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Wrestlers Protest: क्या वर्चस्‍व की लड़ाई है भारतीय कुश्‍ती महासंघ का विवाद?

कुश्ती महासंघ के दबंग अध्यक्ष के खिलाफ जिस तरह से कुश्ती के पहलवान जंतर मंतर पर आये, उससे पूरे देश में इस पर चर्चा शुरु हो गयी। कुश्ती के साथ ऐसा क्या हुआ कि प्रतियोगिताओं में पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को आंदोलन पर उतरना

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Wrestlers Protest: Is fight for supremacy dispute of Wrestling Federation of India

वर्ष 2016 में आयोजित रियो ओलंपिक में जाने के लिये कुश्‍ती के 74 किलो भार वर्ग में ट्रायल होना था। ट्रायल में जीतने वाले पहलवान को रियो भेजा जाना था। सुशील कुमार और नरसिंह यादव इस भार वर्ग में जाने के दावेदार थे, लेकिन सुशील कुमार ने ट्रायल में भाग नहीं लिया और भारतीय कुश्‍ती महासंघ पर दबाव बनाया कि वह देश के लिये ओलंपिक में दो बार पदक जीत चुके हैं, लिहाजा उन्‍हें बिना ट्रायल रियो भेजा जाये। पहले ऐसा होता रहा है।

कुश्ती महासंघ, जिसके अध्‍यक्ष बृजभूषण शरण सिंह थे, ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। महासंघ ने कहा कि सुशील ने 66 किलोग्राम भार वर्ग में ओलंपिक पदक जीते हैं। 74 किलो भार वर्ग में चयन के लिये ट्रायल देना होगा, लेकिन सुशील ने ट्रायल नहीं दिया। दूसरी ओर नरसिंह यादव ने ट्रायल दिया और जीत के बाद उनका चयन रियो ओलंपिक जाने के लिये हो गया।

सुशील कुमार को महासंघ की चयन प्रकिया रास नहीं आई, और वे इसके खिलाफ दिल्‍ली हाई कोर्ट चले गये। कोर्ट ने मामला सुनने के बाद सुशील की याचिका खारिज कर दी, जिसके बाद सुशील के रियो जाने का सपना खत्‍म हो गया। इसी बीच छत्रसाल स्‍टेडियम में तैयारी कर रहे नरसिंह यादव रहस्‍यमयी ढंग से डोप टेस्‍ट पॉजिटिव पाये गये। नरसिंह ने आरोप लगाया कि सुशील कुमार के इशारे पर उनके खाने में कुछ मिलाया गया है ताकि वह रियो ना जा पायें।

आरोप लगा कि खुद रियो जाने के लिये सुशील ने यह षड्यंत्र रचाया है। जांच कमेटी बनाई गई, लेकिन छत्रसाल स्टेडियम में सुशील कुमार के श्वसुर नामी पहलवान सतपाल का वर्चस्‍व था, लिहाजा सुशील कुमार के खिलाफ कुछ नहीं हुआ तथा जांच में भी लीपापोती कर दी गई। डोपिंग टेस्‍ट सेंटर से नरसिंह को रियो में जाने की मंजूरी मिली, लेकिन वाडा ने उनके रियो जाने पर रोक लगाते हुए चार साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया और एक उभरते हुए पहलवान का भविष्‍य खत्‍म हो गया।

कुश्‍ती महासंघ ने नरसिंह के अयोग्‍य घोषित होने के बावजूद 74 किलो वर्ग में सुशील कुमार को रियो नहीं भेजा। सुशील खुद छत्रसाल के ओएसडी हो चुके थे। अपने श्वसुर और रिश्‍तेदार पहलवानों के दम पर वह अपना वर्चस्‍व साथी पहलवानों पर जमाने लगे। योगेश्‍वर दत्त का भी सुशील से विवाद हुआ तब योगेश्‍वर छत्रसाल स्‍टेडियम छोड़कर चले गये। दरअसल, सुशील एवं उनके साथियों का कुश्‍ती में इस कदर वर्चस्‍व हो गया कि वो किसी का कैरियर बनाने-बिगाड़ने की हैसियत में आ चुके थे।

