 'विजयादशमी' कहा जाता है। इस दिन के 'विजयादशमी' नाम के पीछे अनेक कारण शास्त्रों में प्राप्त होत हैं। यह दिन देवी भगवती के विजया नाम पर विजयादशमी कहलाता है। इस दिन भगवान श्रीराम ने लंका पर विजय प्राप्त की थी इसलिए भी इसे विजयादशमी कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार आश्विन शुक्ल दशमी के दिन तारा उदय होने के समय विजय नामक काल होता है इसलिए इसे विजयादशमी कहा जाता है। यह काल सभी कार्यो में सिद्धि प्रदान करने वाला होता है। इस दिन अपराजिता पूजन, शमी पूजन भी किया जाता है। विजयादशमी को वैसे तो क्षत्रियों का प्रमुख पर्व माना जाता है। इस दिन वे शस्त्र पूजन करते हैं। इस दिन ब्राह्मण सरस्वती पूजन करते हैं तथा वैश्य लोग बही-खातों का पूजन करते हैं।
विजयादशमी की कथा
एक बार माता पार्वती ने शिवजी से विजयादशमी के फल के बारे में पूछा। शिवजी ने उत्तर दिया- आश्विन शुक्ल दशमी को सायंकाल में तारा उदय होने के समय विजय नामक काल होता है जो सर्वमनोकामना पूरी करने वाला होता है। इस दिन श्रवण नक्षत्र का संयोग हो तो और भी शुभ हो जाता है। भगवान राम ने इसी विजय काल में लंकापति रावण को परास्त किया था। इसी काल में शमी वृक्ष ने अर्जुन के गांडीव धनुष को धारण किया था।
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पार्वती माता ने पूछा शमी वृक्ष ने अर्जुन का धनुष कब और किस प्रकार धारण किया था।
शिवजी ने उत्तर दिया- दुर्योधन ने पांडवों को जुएं में हराकर 12 वर्ष का वनवास तथा तेरहवें वर्ष में अज्ञात वास की शर्त रखी थी। तेरहवें वर्ष में यदि उनका पता लग जाता तो उन्हें पुन: 12 वर्ष का वनवास भोगना पड़ता। इसी अज्ञातवास में अर्जुन ने अपने गांडीव धनुष को शमी वृक्ष पर छुपाया था तथा स्वयं बृहन्नला के वेश में राजा विराट के पास सेवा दी थी। जब गौ रक्षा के लिए विराट के पुत्र कुमार ने अर्जुन को अपने साथ लिया तब अर्जुन ने शमी वृक्ष पर से अपना धनुष उठाकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी। विजयादशमी के दिन रामचंद्रजी ने लंका पर चढ़ाई करने के लिए प्रस्थान करते समय शमी वृक्ष ने रामचंद्रजी की विजय का उद्घोष किया था। इसीलिए दशहरे के दिन शाम के समय विजय काल में शमी का पूजन होता है।