क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

स्वतंत्रता आंदोलन में संस्कृत साहित्य की भूमिका

Google Oneindia News

यह अत्यंत रोचक है कि रामानंद संप्रदाय के महान् संत वैष्णवाचार्य स्वामी भगवदाचार्य की काव्य-शृंखला स्वतंत्रता आंदोलन में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। काशी के श्रीमठ में रहने वाले भगवदाचार्य स्वतंत्रता संग्राम के पूर्णत: समर्थक थे। इनके लिखे काव्यत्रय संस्कृत साहित्य में खास हैं, ये हैं - भारतपारिजातम्, पारिजातापहारम् और पारिजातसौरभम्। भगवदाचार्य ने 'भारतपारिजातम्' में महात्मा गांधी के जन्म से लेकर साबरमती आश्रम की स्थापना तक का इतिहास निबद्ध किया है।

Role of Sanskrit Literature in the independence movement

भगवादाचार्य ने 'पारिजातापहारम्' में भारत छोड़ो आंदोलन का इतिहास और 'पारिजातसौरभम्' में गांधी के स्वर्गारोहण तक का वर्णन किया है। देश की आजादी से पूर्व लोकचेतना को जागृत करने वाले काव्यों के प्रकाशन का सौविध्य नहीं होने से 'भारतपारिजातम्' का प्रकाशन दक्षिण अफ्रीका से हुआ। स्वामी भगवदाचार्य के सान्निध्य में सैंकड़ों जंगम-जोगड़े, नाथपंथी, संतों और गंगा किनारे जीवनयापन करने वाले पंडे-पुरोहितों ने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। द्वारका और शारदा पीठ के मौजूदा शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने महात्मा गांधी के साथ अनेक आंदोलनों में भाग लिया। अनेक संन्यासियों और साधुओं ने देश को आजाद करवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया।

वहीं 19वीं और 20वीं शती में प्रचलित स्वातंत्र्य-समर की विशेषता थी कि इसमें प्राय: कोई व्यक्ति नहीं बल्कि सभी भारतीयों की जागृत आंतरिक भावना अंग्रेजी पारतंत्र्य को भंग करने के उद्देश्य से प्रस्तुत थी। यह भावना जैसे देश की दूसरी भाषाओं और बोलियों में लिखी और कही गई, ठीक वैसे ही संस्कृत भाषा के साहित्य में भी इस भावना के स्वर सुस्पष्ट सुनाई पड़ते हैं। इस स्वतंत्रता-संघर्ष से संस्कृत साहित्य का संबंध अनेक प्रकार का है। अंग्रेजों के शासन में भारतीयों ने जिस प्रकार के पारतंत्र्य का अनुभव किया, संस्कृत-साहित्यकारों की रचनाओं में भी वैसा ही निदर्शन प्राप्त होता है। पारतंत्र्य के विरोध में और स्वातंत्र्य के पक्ष में संस्कृतज्ञों-कवियों ने लेखनी चलाई।

भारत में अहिंसक स्वातंत्र्य आंदोलन का प्रमुखता से नेतृत्व राष्ट्रपिता मोहनदास कर्मचंद गांधी द्वारा अनुष्ठित किया गया। महात्मा गांधी को केंद्र में रखकर संस्कृत भाषा में विपुल साहित्य लिखा गया, जिसका आकलन सहज नहीं है। महात्मा गांधी को केंद्र में रखकर नायकत्वेन वर्णित काव्य, नाटक, गद्यबद्ध-जीवनचरित्रों की संख्या बहुत अधिक है, जिनमें बहुत-से ग्रंथ अद्यापि अप्रकाशित ही हैं, ऐसा शोधार्थियों का अनुमान है। महात्मा गांधी के जन्म-शताब्दी-अवसर पर गांधी शांति प्रतिष्ठान ने विविध भाषाओं में लिखे गांधी-वाङ्मय के ग्रंथों की एक सूची प्रकाशित की थी। इस सूची में 29 ऐसे काव्यों का विवरण है, जिनमें महात्मा गांधी ही नायकत्वेन वर्णित हैं और उनके स्वातंत्र्य आंदोलन को ही ये काव्य उपस्थित करते हैं।

इन ग्रंथों में संस्कृत कवयित्री पंडिता क्षमाराव द्वारा 1932 ईस्वी में प्रकाशित 'सत्याग्रहगीता', 'उत्तरसत्याग्रहगीता' एवं 'स्वराज्यविजय:' नाम के तीन काव्य साहित्य जगत् में सुविदित हैं। जब स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था तब क्षमाराव का 'सत्याग्रहगीता' काव्य पेरिस से 1932 में इसलिए छपा था कि उस समय भारत में उस कृति का प्रकाशन करवाना सरल नहीं था। स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद इस काव्य का द्वितीय संस्करण 1956 ईस्वी में मुंबई से छपा। इस काव्य में गांधी की लंदन यात्रा (गोलमेज संमेलन) का रोचक वर्णन है। 'उत्तरसत्याग्रहगीता' का प्रकाशन 1948 ईस्वी में हुआ। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से लेकर महात्मा गांधी के देवलोक जाने तक का वर्णन 'स्वराज्यविजय:' में है, जिसका प्रकाशन 1962 ईस्वी में हुआ।