इस मजबूत लॉबी को हरियाणा के कांग्रेस नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा और उनके बेटे दीपेंदर सिंह हुड्डा, जो हरियाणा कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष रहे, का संरक्षण था। वहीं भारतीय कुश्ती महासंघ चुनाव में 2011 में दीपेंदर को हराकर अध्‍यक्ष बने बृजभूषण शरण सिंह, जो खुद बाहुबली राजनेता है, हरियाणा लॉबी से टकराव लेने लगे। बृजभूषण ने बिना ट्रायल चयन के नियमों में बदलाव कर हरियाणा की लॉबी को बड़ी चुनौती दी। उन्‍होंने कोटा नियम में बदलाव कर अन्‍य राज्‍यों के खिलाडि़यों को भी मौका देने की पहल की। इससे बड़े टूर्नामेंट में हरियाणा के पहलवानों की संख्या सीमित होने लगी। डोप प्रकरण में भी बृजभूषण खुलकर सुशील कुमार के विरोध में नरसिंह यादव के साथ खड़े रहे।

लेकिन बृजभूषण शरण सिंह यहीं नहीं रुके, बल्कि कुश्ती महासंघ के नियम कानूनों में समय समय पर बदलाव करके हरियाणा के पहलवानों पर अपना अंकुश लगाने लगे। यहां तक कि पहलवानों को मिलने वाली प्राइवेट स्पॉन्सरशिप पर भी रोक के लिए नियम बना दिया कि उनकी मर्जी के बिना कोई पहलवान प्राइवेट स्पॉन्सर से सीधे डील नहीं कर सकता।

सत्ताधारी पार्टी के सांसद और बाहुबली होने के नाते बृजभूषण शरण सिंह की कुश्ती महासंघ चुनावों में लगातार जीत होती गई। बाहुबली राजनेता के प्रभुत्व को रोकना खिलाड़ियों के लिए संभव नहीं था। अध्यक्ष पद पर तीन कार्यकाल पूरा होने के बाद बृजभूषण शरण सिंह कुश्‍ती महासंघ अध्‍यक्ष का चुनाव नहीं लड़ सकते थे। फरवरी में उनका तीसरा कार्यकाल खत्‍म हो रहा है। लेकिन कुश्ती महासंघ पर अपने कब्जे को बनाए रखने के लिए उन्होंने अपने विधायक बेटे प्रतीक भूषण सिंह को अगला अध्‍यक्ष बनाने की तैयारी कर ली। कुश्‍ती महासंघ के चुनाव में बृजभूषण शरण को हराना संभव नहीं है, क्‍योंकि ज्‍यादातर राज्यों में उनके समर्थक ही कुश्ती महासंघ के पदाधिकारी हैं।

ऐसे में उनकी विरोधी लॉबी के लिए यह चिंता की बात थी कि पिता के बाद पुत्र का कब्‍जा भी कुश्‍ती महासंघ पर हो जाए। कुश्‍ती महासंघ का अध्‍यक्ष पद हासिल करने के लिये दीपेंद्र हुड्डा भी प्रयासरत हैं। बृजभूषण गुट का आरोप है कि दीपेंद्र की शह पर ही पुराना रुतबा पाने के लिये हरियाणा के चुनिंदा पहलवान आरोप लगा रहे हैं।

बृजभूषण समर्थकों का कहना है कि हरियाणा में इस साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, लिहाजा कुश्‍ती महासंघ के विवाद को पर्दे के पीछे से दीपेंद्र हुड्डा समर्थक जाट बनाम क्षत्रिय की लड़ाई बनाने की कोशिश में भी जुटे हुए हैं। महासंघ के विवाद के जरिये कांग्रेस को जाट बहुल हरियाणा में बड़ा राजनीतिक लाभ मिलने की संभावना दिख रही है। साथ ही दीपेंद्र हुड्डा फिर से भारतीय कुश्‍ती महासंघ का अध्‍यक्ष बनकर चांदगी राम अखाड़े का वर्चस्‍व एक बार फिर महासंघ में बनवा सकते हैं, जो बृजभूषण शरण या उनके बेटे के अध्यक्ष रहने पर संभव नहीं है।

