संतान जन्म में आ रही है समस्या, तो करें दुर्गा सप्तशती के इस अध्याय का पाठ
नई दिल्ली। हमेशा से ही मानव जीवन में संतान का जन्म प्राथमिकता रहा है। लेकिन हर किसी को यह सुख नसीब नहीं होता, वहीं कुछ को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।कुछ को आसानी से यह सुख हासिल हो जाता है। जन्म कुंडली के विश्लेषण से आप संतान जन्म की संभावनाओं का आकलन कर सकते हैं। अगर कुंडली में संतान जन्म के लिहाज से ज्यादा मुश्किलें दिखाई दें तो कुछ उपायों से इनमें सुधार की संभावनाएं होती हैं। दुर्गा सप्तशती का पाठ भी इन्हीं में से एक है।
पंचम भाव से करते हैं संतान का विचार
कुंडली में संतान के आकलन के लिए पंचम भाव और पंचमेश पर विचार किया जाता है।इसके लिए माता और पिता दोनों की कुंडली देखी जानी चाहिए। अगर दोनों की कुंडली में सकारात्मक संकेत मिलें तो संतान के जन्म की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
कौन से योग बढ़ाते हैं मुश्किलें
अगर पंचमेश कुंडली 6, 8 या 12वें भाव में है या पंचमेश नीच, शत्रु के भाव में हो तो कष्ट से संतान की प्राप्ति होती है।यदि पंचमेश छठे भाव में हो और लग्नेश किसी भी भाव में मंगल के साथ हो तो पहली संतान जीवित नहीं रहती है और भविष्य में स्त्री गर्भधारण नहीं करती है। इसे काकबंध्या योग कहते हैं। जीवन में एक बार गर्भधारण हो तो काकबंध्या और कभी गर्भधारण न हो तो बंध्या होती है।पंचम भाव पर ज्यादातर पाप ग्रहों की दृष्टि या प्रभाव हो, पंचमेश पाप प्रभाव में हो।
दुर्गा सप्तशती के नवम अध्याय का करें पाठ
यूं तो कुंडली के कई दोष को शांत करने के लिए दुर्गा सप्तशती के पाठ की सलाह दी जाती है। लेकिन संतान के लिए इसके नवम अध्याय का पाठ कारगर माना जाता है।कहा जाता है कि इसका पाठ करियर में उन्नति और किसी खोई हुई चीज को वापस पाने में भी फायदेमंद होता है।
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