संस्कृत कवियों की सूक्ष्म दृष्टि स्वाधीनता के समर के साथ-साथ चल रही थी, जिससे उनकी लेखनी ने सहस्रों पृष्ठ लिख डाले। इन लेखकों में स्वामी भगवदाचार्य जैसै प्रौढ विद्वान् वैष्णवाचार्य थे वहीं क्षमाराव जैसी विदुषी महिलाएं भी सम्मिलित थीं। समस्त भारत में सर्वत्र परिनिष्ठित कवियों द्वारा ऐसा साहित्य प्रणीत किया गया है, जो शनै: शनै: शोधार्थियों के समक्ष प्रकट हो रहा है। गांधी के जीवनकाल में ही उनके जीवन पर 1944 ईस्वी में प्रकाशित अभिनंदन ग्रंथ में भारतीय भाषा के मूर्धन्य कवियों ने लेख लिख गांधी की प्रशस्ति और उनके द्वारा किए संघर्ष का समर्थन किया। इनमें रवींद्रनाथ ठाकुर, सुब्रह्मण्यम् भारती, वल्लतौल, सरोजिनी नायडू, मैथिलीशरण गुप्त, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा जैसी कवि-विभूतियां थीं।

इस ग्रंथ में भारतप्रसिद्ध 13 संस्कृत विद्वान् भी शामिल थे। इनमें विधुशेखर भट्टाचार्य, महादेव शास्त्री, गोपाल शास्त्री, दर्शनकेसरी नारायण शास्त्री खिस्ते, राव भट्टाचार्य और स्वामी भगवदाचार्य जैसे संस्कृत के महान् कवि-लेखक शामिल थे। लखनऊ से प्रकाशित इस ग्रंथ की भूमिका महान् दार्शनिक सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन् ने लिखी है। स्वयं महात्मा गांधी ने भी इस ग्रंथ में अपना प्रत्युत्तर प्रकाशित किया है। इससे स्पष्ट है कि संस्कृत पंडितों ने स्वातंत्र्य चेतना का आंतरिक समर्थन उच्च स्तर से किया है।

हालांकि यहां एक तथ्य ये भी है कि स्वतंत्रता से पूर्व ब्रिटिश शासन ने संस्कृत-पंडितों को संतुष्ट करने के भरसक प्रयास किए। पंडितों को 'महामहोपाध्याय' की पदवी प्रदान करने के बहाने उनका सम्मान किया जाता था, जिससे विद्वान् उनके तथा उनकी नीतियों के प्रशंसक बन सकें। 20वीं शती के आरंभ में तो योजनाबद्ध तरीके-से पंडितों से अंग्रेजी सरकार की प्रशस्ति करवाना शुरू किया गया, जिससे पंडितों की बात मानकर आम लोग अंग्रेजी शासन का विरोध छोड़ दें। यही कारण रहे कि 'राजभक्तिप्रकाश:' और 'जार्जचरितम्' जैसे ग्रंथ संस्कृत भाषा में लिखवाए गए।

दिल्ली में पंचम जार्ज के दरबार में कुछ संस्कृत विद्वान् भी आमंत्रित किए गए थे। इस अवसर पर 16 दिसंबर, 1911 को दिल्ली में महामहोपाध्याय पंडित बांकेराय नवल गोस्वामी के नेतृत्व में 'राजभक्तिप्रकाश:' पुस्तक जार्ज पंचम और महारानी मैरी को समर्पित की गई, जिसमें अंग्रेजी शासन की प्रशंसा की गई थी। उन वर्षों में दिल्ली व उत्तरप्रदेश के कई संस्कृत विद्वानों ने अंग्रेजी शासन के समर्थन में संस्कृत में कई उक्तियां लिखीं। रायबहादुर आदि पदवियों को धारण करने वाले महामहोपाध्याय पंडित बांकेराय नवल गोस्वामी जैसे संस्कृत विद्वानों द्वारा लिखा ऐसा साहित्य प्राप्त है, जो अंग्रेजी शासन से प्रेरित प्रतीत होता है। प्रथम महायुद्ध के समय पंडितों ने मंदिरों में ब्रिटेन की विजय के लिए अनुष्ठान-प्रार्थनाएं की हैं, ये भी सत्य है।

फिर भी ऐसे अपवादों को छोड़ दें तो संस्कृत भाषा स्वातंत्र्य की कामना तथा दासता से मुक्ति के संग्राम का जहां कहीं भी प्रभावी उल्लेख है, वह सम्मोहित करता है। बंकिमचंद्र चटर्जी ने 'आनन्दमठ' उपन्यास में 'वन्दे मातरम्' शीर्षक से एक गीत लिखा है, जो भारत के इतिहास में अजर-अमर है। यह उपन्यास बांग्ला भाषा में है और इसी भाषा में यह अमर गीत भी लिपिबद्ध है। पूरा उपन्यास बांग्ला में होने के बाद भी संस्कृत भाषा की महिमा को ध्यान में रखते हुए चटर्जी ने इस गीत की पहली पंक्ति और अन्तिम पंक्ति संस्कृत में लिखी और बीच का भाग बांग्ला भाषा में। ऐसा लेखन बंगाल में ही नहीं, महाराष्ट्र में भी हुआ।

स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर ने स्वातंत्र्य-संघर्ष को प्रेरित करने के लिए 'काला पाणी' शीर्षक से एक उपन्यास लिखा। सावरकर ने स्वतंत्रता को देवी के रूप में संबोधित कर एक गीत लिखा, जिसकी प्रथम पंक्ति सावरकर ने संस्कृत में ही लिखी - सन्ति स्वतन्त्रते भगवति! त्वामहं यशोयुतां वन्दे। जयोऽस्तु ते श्रीमहन्मंगले शिवास्पदे शुभदे॥ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान् रहस्यवादी विद्वान् श्रीअरविन्द का चिंतन भी संस्कृत के विपुल साहित्य से अनुप्राणित है।

यह भी पढ़ेंः बार बार क्यों पलट जाते हैं नीतीश कुमार?

(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

Comments
English summary
Role of Sanskrit Literature in the independence movement
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X