अब जबकि बृजभूषण विवादों में घिर चुके हैं तब भाजपा के सामने भी इस मामले को सही ढंग से निपटने की चुनौती है। मामला राजनीतिक रंग ले चुका है और दीपेंद्र हुड्डा इस मुद्दे के सहारे भाजपा को घेरकर जाटों की सहानुभूति बटोरने की कोशिश कर रहे हैं। दीपेंद्र अपने ट्वीट में आरोप लगाते हैं, ''पहले काले कानूनों के खिलाफ आंदोलित किसानों पर कीचड़ उछाला, फिर अग्निपथ के विरुद्ध संघर्षरत जवानों पर लांछन लगाये, अब देश की शान हमारे पहलवानों को सड़क पर आने को मजबूर कर दिया। बीजेपी सरकार इन वर्गों का शोषण क्‍यों कर रही है?'' दीपेंद्र का सीधा इशारा अपनी जाति की तरफ है।

दूसरी तरफ, बृजभूषण शरण के समर्थकों का कहना है कि एक ही राज्य से अध्यक्ष के खिलाफ यौन शोषण के आरोप क्यों लगाये जा रहे हैं जबकि देश के दूसरे राज्‍यों की महिला पहलवान कुश्ती महासंघ के अध्‍यक्ष के पक्ष में खड़ी हैं।

दरअसल, कुश्‍ती में लंबे समय तक हरियाणा और दिल्ली के चंदगी राम अखाड़े से जुड़े पहलवानों का दबदबा रहा है। इसी के मद्देनजर कुश्‍ती महासंघ ने चार नियमों में बदलाव किये है। पहला, सभी खिलाड़ियों को सीनियर नेशनल प्रतियोगिता में उतरना अनिवार्य कर दिया गया है, जो पहले अनिवार्य नहीं था। प्रतियोगिता के बाद एक भार वर्ग में केवल चार खिलाड़ियों को कैंप के लिये चुना जायेगा। दूसरा, खिलाड़ी अब तक अपने स्‍पांसर के मुताबिक काम करते थे, इसलिये महासंघ पर ध्‍यान नहीं देते थे। अब स्‍पांसरशिप में खिलाडि़यों को महासंघ को भी शामिल करना होगा। यह नियम भी बड़े पहलवानों को रास नहीं आया।

'कुश्ती संघ के अध्यक्ष के खिलाफ आरोप आधारहीन', बृजभूषण सिंह के सपोर्ट में उतरे CWG गोल्ड मेडलिस्ट नरसिंह यादव'कुश्ती संघ के अध्यक्ष के खिलाफ आरोप आधारहीन', बृजभूषण सिंह के सपोर्ट में उतरे CWG गोल्ड मेडलिस्ट नरसिंह यादव

तीसरा, ओलंपिक के लिये यदि कोई खिलाड़ी किसी प्रतियोगिता के जरिये क्‍वालिफाई करता है तो जरूरी नहीं कि वही पहलवान ओलंपिक में भी उतरे। अब यह कोटा उस खिलाड़ी की बजाय देश का माना जायेगा। ऐसे में ओलंपिक से पहले ट्रायल आयोजित किया जायेगा, और इसमें जीतने वाला खिलाड़ी ओलंपिक कोटा हासिल करने वाले खिलाड़ी से भिड़ेगा। इसमें जो जीतेगा वो ओलंपिक के लिये क्‍वालिफाई करेगा। लेकिन कोटा हासिल करने वाला खिलाड़ी हार जाता है तो उसे 15 दिन में दोबारा एक मौका और मिलेगा। निश्चित रूप से अपनी योग्यता से ओलंपिक कोटा पाने वाले पहलवान इस नियम से रूष्ट हैं।

चौथा, महासंघ ने सभी राज्‍यों के पहलवानों की संख्या बढ़ाने के लिये नये नियम बनाये हैं, जिससे कुश्ती में दबदबे वाले राज्‍य नाराज हैं, क्‍योंकि एक कटेगरी में केवल 10 पहलवान ही चुने जा सकते हैं। बहरहाल अब केन्द्र सरकार ने सात सदस्‍यीय कमेटी बना दी है, जो हर आरोप प्रत्यारोप की जांच करेगी। परिणाम जो भी सामने आयें लेकिन कुश्ती का नुकसान नहीं होना चाहिए। आखिरकार यह हमारे लिए राष्ट्रीय गौरव का खेल है।

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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

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Wrestlers Protest: Is fight for supremacy dispute of Wrestling Federation of India
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