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अकेलेपन के शिकार थे देश को दिशा दिखाने वाले टैगोर

By Ajay Mohan
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Rabindranath Tagore
नयी दिल्ली। देश के हर बड़े राष्‍ट्रीय आयोजन में हम राष्‍ट्रगान के माध्‍यम से अपने देश को सलामी देते हैं। इस गीत का एक-एक शब्‍द लोगों के मन में देशभक्ति का जज्‍़बा कूट-कूट कर भर देता है। लेकिन शायद आपको नहीं पता होगा कि इसी गीत का लेखक खुद को कितना अकेला महसूस करता था। आज उनकी 150वीं जयंती के मौके पर देश भर में कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। लेकिन अपने जीवन में वो ऐसे तमाम कार्यक्रमों से दूर रहे। यहां तक अकेलेपन की वजह से कई बार उन्‍हें अवसाद के दौरे पड़े।

साल 2011 रविंद्रनाथ टैगोर की 150वीं जयंती वर्ष के रूप में भी मनाया गया। विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम इस वर्ष कला के क्षेत्रा का मुख्य आकर्षण रहे। इसी वर्ष सांस्कृतिक मंत्रालय को भी कुमारी शैलजा के तौर पर एक पूर्णकालिक मंत्री मिलीं। जहां एक ओर यह वर्ष टैगोर के नाम रहा, वहीं अगले वर्ष स्वामी विवेकानंद, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू और पंडित मदन मोहन मालवीय की 150वीं जयंती के मौके पर होने वाले समारोह की धूम रहेगी। वर्ष 2011 में प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्वीय स्थल व अवशेष :संशोधन एवं मान्यीकरण: कानून 2010 के तहत राष्‍ट्रीय स्मारक प्राधिकरण का भी गठन हुआ।

इसका गठन देश भर के स्मारकों की सुरक्षा और उनके आसपास होने वाले अक्रिमण को रोकने के लिए किया गया। इसी साल शांतिनिकेतन को यूनेस्को के विश्व विरासत स्थल का दर्जा दिलाने के लिए जोरशोर से प्रयास भी किया गया। संस्कृति मंत्री कुमारी शैलजा ने इस साल कला को प्रोत्साहन देने के तहत कलाकारों, फिल्मकारों और छात्रों की मदद् के लिए कई छात्रावृतियां और योजनाओं की भी शुरुआत की।

लेखक के अनुसार, टैगोर बचपन से ही एकाकीपन से पीडि़त रहे और यह उनके संस्मरणों जीवन स्मृति में भी दिखाई पड़ता है। पेंग्विन इंडिया द्वारा प्रकाशित जीवनी में रविन्द्र नाथ टैगोर को एक ऐसे इंसान के रूप में चित्रित किया गया है, जो आशंकित, आत्मालोचना करने वाला और अपनी अंदरूनी जिंदगी के संकटों और संघर्षों को सुलझाने में लगा रहता है। अपने एक विश्वासपात्रा चार्ल्‍स फ्रीर एंड्रयूज को लिखे एक पत्रा में टैगोर ने कहा था, "मैं बहुत अकेला था, यह मेरे बचपन की खासियत थी, मैं बहुत अकेला था, मैंने अपने पिता को कभी कभार ही देखा था। वह हमेशा बाहर रहते थे, मेरी मां के निधन के बाद मुझे घर के नौकरों के संरक्षण में रखा गया।"

अपने युवाकाल में भी टैगोर ने जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा एकांत में ही गुजारा क्योंकि उन्होंने उत्तरी बंगाल में टैगोर खानदान की विशाल संपत्ति की देखरेख करनी होती थी और इसके लिए वह महीनों नदी में नौका पर रहते थे जहां नौकरों और मल्लाह के अलावा कोई उनका साथी नहीं होता था। प्रोफेसर भट्टाचार्य ने टैगोर द्वारा एक बार अपने एक मित्रा को लिखे पत्रा के हवाले से बताया, कई बार मुझे किसी से बोले हुए महीनों हो जाते थे। इतना लंबा अरसा बीत जाता कि चुप रहने की वजह से मेरी खुद की आवाज बेहद पतली और कमजोर हो जाती।

1914 में वह तीन महीने तक अवसाद से पीडि़त रहे और इस दौर के बारे में उनके मित्र एंडयूज ने लिखा है, "रामगढ़ से लौटने के बाद टैगोर ने मुझे बताया कि मानसिक पीड़ा बर्दाश्त नहीं हो रही है और यह मौत के बराबर है। उन्हें उस कठिन दौर में अपने जिंदा बचे रहने की उम्मीद बेहद कम थी। 1921 में टैगोर ने न्यूयार्क में एंडयूज के सामने स्वीकार किया कि उन्हें इस बात का डर सता रहा है कि वह भारत लौटने पर अपने ही देशवासियों द्वारा ठुकरा दिए जाएंगे।"

छह साल बाद टैगोर को अवसाद का एक और दौरा पड़ा, लेकिन यह बीमारी के चलते था। 1913 में नोबेल पुरस्कार हासिल करने के बाद टैगोर महसूस कर रहे थे कि उनके देशवासियों का उनके प्रति सम्मान क्षणिक है जो जल्द ही खत्म हो जाएगा क्योंकि केवल कुछ ही लोग उनके लेखन की सही मायने में सराहना करते थे। 1919 में जब चितरंजन दास ने बंगाल प्रोविंशियल कांफ्रेंस में अपने अध्यक्षीय भाषण में उन पर हमला बोला तो टैगोर ने महसूस किया कि वह अकेले और बेसहारा हैं।

लेखक का कहना है कि टैगोर का सर्वाधिक लोकप्रिय गीत एकला चलो रे... 1905 में उस समय लिखा गया था, जब वह खुद को अलग-थलग और बेसहारा महसूस कर रहे थे। प्रोफेसर भट्टाचार्य ने लिखा है, "वह मानसिक पीड़ा के दौर में थे जो केवल बंगाल विभाजन का परिणाम नहीं था बल्कि विभाजन विरोधी उनके आंदोलन को मुख्य धारा के राष्टीय नेताओं द्वारा कोई तव्वजो और समर्थन नहीं दिए जाने के परिणास्वरूप उपजा था।"

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English summary
The composer of National Anthem Jana-Gana-Mana, Rabindranath Tagore is always pump the patriotism in the people everyday. Here is the tribute to him on his Birth Anniversary.
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